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क्रिकेट के खेल में गेंद और बल्ले की जंग में संतुलन कायम करने के लिए समय-समय पर इसके नियमों में बदलाव किया जाता रहा है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। क्रिकेट के खेल में दर्शक गेंद और बल्ले की जोरदार जंग देखने के लिए मैदान का रुख करते हैं. हालांकि कई बार उन्हें एकतरफा मुकाबले देखने को मिलते हैं. ऐसे मैच जिनमें कभी गेंद अपना घातक असर दिखाती है तो कभी बल्ले का पूरा दबदबा नजर आता है. गेंद और बल्ले के बीच के इसी संतुलन को बरकरार रखने और दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए इस खेल के नियमों का आकलन करते हुए उसमें समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है. इसी कड़ी के तहत खेल की सर्वोच्च संस्था अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने शुरुआती वर्ल्ड कप से ठीक पहले वाइड बॉल को लेकर महत्वपूर्ण नियम बनाया था.
दरअसल, वनडे क्रिकेट इतिहास का पहला वर्ल्ड कप 1975 में इंग्लैंड में आयोजित किया गया था. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस वर्ल्ड कप के शुरू होने से ठीक आठ दिन पहले आईसीसी ने एक बड़ा नियम लागू कर दिया था. ये नियम वाइड बॉल से जुड़ा था. वो इसलिए क्योंकि तब इंग्लैंड में काफी ठंड पड़ रही थी और गेंदबाज अनुकूल हालात का गैरजरूरी फायदा उठा सकते थे. ऐसे में आईसीसी ने तय किया कि गेंदबाजों को ऐसा करने से रोकना बेहद जरूरी है.
सर्वसम्मति से लिया गया फैसला, बाउंसर्स पर लगी लगाम
यही वजह रही कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने ऐसी हर गेंद को वाइड बॉल देने का नियम बनाया जो बल्लेबाज के सिर के ऊपर से निकलेगी. आईसीसी ने ये फैसला तेज शॉर्ट पिच गेंदों की आशंका के चलते सर्वसम्मति से लिया था. आईसीसी के इस नियम के बनाने और 1975 के वर्ल्ड कप में इसे लागू करने के बाद से गेंदबाजों की बाउंसर्स भी लगाम लगी और इसके बाद बल्लेबाजों को भी काफी राहत महसूस हुई. 1975 का वर्ल्ड कप वेस्टइंडीज ने मजबूत ऑस्ट्रेलिया को करीबी मुकाबले में हराकर अपने नाम किया था. वेस्टइंडीज ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 60 ओवर में 291 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया था. इसमें सर क्लाइव लॉयड ने बेहतरीन शतक जड़ा. उन्होंने 85 गेंदों पर 102 रन बनाए. जवाब में ऑस्ट्रेलियाई टीम 274 रनों तक ही पहुंच पाई और 17 रन से ये मैच हार गई.
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