खेल
भारतीय टीम के फॉरवर्ड खिलाड़ी शमशेर सिंह प्रतिनिधित्व कर सकेंगे,सिर्फ नौकरी के लिए खेलना चाहता था हॉकी
Tara Tandi
30 April 2021 2:28 PM GMT
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कई लोगों के लिए खेल केवल उनका पहचान बनाने का जरिया नहीं होता, देश के कुछ करने का सपना नहीं होता,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क|कई लोगों के लिए खेल केवल उनका पहचान बनाने का जरिया नहीं होता, देश के कुछ करने का सपना नहीं होता, कुछ के लिए यह उनकी जिंदगी होता है, जिंदगी बदलने का जरिया होता है. भारत में जहां हर क्रिकेट जैसा खेल है जो पैसा, ग्लैमर, पहचान और अच्छे भविष्य की गारंटी देता है वहां हॉकी जैसे खेल से प्यार करना और उसे अपनी जिंदगी बना लेना आसान नहीं होता वह भी जब दुनिया के मुताबिक आपके पास वह सपना पूरा करने के लायक न हो, पर शमशेर सिंह (Shamsher Singh) ने यह सब किया. हॉकी को चुना, हर मुश्किल का सामना किया और वह कर दिखाया जिसका यकीन उन्हें खुद नहीं था.
शमशेर सिंह (Shamsher Singh) भारतीय टीम के फॉरवर्ड खिलाड़ी हैं. 1997 में जन्मा 23 साल के इस खिलाड़ी ने साल 2019 में भारतीय टीम में डेब्यू किया. शमशेर को नहीं लगता था कि वह कभी टीम इंडिया का हिस्सा होंगे लेकिन उनकी मेहनत ने यह भी मुमकिन कर दिया. उन्होंने टीम के लिए अभी बहुत ज्यादा मैच नहीं खेले लेकिन यह जरूर तय है कि वह आने वाले समय में कुछ बेहद खास रहने वाले हैं.
शमशेर सिंह चाहते थे सरकारी नौकरी
शमशेर का जन्म एक अटारी के एक गांव में हुआ था. उनके पिता हरदेव सिंह एक किसान थे और मां हाउसवाइफ. अटारी गांव पाकिस्तान-भारत के अमृतसर बॉर्डर पर है. उन्होंने हॉकी खेलने की शुरुआत केवल शौक के तौर पर किया था. धीरे-धीरे इस खेल में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई. 11 साल की उम्र में वह जलंधर आए जहां उन्हें सुरजीत सिंह अकेडमी में खेलने का मौका मिला. उन्होंने वहां छह साल तक ट्रेनिंग की. शमशेर चाहते थे कि वह किसी तरह नेशनल खेल ले ताकी सरकारी नौकरी मिल जाए और परिवार की आर्थिक तौर पर मदद करें.
हॉकी को बना लिया सबकुछ
शमशेर की मां बताती हैं कि शमशेर उन्हें कई बार सुबह तीन बजे उठाने को कहते थे. बेटे को चैन से सोता देख मां उन्हें उठाती नहीं थी. जब ऐसा होता था तो शमशेर सिंह रोने लगते थे. यह खेल और अपने सपने की तरफ उनका दृढ़ संकल्प था. ऐसा नहीं था कि वह पढ़ाई में अच्छे नहीं थे वह वहां भी अव्वल ही थे. साल 2016 में उन्हें मिडफील्डर के तौर पर जूनियर अंतरराष्ट्रीय डेब्यू करने का मौका मिला. जूनियर टीम के साथ उन्हें तीन दौरे करने का मौका मिला. अपने डेब्यू के बाद शमशेर ने कहा, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस स्तर तक पहुंच पाऊंगी. दो साल मैंने बहुत मेहनत की. मेरे जैसे बच्चों को जिंदगी में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैस मैंने वह सब किया और परिवार ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा. मैं जो हूं उन्हीं की वजह से हूं.'
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