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टोक्यो पैरालिंपिक खेलों में भले ही देवेंद्र झाझड़िया गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाने से चूक गए हों लेकिन
टोक्यो पैरालिंपिक खेलों में भले ही देवेंद्र झाझड़िया गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाने से चूक गए हों लेकिन जैवलिन थ्रो में उनके सिल्वर मेडल ने जरूर उन्हें भारत का सबसे कामयाब ओलिंपियन बना दिया है. भारत में आज तक कोई भी खिलाड़ी ओलिंपिक या पैरालिंपिक खेलों में तीन मेडल नहीं जीत पाया है. देवेंद्र ने अपने इस मेडल को अपने दिवंगत पिता को समर्पित किया जो उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं.
पिछले साल उनके पिता का निधन हो गया था जिन्हें कैंसर था. वह उस समय उनके साथ नहीं थे. देवेंद्र तब टोक्यो पैरालिंपिक खेलों की तैयारी में लगे हुए थे. हालांकि झाझड़िया को इस बात का अफसोस है कि वह आखिरी समय में अपने पिता के साथ नहीं थे.
देवेंद्र ने पिछले साल पिता को खोया था
देवेंद्र जब साई केंद्र में अभ्यास कर रहे थे तभी उन्हें पता चला कि उनके पिता को कैंसर है. इस बारे में पता चलते ही देवेंद्र घर चले गए थे. हालांकि देवेंद्र के पिता ने उन्हें वापस भेज दिया था. वह चाहते थे कि बेटा एक बार फिर देश के लिए मेडल जीत कर लाए.
झाझड़िया ने सोमवार को टोक्यो से कहा, 'निश्चित रूप से, यह पदक देशवासियों के लिये है लेकिन मैं इसे अपने दिवंगत पिता को समर्पित करना चाहता हूं जो चाहते थे कि मैं पैरालंपिक में एक और पदक जीतूं.' उन्होंने कहा, 'अगर मेरे पिता ने प्रयास नहीं किया होता तो मैं यहां नहीं होता. उन्होंने ही मुझे कड़ी ट्रेनिंग और एक और पदक जीतने के लिये प्रेरित किया. मैं खुश हूं कि आज मैंने उनका सपना पूरा कर दिया.'
पूरी की मेडल की हैट्रिक
चालीस वर्षीय झाझड़िया पहले ही भारत के महान पैरालंपियन हैं, जिन्होंने 2004 और 2016 में स्वर्ण पदक अपने नाम किये थे. उन्होंने सोमवार को जैवलिन थ्रो के एफ46 स्पर्धा में 64.35 मीटर के नये व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ थ्रो से सिल्वर मेडल अपने नाम किया. झाझड़िया जब आठ साल के थे तो पेड़ पर चढ़ते समय दुर्घटनावश बिजली की तार छू जाने से उन्होंने अपना बायां हाथ गंवा दिया था. उनके नाम पर पहले 63.97 मीटर के साथ विश्व रिकॉर्ड दर्ज था जिसमें उन्होंने सुधार किया. लेकिन श्रीलंका के दिनेश प्रियान हेराथ ने शानदार प्रदर्शन किया और 67.79 मीटर जैवलिन फेंककर गोल्ड मेडल जीता. श्रीलंकाई एथलीट ने अपने इस प्रयास से झाझड़िया का पिछला विश्व रिकॉर्ड भी तोड़ा.
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