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खेल के नियमों में ऐसे दस तरीके है,जिनसे एक बल्लेबाज को क्रिकेट में किया जा सकता है आउट

Kajal Dubey
22 March 2022 11:29 AM GMT
खेल के नियमों में ऐसे दस तरीके है,जिनसे एक बल्लेबाज को  क्रिकेट में किया जा सकता है आउट
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क्रिकेट मैच देखते हैं तो यह पाते होंगे कि बल्लेबाज एक नहीं बल्कि कई तरीकों से आउट होता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जब आप कोई क्रिकेट मैच देखते हैं तो यह पाते होंगे कि बल्लेबाज एक नहीं बल्कि कई तरीकों से आउट होता है। वह क्लीन बोल्ड के अलावा कैच और एलबीडब्ल्यू के जरिए भी आउट होता है। इतना ही नहीं आमतौर पर रन आउट भी करीब-करीब हर मैच में देखने को मिल जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तरीके भी हैं जो कभी-कभी ही देखने को मिलते हैं। जैसे-हिट विकेट, फील्डिंग में बाधा पहुंचाने पर ऑब्स्ट्रक्टिंग द फील्ड।

खेल के नियमों के संरक्षक, मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) के अनुसार ऐसे दस तरीके हैं जिनसे एक बल्लेबाज को क्रिकेट में आउट किया जा सकता है।
1. बोल्ड, 2. कैच, 3. गेंद को दो बार मारने पर, 4. हिट-विकेट, 5. एलबीडब्ल्यू, 6. ऑब्स्ट्रक्टिंग द फील्ड, 7. रन आउट, 8. स्टम्प, 9. टाइम आउट, 10. हैंडल्ड द बॉल।
इनमें सबसे ज्यादा बहस एलबीडब्ल्यू को लेकर होती है। बल्लेबाज के पैड पर विकेट के सामने गेंद लगती है और अंपायर उसे आउट देता है। एलबीडब्ल्यू आउट देने के पीछे भी कई कारण मौजूद है। गेंद विकेट के सामने गिरनी या गिरती हुई प्रतीत होनी चाहिए। विकेट से ज्यादा ऊंचाई पर गेंद गुजरती नहीं हो। कई कारणों के मौजूद होने से एलबीडब्ल्यू पर बहस होती रहती है। 2008 तक एलबीडब्ल्यू पर अंतिम फैसला मैदानी अंपायर लेते थे। इसके बाद डीआरएस सिस्टम आने के बाद से बल्लेबाज उसे चुनौती दे सकता है और थर्ड अंपायर रीप्ले देखकर अंतिम फैसला देता है।
एलबीडब्ल्यू क्यों सबसे ज्यादा विवादित?
पिछले कुछ सालों में एलबीडब्ल्यू क्रिकेट मैदान पर सबसे अधिक विवादित फैसला रहा है, क्योंकि अंपायरों को निर्णय लेने के लिए बहुत ही कम समय होता है। कभी-कभी गेंद पैड के नजदीक बल्ले का किनारा ले लेती है तो कभी अंपायर गेंद की लाइन को पढ़ने में नाकाम रहते हैं। टेक्नोलॉजी के आने से एक्शन रीप्ले खेल का एक हिस्सा बन गया। पहले मैदानी अंपायर ने रन आउट के लिए तीसरे अंपायर से मदद लेनी शुरू की और फिर 2008 में निर्णय समीक्षा प्रणाली (डीआरएस) आ गया।
डीआरएस क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अनुसार, डीआरएस मैच अधिकारियों को उनके निर्णय लेने में सहायता करने के लिए एक टेक्नोलॉजी आधारित प्रक्रिया है। मैदानी अंपायर थर्ड अंपायर से सलाह ले सकते हैं। इसके अलावा खिलाड़ी अनुरोध कर सकते हैं कि थर्ड अंपायर मैदानी अंपायर के निर्णय पर विचार करें। निर्णय लेने के लिए बॉल ट्रैकिंग और स्निकोमीटर का सहारा लिया जाता है।
डीआरएस में समस्या क्या है?
डीआरएस में बॉल ट्रैकिंग के जरिए यह चेक किया जाता है कि गेंद कहां पर पिच हुई है और वह किस दिशा में कितनी ऊंचाई पर जाएगी। कई लोगों का कहना है कि टेक्नोलॉजी के जरिए यह सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि गेंद कितनी मुड़ेगी या कितनी उछलेगी और किस दिशा में जाएगी। कुछ अंपायरों का कहना है कि डीआरएस मैदानी अंपायरों पर सवाल उठाता है। उन्हें संदेह के घेरे में लाता है।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने शुरू में डीआरएस को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि बोर्ड को इस पर विश्वास नहीं था। बोर्ड को लगता है कि ऑपरेटर गेंद की लंबाई और दिशा को सही से नहीं समझ पाता है। इस समस्या को दूर करने के लिए बॉल ट्रैकिंग सिस्टम बनाने वाले हॉक-आई ने अल्ट्रा-एज बनाया। इसके जरिए यह पता चलता है कि गेंद बल्ले या पैड के किसी हिस्से में लगी या नहीं। इससे संतुष्ट होकर बीसीसीआई ने 2016-17 में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज के लिए डीआरएस का इस्तेमाल करने पर सहमति जताई। इससे पहले भारत ने केवल आईसीसी आयोजनों में डीआरएस का इस्तेमाल किया था।
अंपायर्स कॉल क्या है और उस पर विवाद क्यों?
अंपायर्स कॉल डीआरएस का ही हिस्सा है। अंपायर द्वारा एलबीडब्ल्यू आउट दिए या नहीं दिए जाने की स्थिति में इसका इस्तेमाल होता है। इस दौरान गेंद का कम से कम 50 फीसदी हिस्सा तीनों स्टंपों में कहीं टकराते हुए दिखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो आउट नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा अगर गेंद विकेट से टकराती हुई दिखती भी है, लेकिन विकेट से पिच नहीं होती है तो अंपायर का फैसला अंतिम माना जाएगा।
कई क्रिकेटरों और क्रिकेट कमेंटेटरों ने इसे एक अजीब नियम बताया है। उनके मुताबिक, गेंद का थोड़ा सा भी हिस्सा अगर विकेट से टकराता है और बेल्स गिरता है तो बल्लेबाज को आउट दिया जाता है। ऐसे में यह नियम संदेह पैदा करता है। यहां तक भारत के पूर्व कप्तान विराट कोहली ने भी अंपायर्स कॉल पर आपत्ति जताई थी।



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