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Yogesh Kathuniya ने पेरिस में बढ़ाया देश का मान

Rajesh
2 Sep 2024 12:52 PM GMT
Yogesh Kathuniya ने पेरिस में बढ़ाया देश का मान
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Spots स्पॉट्स : नितिन शर्मा। डिस्कस थ्रोअर योगेश कथुनिया के माता-पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बने, लेकिन जब 9 साल की उम्र में वह एक पार्क में गिरे और खड़ा नहीं हो पाए तो बड़ी बीमारी के बारे में पता चला। डॉक्टरों ने कहा कि योगेश को गुइलेन-बैरे सिंड्रोम है। यह न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। इससे शरीर की मूवमेंट प्रभावित होती है और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। योगेश के माता-पिता को लगा कि उनके बेटे शायद फिर से चल नहीं पाएंगे, लेकिन फिजियोथेरेपी सहित कई वर्षों के उपचार के बाद, वह बैसाखी के सहारे खड़ा होने लगे। अब 27 वर्षीय योगेश ने लगातार दूसरे पैरालंपिक में रजत पदक जीतकर अपने धैर्य और जुझारूपन का प्रमाण दिया है। इस सफलता में उनकी मां मीना देवी का भी बड़ा योगदान है।योगेश को इलाज के लिए उनकी मां स्कूटर पर लाती ले जाती थीं, ताकि वह संतुलन न खो दें। उन्हें चंडीगढ़ के चंडीमंदिर कैंट में वेस्टर्न कमांड अस्पताल में डॉक्टर्स को दिखाया। दिल्ली के बेस अस्पताल के डॉक्टर्स से भी सलाह ली गई। योगेश ने पेरिस पैरालिंपिक में 42.22 मीटर का थ्रो करके सोमवार (2 सितंबर) को रजत पदक दिलाया। तीन साल पहले टोक्यो में उन्होंने रजत पदक अपने नाम किया था।

एफ56 श्रेणी में एथलीट बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं
पेरिस पैरालंपिक में योगेश कथुनिया ने एफ56 श्रेणी में 42.44 मीटर की दूरी तक चक्का फेंककर रजत पदक जीता। यह एक ऐसी श्रेणी है, जिसमें एथलीट बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। कथुनिया परिवार बल्लभगढ़ स्थित अपने घर में योगेश को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पार्धा करते देख रहा था।
गिरने के बाद लगा शरीर लकवाग्रस्त हो गया है
योगेश के पिता भारतीय सेना के रिटायर कैप्टन ज्ञान चंद ने कहा, ” योगेश बहुत ही पढ़ने वाला बच्चा था और हम चाहते थे कि वह डॉक्टर बने। लेकिन एक दिन वह पार्क में गिर गया और ऐसा लगा कि उसका शरीर लकवाग्रस्त हो गया है। जब हम उसे कमांड
अस्पताल
ले गए, तो डॉक्टरों ने हमें गिलियन-बैरे सिंड्रोम के बारे में बताया। हमें इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था, लेकिन डॉक्टरों ने हमें बताया कि वह शायद फिर कभी न चल पाए। पैरालिंपिक पदक उसकी मां की दृढ़ता और योगेश की इच्छा शक्ति के कारण हैं।”
मां की कड़ी मेहनत
जब योगेश को गिलियन-बैरे सिंड्रोम का पता चला तो परिवार के लिए यह एक लंबी परीक्षा थी। देवी ने याद करते हुए बताया, “मेरे दिमाग में बस यही बात चल रही थी कि मैं अपने बेटे को फिर से कैसे चलने लायक बना सकती हूं। बेस अस्पताल दिल्ली में घंटों बिताने से लेकर फिजियोथेरेपी सीखने और महीनों तक राजस्थान और हरियाणा के दूरदराज के गांवों में अलग-अलग पारंपरिक केंद्रों में मालिश के लिए ले जाने तक, मैंने सब कुछ किया।”
नीरज यादव ने की मदद
कई वर्षों की फिजियोथेरेपी के बाद योगेश सहारे के साथ चलने लगे। किरोड़ी मल कॉलेज में एडमिशन के बाद पैराएथलीट से मिले और इससे उन्हें प्रेरणा मिली। इनमें से एक एशियन मेडलिस्ट नीरज यादव थे। वह भी जेएलएन स्टेडियम में कोच सत्यपाल और द्रोणाचार्य अवार्डी कोच नवल सिंह के साथ ट्रेनिंग की। नेशनल लेवल पर मेडल जीतने के बाद योगेश को भारतीय पैरा टीम में जगह मिली। उनकी मां बताती हैं, “जब 2018 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय इवेंट के लिए गए तो नीरज और अन्य दोस्तों ने उनकी ट्रिप फंड की और उन्हें काफी प्रेरित किया।”
देवी बेटे की ट्रेनिंग की देखरेख भी करती हैं
जेएलएन स्टेडियम में योगेश के दो कोच और फिजियोथेरेपिस्ट के साथ मिलकर देवी उनकी ट्रेनिंग की देखरेख भी करती हैं। योगेश ने अन्य पैरा-एथलीट्स को ट्रेनिंग देने के लिए एक एकेडमी भी खोली है। अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के छह महीने के भीतर,युवा खिलाड़ी जकार्ता में 2018 एशियाई पैरा खेलों में चौथे स्थान पर रहे। फिर दुबई में वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता, जहां उसने 42.05 मीटर का थ्रो दर्ज किया। टोक्यो में योगेश ने रियो ओलंपिक चैंपियन ब्राजीलियाई क्लॉडनी बतिस्ता डॉस सैंटोस के पीछे 44.38 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक जीता, जिन्होंने 45.59 मीटर थ्रो किया।
दूसरा झटका
2022 में योगेश को एक और झटका लगा जब उन्हें सर्वाइकल रेडिकुलोपैथी का पता चला, जो रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करने वाली एक नर्व कंडिशन है। उन्हें ठीक होने में छह महीने लग गए। कोच नवल ने बताया, “जब वह हमारे साथ ट्रेनिंग के लिए आए, तब भी योगेश को सहारे की जरूरत थी और वह डिस्कस को ठीक से पकड़ नहीं पा रहे थे क्योंकि सिंड्रोम के कारण उनकी उंगलियां मुड़ी हुई थीं। हमने उन पर काम किया। फिर हमारा मुख्य कार्य व्हीलचेयर पर बैठने के साथ संतुलन बनाना था। इसके बाद उन्होंने अपनी थ्रोइंग तकनीक में सुधार कर सके। हालांकि प्रोग्रेस धीमी थी,लेकिन ऊपरी शरीर की ताकत और बाहों में लचीलापन हासिल करने से उन्हें बहुत मदद मिली।”
योगेश की उपलब्धी
पिछले चार सालों में योगेश ने पेरिस और जापान में आयोजित विश्व पैरा चैंपियनशिप में रजत पदक जीता है। 2022 में योगेश ने ओपन नेशनल पैरा चैंपियनशिप में 48.34 मीटर का नया विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। इसके बाद उन्होंने पिछले साल हांग्जू एशियाई पैरा खेलों में 42.13 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक जीता। देवी कहती हैं, ” जब भी वह उदास महसूस करते हैं तो संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हैं। इससे योगेश को आगे बढ़ने में मदद मिलती है। वह चाहते हैं कि युवा पैरा एथलीट उन्हें फॉलो करें। उन्होंने एक मिसाल कायम की है।”
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