विज्ञान

जलवायु परिवर्तन से कौन से जानवर अच्छे से निपट सकेंगे? अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाए अनोखे नतीजे

Gulabi Jagat
20 Aug 2022 3:41 PM GMT
जलवायु परिवर्तन से कौन से जानवर अच्छे से निपट सकेंगे? अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाए अनोखे नतीजे
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दुनिया भर के स्तनपायी जानवरों (Mammals) और उप जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और उससे जुड़े चरम मौसमी (Extreme weather) घटनाओं के असर पर एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अनोखे नतीजे पाए हैं. उन्होंने पाया है कि हाथी, लामा, सफेद गैंडे जैसे बड़े, लंबा जीवन जीने वाले और कम बच्चे पैदा करने वाले जानवर ऐसी घटनाओं को अच्छे से झेल जाते हैं जबकि कम समय तक जीन वाले छोटे जानवर इस मामले में कमजोर साबित होते हैं.
पिछले कुछ दशकों से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के भीषण प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की वजह से लंबे सूखे, भारी विनाशकारी बारिश जैसी चरम मौसमी घटनाएं ज्यादा संख्या में देखने को मिल रही है और वैज्ञानिकों का मानना है कि हालात इससे भी बदतर होने वाले हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पारिस्थितिकी तंत्र इन पर कैसे प्रतिक्रिया देगा. इस सवाल के आधार पर नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया है कि कौन से जानवर (Animals) होंगे जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अच्छे से निपटते हुए खुद को बचाए रख पाएंगे.
साउदर्न डेनमार्क यूनिवर्सिटी और ओस्लो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन ईलाइफ में प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 157 स्तनपायी जानवरों (Mammals) की जन्संख्या के बदलावों के आकंड़ों का विश्लेषण किया और उसकी तुलना दुनिया के मौसम और जलवायु के आंकड़ों से की. हर प्रजाति के 10 से ज्यादा साल के आंकड़े थे. इस अध्ययन शोधकर्ताओं का यह जानने का मौका मिला कि कैसे जानवरों (Animals) की प्रजातियां चरम मौसम का सामना करती हैं और उनकी संख्या और प्रजानन स्वरूपों (Reproduction Patterns) में क्या बदलाव आते हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें साफ पैटर्न देखने को मिले. लंबे समय तक जीने वाले जानवर (Animals) और जिनके कम बच्चे थे वे चरम मौसम (Extreme Weather) के प्रति ज्यादा कमजोर नहीं साबित हुए जबकि कम समय तक जीवित रहने वाले और जिनके ज्यादा बच्चे थे उनमें चरम मौसम के ज्यादा प्रभाव देखने को मिले. इसमें पहले समूह में लामा, लंबा जीवन जीने वाले चमगादड़, हाथी (Elephants) तो दूसरे समूह में चूहे, पोसम, धानी प्राणी जैसै जीव शामिल हैं.
शोधकर्ताओं ने पाया कि अफ्रीका के हाथी (African Elephants), साइबेराई शेर (Siberian Tiger), चिम्पांजी, होर्सशू बैट, लामा, सफेद गैंडे, भालू, अमेरिकी भैसा, आदि चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather) से ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं जबकि वहीं अजारा घास के चूहे (Mice), ओलिव घास के चूहे, कनाडाई लेमिंग, आर्कटिक लोमड़ी, आर्कटिक जमीनी गिलहरी आदि पर चरम मौसम का ज्यादा दुष्प्रभाव देखने को मिलता है.
विशाल और लंबा जीवन जीने वाले जानवर (Animals) लंबे सूखे (Long Droughts) जैसे हालात से निपटने में ज्यादा सक्षम होते हैं. उनके जिंदा रहने की, प्रजजन (Reproduction), अपने बच्चों को पालने आधी की क्षमताओं पर उस तरह का असर नहीं होता है जैसा कि छोटे और कम समय तक जीवित रहने वाले जानवरों के साथ होता है. बड़े जानवर अपनी ऊर्जा एक ही बच्चे में लगाते हैं या फिर विपरीत हालात आने पर अच्छे समय के आने का इंतजार करते हैं.
वहीं दूसरी तरफ छोटे और कम समय तक कुतरने वाले जानवरों (Rodents) में कम समय में चरम जनसंख्या बदलाव होते हैं . उदाहरण के तौर पर लंबे सूखे (Long Drought) की स्थिति में जानवरों (Animals) के लिए मूल भोजनका अधिकांश हिस्सा जैसे कीड़े मकोड़े, फूल, फल आदि तेजी से गायब हो जाते हैं और फिर सीमित फैट होने के कारण ये जानवर भूखे मरने लगते हैं. लेकिन जैसे ही हालात सुधरते हैं तब ये छोटे जानवर तेजी से पनपने लगते हैं क्योंकि उनके बच्चों की संख्या ज्यादा होती है.
दिलचस्प बात यह है कि ये सब हालात विलुप्त होने के जोखिम (Risk of Extinction) स्थिति से बहुत ही ज्यादा अलग होते हैं. छोटे जानवर चरम मौसम (Extreme Weather) में दोनों ही तरह से तेजी से प्रतिक्रिया देते हैं. लेकिन फिर चरम मौसम को विलुप्त होने के जोखिम से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि जानवरों (Animals) में जलवायु परिवर्तन से जूझने की क्षमता विलुप्त होने के जोखिम के मामले में केवल एक ही पहलू नहीं होना चाहिए.
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