जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय क्रिकेट टीम 1990 के दशक में बहुत मजबूत नहीं थी और उसके कई कारणों में से एक टीम की फील्डिंग भी थी. इसके बावजूद कुछ खिलाड़ी थे, जिन्होंने इस मामले में टीम में अपना सबसे ऊंचा स्थान हासिल किया था और इसमें ही एक थे रॉबिन सिंह. बाएं हाथ के बल्लेबाज और दाएं हाथ के मीडियम पेसर रॉबिन सिंह की भारतीय टीम में बतौर ऑलराउंडर जगह तय थी और उन्होंने इस रोल में टीम इंडिया के लिए अहम योगदान दिया.
रॉबिन सिंह का जन्म भारत से हजारों मील दूर कैरेबियाई देश त्रिनिदाद एंड टोबैगो के प्रिंसेस टाउन में 14 सितंबर 1963 को हुआ था. रॉबिन सिंह के पूर्वज राजस्थान के अजमेर से थे. 19 साल की उम्र में रॉबिन मद्रास आ गए और यहीं उन्होंने क्रिकेट शुरू करने के साथ ही अपनी पढ़ाई भी की. इस दौरान उन्होेंनें मद्रास यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में एमए की डिग्री हासिल की.
रॉबिन सिंह ने तमिलनाडु की ओर से अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत की. हालांकि, भारतीय टीम में आने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा. 1989 में वेस्टइंडीज के खिलाफ त्रिनिदाद में ही उन्होंने वनडे डेब्यू किया. हालांकि, इसके बाद वह सिर्फ एक और वनडे खेल पाए और फिर टीम में वापसी के लिए 7 साल का इंतजार करना पड़ा.
1996 में रॉबिन की फिर से वनडे टीम में वापसी हुई और इसके बाद से ही 2001 में अपने आखिरी मैच तक वह लगातार टीम इंडिया के सदस्य रहे. इस दौरान रॉबिन ने लोअर ऑर्डर में आकर कई तेज-तर्रार पारियां खेलीं. साथ ही अपनी मीडियम पेस से अहम विकेट भी हासिल किए. लेकिन इन सबसे अहम थी रॉबिन की फील्डिंग. आम तौर पर कवर्स और पॉइंट्स पर रहते हुए रॉबिन आउटफील्डिंग में भारत की जान बन गए.
रॉबिन का करियर सिर्फ वनडे टीम तक ही रहा, लेकिन उन्होंने 1998 में अपना इकलौता टेस्ट खेला, जिसमें वह सिर्फ 32 रन बना पाए. हालांकि, उनका वनडे करियर लंबा चला और भारतीय टीम के लिए उन्होंने 136 मैच खेले, जिसमें 2336 रन उनके बल्ले से निकले. इसमें एक शतक और 9 अर्धशतक शामिल रहे. इतना ही नहीं, रॉबिन ने 69 विकेट भी झटके और इसमें भी 2 बार पारी में 5-5 विकेट भी झटके.