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खेल: तिवारी ने अपने बचपन के कोच मनाबेंद्रा घोष, पूर्व साथियों और अपने परिवार का शुक्रिया करते हुए कहा, ‘‘मनाबेंद्रा घोष मेरे पितातुल्य कोच मेरी क्रिकेट यात्रा के स्तंभ रहे हैं। अगर वह नहीं होते तो मैं क्रिकेट की दुनिया में यहां तक नहीं पहुंचा होता। आपका शुक्रिया सर और आपका स्वास्थ्य जल्दी ठीक हो। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां और पिता को शुक्रिया, दोनों ने मुझ पर पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिये कभी दबाव नहीं डाला, बल्कि मुझे क्रिकेट खेलना जारी रखने के लिये प्रेरित किया। मेरी पत्नी को शुक्रिया जिसने मेरी जिंदगी में आने के बाद से ही हमेशा मेरा साथ निभाया।
पूर्व भारतीय बल्लेबाज मनोज तिवारी ने गुरुवार को क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लेने की घोषणा की जिससे उनके उतार चढ़ाव वाले करियर का समापन हुआ। तिवारी ने 2008 और 2015 के बीच में 12 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच और तीन टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। उन्होंने सक्रिय क्रिकेटर रहते हुए राजनीति में प्रवेश किया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कैबिनेट में खेल एवं युवा मामलों के राज्य मंत्री बने। लेकिन 2022-23 घरेलू सत्र में इस 37 साल के खिलाड़ी ने बंगाल की ओर से खेलने के लिए वापसी की और टीम को फाइनल तक पहुंचाया जिसमें उन्हें ईडन गार्डन्स में सौराष्ट्र से हार का सामना करना पड़ा। यह तिवारी का अंतिम प्रथम श्रेणी मैच था। तिवारी ने अपने संन्यास की घोषणा करते हुए अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, ‘‘क्रिकेट खेल को गुडबॉय। ’’
उन्होंने लिखा, ‘‘इस खेल ने मुझे सबकुछ दिया, मेरा मतलब है कि वो हर चीज जिसका मैंने कभी सपना भी नहीं देखा था। इसकी शुरुआत ऐसे समय से हुई जब मेरी जिंदगी में विभिन्न तरह की चुनौतियां थीं। ’’ तिवारी ने लिखा, ‘‘मैं हमेशा इस खेल का और भगवान का आभारी रहूंगा जो हमेशा मेरे साथ रहे हैं। ’’ इस बायें हाथ के बल्लेबाज ने 12 वनडे में 287 रन बनाये जिसमें दिसंबर 2011 में चेन्नई में वेस्टइंडीज के खिलाफ लगाया गया शतक भी शामिल है। तिवारी ने अपने प्रथम श्रेणी करियर का अंत 9908 रन से किया जिससे वह 10,000 रन की उपलब्धि से महज 92 रन से पीछे रह गये और उनके 19 साल के चमकदार करियर में 29 शतक भी शामिल रहे। उन्होंने 2004 में ईडन गार्डन्स में दिल्ली के खिलाफ दीप दासगुप्ता की कप्तानी में अपना पदार्पण किया था।
उन्होंने 169 लिस्ट ए मैचों में 42.28 के औसत से 5581 रन बनाये। तिवारी ने अपने बचपन के कोच मनाबेंद्रा घोष, पूर्व साथियों और अपने परिवार का शुक्रिया करते हुए कहा, ‘‘मनाबेंद्रा घोष मेरे पितातुल्य कोच मेरी क्रिकेट यात्रा के स्तंभ रहे हैं। अगर वह नहीं होते तो मैं क्रिकेट की दुनिया में यहां तक नहीं पहुंचा होता। आपका शुक्रिया सर और आपका स्वास्थ्य जल्दी ठीक हो। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां और पिता को शुक्रिया, दोनों ने मुझ पर पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिये कभी दबाव नहीं डाला, बल्कि मुझे क्रिकेट खेलना जारी रखने के लिये प्रेरित किया। मेरी पत्नी को शुक्रिया जिसने मेरी जिंदगी में आने के बाद से ही हमेशा मेरा साथ निभाया।
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