Spots स्पॉट्स : नितिन शर्मा। डिस्कस थ्रोअर योगेश कथुनिया के माता-पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बने, लेकिन जब 9 साल की उम्र में वह एक पार्क में गिरे और खड़ा नहीं हो पाए तो बड़ी बीमारी के बारे में पता चला। डॉक्टरों ने कहा कि योगेश को गुइलेन-बैरे सिंड्रोम है। यह न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। इससे शरीर की मूवमेंट प्रभावित होती है और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। योगेश के माता-पिता को लगा कि उनके बेटे शायद फिर से चल नहीं पाएंगे, लेकिन फिजियोथेरेपी सहित कई वर्षों के उपचार के बाद, वह बैसाखी के सहारे खड़ा होने लगे। अब 27 वर्षीय योगेश ने लगातार दूसरे पैरालंपिक में रजत पदक जीतकर अपने धैर्य और जुझारूपन का प्रमाण दिया है। इस सफलता में उनकी मां मीना देवी का भी बड़ा योगदान है।योगेश को इलाज के लिए उनकी मां स्कूटर पर लाती ले जाती थीं, ताकि वह संतुलन न खो दें। उन्हें चंडीगढ़ के चंडीमंदिर कैंट में वेस्टर्न कमांड अस्पताल में डॉक्टर्स को दिखाया। दिल्ली के बेस अस्पताल के डॉक्टर्स से भी सलाह ली गई। योगेश ने पेरिस पैरालिंपिक में 42.22 मीटर का थ्रो करके सोमवार (2 सितंबर) को रजत पदक दिलाया। तीन साल पहले टोक्यो में उन्होंने रजत पदक अपने नाम किया था।