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नई दिल्ली। किश्तवाड़ (जम्मू कश्मीर) जिले के दूरदराज गांव लोई धार की शीतल देवी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है। बावजूद इसके 16 साल की इस बेटी के लिए दिव्यांगता अभिशाप नहीं बन पाई। डेढ़ साल पहले ही सेना के अधिकारी ने कटरा स्थित माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी के कोच कुलदीप वेदवान को शीतल के बारे में बताया। बस यहीं से शीतल की जिंदगी पलट गई। उनके लिए विशेष धनुष तैयार कराया गया, जिसे हाथ से नहीं बल्कि पैर और छाती से चलाया जाता है। छह माह के अंदर शीतल ने इसमें महारत हासिल कर ली और पिल्सन (चेक गणराज्य) में खेली जा रही विश्व पैरा तीरंदाजी के फाइनल में पहुचनें वाली वह दुनिया की पहली बिना हाथों की महिला तीरंदाज बन गईं।
शीतल यही कहती हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह तीरंदाज बनेंगी। यह उन्हें अभी भी सपना लगता है। डेढ़ वर्ष पूर्व जब शीतल ने तीरंदाजी शुरू की थी तब वह दुनिया की पहली बिना हाथों की महिला तीरंदाज बनी थीं, लेकिन अब पूरी दुनिया में कुल छह बिना हाथ के तीरंदाज आ चुके हैं। पिल्सन में शीतल के साथ मौजूद श्राइन बोर्ड अकादमी में कोच अभिलाषा बताती हैं कि उन्हें तीरंदाजी शुरू कराना चुनौतीपूर्ण काम था। शीतल जब यहां आईं तो उन्होंने अकादमी में दूसरे पैरा तीरंदाजों को तीरंदाजी करते देखा तो वह यह खेल अपनाने को तैयार हो गईं। उनके लिए अकादमी में एक विशेष धनुष तैयार कराया गया। छह माह के अंदर ही वह निपुण तीरंदाज बन गईं। यहां तक वह पैरा के अलावा आम तीरंदाजों के साथ खेलने लगीं।
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