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सनातन धर्म में दीपों का त्योहार दिवाली का विशेष महत्व है। इस साल 4 नवंबर को दिवाली है। यह पर्व पांचदिवसीय होता है। दिवाली के पंद्रह दिनों के बाद यानी कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है।
सनातन धर्म में दीपों का त्योहार दिवाली का विशेष महत्व है। इस साल 4 नवंबर को दिवाली है। यह पर्व पांचदिवसीय होता है। दिवाली के पंद्रह दिनों के बाद यानी कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है। आसान शब्दों में कहें तो कार्तिक महीने में अमावस्या के दिन दिवाली और पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है। साल 2021 में 18 नवंबर को देव दिवाली है। इस दिन गंगा किनारे स्थित प्रमुख शहरों में गंगा आरती का आयोजन किया जाता है। आइए, देव दिवाली के बारे में सबकुछ जानते हैं-
देव दिवाली क्यों मनाई जाती है
सनातन धार्मिक ग्रंथों की मानें तो दैविक काल में एक बार त्रिपुरासुर के आतंक से तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया। त्रिपुरासुर के पिता तारकासुर का वध देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने किया था। उसका बदला लेने हेतु तारकासुर के तीनों पुत्रों ने भगवान ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या कर उनसे अमर होने का वर मांगा। हालांकि, भगवान ब्रह्मा ने तारकासुर के तीनों पुत्रों को अमरता का वरदान न देकर अन्य वर दिया। कालांतर में भगवान शिवजी ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन तारकासुर के तीनों पुत्रों यानी त्रिपुरासुर का वध कर दिया। उस दिन देवताओं ने काशी नगर में गंगा नदी के किनारे दीप जलाकर देव दिवाली मनाई। उस समय से देव दिवाली मनाई जाती है। वर्तमान समय में भी हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है।
देव दिवाली का महत्व
ऐसी मान्यता है कि देव दिवाली के दिन देवी-देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाते हैं। इस मौके पर वाराणसी में गंगा आरती का विशेष आयोजन किया जाता है। गंगा घाटों को सजाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो देव दिवाली के दिन गंगा नदी में स्नान ध्यान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन गुरुनानक जयंती भी मनाई जाती है। हिन्दू और सिक्ख धर्म के अनुयायियों देव दिवाली को धूमधाम से मनाते हैं।
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