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भारत ही नहीं पूरी दुनिया में लोग सैंकड़ों साल सोने के दीवाने हैं। सोने को पाने की चाहत ऐसी है
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में लोग सैंकड़ों साल सोने के दीवाने हैं। सोने को पाने की चाहत ऐसी है कि भारत को दुनियाभर से कई टन सोना हर साल आयात करना पड़ता है। दुनियाभर में सबसे ज्यादा सोना अभी ऑस्ट्रेलिया से निकाला जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में चीन को मात देते हुए दुनिया के सबसे बड़े सोना उत्पादक देश का दर्जा हासिल कर लिया है। ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार यह कारनामा करके दिखाया है।
ऑस्ट्रेलिया में सोने के खनन को और तेज किया जा रहा है, ऐसे में चीन के फिर आगे निकलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रेड-5 पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सोने की एक बड़ी खदान से उत्पादन शुरू करने जा रही है। यह उत्पादन ऐसे समय पर शुरू होने जा रहा है जब सोने की कीमतें 1800 डॉलर प्रति औंस के आसपास चल रही हैं। चीन वर्ष 2007 से सोना निकालने में नंबर वन बना हुआ था और करीब 14 साल बाद ऑस्ट्रेलिया ने उसे मात दी है।
कहां पर छिपा है सबसे ज्यादा सोना?
खबरों के मुताबिक चीन ने पिछले 6 महीने में 153 टन सोने का उत्पादन किया, वहीं ऑस्ट्रेलिया ने 157 टन सोना पैदा करके चीन को पीछे छोड़ दिया है। बताया जा रहा है कि चीन के सोना उत्पादन में दिक्कतें चल रही हैं और इसी वजह से उसका उत्पादन गिर गया है। ऑस्ट्रेलिया में लगातार सोने का उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है। साल 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया ने 328 टन सोना निकाला था।
ऐस्ट्रॉनमी मैगजीन की एक रिपोर्ट में जिक्र है 1859 की एक रात का जब मशहूर केमिस्ट रॉबर्ट बेनसन और गुस्टाव किर्शॉफ ने जर्मनी में मैनहीम शहर में एक आग बढ़कती हुई देखी। ये आग उनकी हीडलबर्ग यूनिवर्सिटी स्थित लैब से 10 मील यानी कम से कम 10 मील दूर थी। इस घटना में उन्हें आइडिया आया अपने नए स्पेक्ट्रोस्कोप के इस्तेमाल का। इस डिवाइस की मदद से रोशनी को अलग-अलग वेवलेंथ में बांटकर केमिकल एलिमेंट्स को पहचाना जा सकता है। उन्होंने खिड़की पर ही स्पेक्ट्रोस्कोप को लगाया और आग की लपटों में ढूंढ निकाला बेरियम और स्ट्रॉन्शियम को। आज दुनियाभर की लैब्स में इस्तेमाल किए जाने वाले बेनसन बर्नर को डिजाइन करने वाले रॉबर्ट ने सुझाव दिया कि इसी स्पेक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल सूरज और चमकीले सितारों के वायुमंडल पर भी किया जा सकता है।
करीब 10 साल बाद 18 अगस्त, 1868 को पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान कई ऐस्ट्रोनॉमर्स ने स्पेक्ट्रोस्कोपी की मदद से सूरज पर हीलियम की खोज की। इसके बाद एक-एक करके सूरज के वायुमंडल में कार्बन, नाइट्रोजन, लोहे और दूसरे हेवी मेटल्स की खोज की। इन्हीं में से एक था सोना। 18वीं शताब्दी के आखिर और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में धरती की उत्पत्ति और इतिहास को लेकर समझ के बढ़ने के साथ ही यह सवाल भी सामने आने लगा कि आखिर अरबों साल से सूरज और दूसरे सितारे कैसे चमक रहे हैं?
लंबे वक्त तक चलीं रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि सूरज पर 2.5 ट्रिल्यन टन सोना है। इतने सोने से धरती के सभी महासागर भर सकते हैं और फिर भी यह ज्यादा होगा। एक और दिलचस्प खोज आगे चलकर की गई, जिसमें पाया गया कि धरती पर आज मौजूद सोना सूरज जैसे सितारों के न्यूट्रॉन स्टार बनने और फिर आपस में टकराने से पहुंचा है।
दरअसल, जब कोई सितारा अपने जीवन के आखिरी चरण में होता है तो उसकी कोर ढह जाती है और फिर सुपरनोवा विस्फोट होता है। सितारे की बाहरी परतें स्पेस में फैलती हैं और इस दौरान न्यूट्रॉन कैप्चर रिऐक्शन होते हैं। इनसे पैदा होते हैं लोहे से भारी ज्यादातर एलिमेंट्स। जब ऐसे ही दो न्यूट्रॉन स्टार आपस में टकराते हैं तो न्यूट्रॉन कैप्चर रिऐक्शन के कारण स्ट्रॉन्शियम, थोरियम, यूरेनियम के साथ-साथ सोना भी बनता है। हमारा ब्रह्मांड बनने के बाद से ऐसी कई टक्करें हुई हैं और इनसे स्पेस में सोना फैल गया जो हमारी धरती पर आ पहुंचा। यानी सोना सिर्फ इसलिए खास नहीं है क्योंकि यह धरती पर दुर्लभ है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह सीधे सितारों से जमीन पर उतरता है।
दूसरे हेवी मेटल्स की तरह ही सोना भी धरती पर काफी दुर्लभ है। 'ऐस्ट्रोनॉमी' की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे मानव इतिहास में खनन किए गए सोने को एक सॉलिड क्यूब में रखा जाए, तो इसका एक सिरा 70 फीट का होगा। यह करीब 1.83 लाख टन होगा जो सुनने में भले ज्यादा लगे लेकिन धरती के हिसाब से बहुत ज्यादा नहीं है। सघनता की वजह से करीब 1.6 क्वॉड्रल्यन टन सोना धरती की कोर में जमा है। रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलियन जियॉलजिस्ट बर्नार्ड के हवाले से आकलन दिया गया है कि दुनिया का 99% सोना हमसे कई मील नीचे दबा है। अगर इसे पूरी धरती पर फैलाया जाए तो यह सिर्फ 16 इंच ऊंचाई की परत बनाएगा।
जानें कैसे बनता है सोना
साल 2017 में जब लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) ने स्पेस-टाइम को मोड़कर आईं गुरुत्वाकर्षण तरंगों को डिटेक्ट किया। रिपोर्ट्स में पाया गया कि दो न्यूट्रॉन सितारों की टक्कर के कारण ये तरंगें पैदा हुई थीं। वहीं, मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ ऐस्ट्रोनॉमी के रिसर्चर्स ने स्पेस में स्ट्रॉन्टियम पाया। यह और दूसरे एलिमेंट्स न्यूट्रॉन कैप्चर रिऐक्शन से पैदा हुए थे। ये स्पेस में इतनी ज्यादा न्यूट्रॉन डेंसिटी के साथ ट्रैवल कर रहे थे कि एलिमेंट्स में फ्री न्यूट्रॉन्स जुड़ने लगे।
इस तरह पैदा हुए स्ट्रॉन्शियम, थोरियम, यूरेनियम और हमारा सबसे खास- सोना। हमारा ब्रह्मांड बनने के बाद से ऐसी कई टक्करें हुई हैं और इनसे स्पेस में सोना फैल गया जो हमारी धरती पर आ पहुंचा। यानी सोना सिर्फ इसलिए खास नहीं है क्योंकि यह धरती पर दुर्लभ है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह सीधे सितारों से जमीन पर उतरता है।
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