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दुनियाभर में बढती प्राकृतिक आपदाओं, ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ा समुद्र जल का स्तर
दुनियाभर में बढती प्राकृतिक आपदाओं, ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ा समुद्र जल का स्तर, कोरोना वायरस जैसे जैविक युद्ध और परमाणु युद्ध का खतरा आदि उस विनाश का संकेत देते हैं कि एक न एक दिन इस पृथ्वी यानी धरती का अंत होना है. अगर ऐसा हुआ तो आगे क्या होगा, क्या इंसानी नस्ल बच पाएगी. मानव अगर बच गए तो उनका गुजारा कैसे होगा.
ऐसे कई सवालों का जवाब पता करने के लिए वैज्ञानिकों ने 'डूम्स डे' (Doomsday) की थ्योरी दी थी. इसके बाद 'डूम्स डे क्लॉक', 'डूम्स डे वॉल्ट' पर तेजी से काम हुआ. हालांकि इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि दुनिया खत्म होगी या नहीं आपको बता दें कि इस रोचक विषय को लेकर नासा (Nasa) का शोध भी जारी है.
नासा का मिशन 'वीनस'
द सन की रिपोर्ट के मुताबिक नासा का नया मिशन दुनिया के सबसे महत्वूपर्ण सवाल का जवाब ढूंढ सकता है. ये खोज शुक्र (Venus) ग्रह की पड़ताल से जुड़ी है. इसलिए संभव है कि वैज्ञानिक उस सिद्धांत को सही तरीके से परिभाषित कर दें कि धरती का अंत कैसे होगा.
साइंस फोकस की रिपोर्ट के मुताबिक, 'एक थ्योरी ये है कि शुक्र कभी पृथ्वी की तरह रहा होगा. इस सबसे गर्म ग्रह शुक्र में महासागर और धरती की सतह पर मौजूद टेक्टॉनिक प्लेट भी होंगी. जिसका वातावरण घने ग्रीनहाउस गैसों जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड एवं सल्फर डाइऑक्साइड से मिलकर बना होगा. कुछ वैज्ञानिकों का तो ये भी मानना है कि हो सकता है अरबों साल पहले इस ग्रह पर जीवन मौजूद रहा हो.'
शुक्र की सतह पर यान भेजेगा नासा
कहा जाता है कि शुक्र का ड्यूटेरियम-हाइड्रोजन रेशियो धरती की तुलना में 100 गुना अधिक है. इसकी वजह ये भी है कि 'शुक्र' में पहले बहुत पानी रहा होगा जो अब गायब हो चुका है. शुक्र से जुड़ी ऐसी कई गुत्थियों को सुलझाने के मकसद से नासा कुछ साल बाद 2028 से 2030 के बीच अपना DAVINCI+ Veritas Probes रवाना करेगा. वहीं एक थ्योरी ये भी है कि शुक्र पर मौजूद रहे ज्वालामुखियों ने इसे सबसे गर्म, असहनशील और दुर्गम बना दिया.
DAVINCI + मिशन पर जाने वाला प्रोब यानी यान इसकी सतह पर जाकर इसके ड्यूटेरियम-हाइड्रोजन अनुपात को फिर से मापेगा. आपको बता दें कि इससे पहले सन 1970 और 1980 के दशक में हासिल हुए इसी रेशियो के नतीजों को 100% सटीक नहीं माना जाता है. ये अनुपात हमें बता सकता है कि शुक्र पर कितना पानी रहा होगा.
अगर हमें पता चलता है कि शुक्र हमेशा पृथ्वी की तरह गर्म ग्रह था तो इससे हमारे सौर मंडल के बाहर ऐसे वातावरण वाले समान ग्रहों के बारे में बाकी जानकारियां जुटाने में आसानी हो सकती है.
धरती से होगा तुलनात्मक अध्ययन
वहीं एक सिद्धांत ये है कि शुक्र पर हुए ज्वालामुखी विस्फोटों से वातावरण में बहुत अधिक CO2 गैस उत्पन्न हुई जो एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस प्रभाव का कारण बनी. नासा की जांच हाई रेज्यूलेशन वाली तस्वीरें और रडार डेटा भी एकत्र करेगी ताकि हमें शुक्र की सतह के बारे में एक नया विचार मिल सके और इसकी सतह और वातावरण की तुलना धरती से की जा सके.
यानी माना जा रहा है कि शुक्र ग्रह से जुड़े सिद्धांतों का अध्यन करके धरती के अंत के समय का अनुमान भी लगाया जा सकेगा.
वहीं स्पेस साइंस से जुड़ी अन्य अहम खबरों की बात करें तो यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने खुलासा किया है कि वो भी भविष्य में 'शुक्र' का अध्ययन करने के लिए एनविजन (EnVision) नामक अपना एक यान भेजेगी.
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