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वैज्ञानिकों ने बताई इजाद की नई तरकीब
अब तक आपको यह मालूम कि मच्छरों के काटने से मलेरिया होता है। उससे बचने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं लेकिन अब स्थिति बदलने वाली है। विज्ञानी इस प्रयास में लगे हैं कि मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के गट (पेट) के जीन में कुछ ऐसे बदलाव किए जाएं ताकि वह अपनी अगली पीढ़ी के जरिये मलेरिया रोधी जीन को फैलाए। इससे मलेरिया के प्रकोप को काबू किया जा सकेगा। इस आशय का प्रारंभिक अध्ययन ई-लाइफ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
जीन एडिटिंग तकनीक से मिलेगी कामयाबी
इस नए अध्ययन में मलेरिया फैलाने की मच्छरों की क्षमता को कम करने के लिए सीआरआइएसपीआर-सीएएस9 जीन एडिटिंग तकनीक के जरिये उसके जीन में बदलाव किया गया। यदि आगे का अध्ययन इस दृष्टिकोण का समर्थन करता है तो उससे मलेरिया की बीमारी तथा उससे होने वाली मौतों को कम करने में अहम कामयाबी मिल सकती है।
नई तकनीक पर काम जरूरी
दरअसल, जिस तरह से मच्छरों में कीटाणुनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है तथा मलेरिया पैरासाइट पर भी एंटी मलेरियल दवाओं का असर कम हुआ है, वैसी स्थिति में मच्छरों से निपटने के लिए नए रास्ते तलाशना तात्कालिक जरूरत हो गई है। इस दिशा में जीन में बदलाव कर उसके प्रकोप को कम करना कारगर हो सकता है।
मलेरिया रोकने के दो तरीके
इसके दो तरीके हो सकते हैं- पहला यह कि संशोधित जीन वाले ऐसे मच्छर वातावरण में छोड़े जाएं जिससे कि उनकी आबादी कम हो और दूसरा तरीका यह हो सकता है कि मलेरिया रोग फैलाने की मच्छरों की ताकत कम कर दी जाए। लेकिन ऐसा करने से पहले विज्ञानियों को इस बात से आश्वस्त हो जाना होगा कि यह एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है।
जीन ड्राइव एक कारगर उपाय
इंपीरियल कॉलेज, लंदन के शोधकर्ता तथा अध्ययन के प्रथम लेखक एस्टि्रड होरमैन कहते हैं कि जीन ड्राइव मलेरिया नियंत्रित करने की दिशा में एक कारगर हथियार साबित हो सकता है। लेकिन हम चाहते हैं कि जिन देशों में मलेरिया का ज्यादा प्रकोप है, वहां इसके परीक्षण का रास्ता सुरक्षित तरीके से साफ हो।
ऐसे किया अध्ययन
अपने अध्ययन में होरमैन तथा उनके सहयोगियों ने मलेरिया फैलाने वाले मच्छर एनोफिलिस गैंबैई के जीन में बदलाव किया। उन्होंने सीआरआइएसपीआर-सीएएस9 तकनीक के जरिये एक ऐसा जीन का प्रवेश कराया, जो एंटी मलेरियल प्रोटीन को इनकोड कर सके। यह प्रोटीन मच्छरों के काटने पर शरीर में प्रवेश कर जाता है।
आसान होगा मलेरिया पर नियंत्रण
टीम ने इसे ऐसे तरीके से किया ताकि पूरा डीएनए एक जीन ड्राइव की तरह काम करे तथा उसे अन्य मच्छरों में पहुंचा जा सके। एक दूसरी टीम ने इस यह देखने के लिए प्रयोग किया कि क्या संशोधित जीन वाले मच्छर अगली पीढ़ी को जन्म देकर स्वस्थ रह पाते हैं। उन्होंने इसकी भी पड़ताल की मच्छरों के पेट में मलेरियल पैरासाइट किस प्रकार से पनपते हैं। उनके इन प्रयोगों से इसके प्रारंभिक सबूत मिले हैं कि यह जीन में सुधार के इस तरीके से सफल जीन ड्राइव (अगली पीढ़ी तक संशोधित जीन को पहुंचाना) को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा सकता है।
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