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जब हस्यमयी धुंध ने धरती को ढक लिया था! वैज्ञानिकों ने कहा- अभी इससे भी बुरा वक्त देखना...

Gulabi
21 Dec 2020 4:16 PM GMT
जब हस्यमयी धुंध ने धरती को ढक लिया था! वैज्ञानिकों ने कहा- अभी इससे भी बुरा वक्त देखना...
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कोरोना वायरस (Coronavirus) ने साल 2020 में दुनिया को हिलाकर रख दिया है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Coronavirus) ने साल 2020 में दुनिया को हिलाकर रख दिया है. इससे पहले साल 1918 में स्पैनिश फ्लू (Spanish Flu) के कारण पूरी दुनिया में महामारी फैली थी. चारों तरफ से बस लोगों के मरने और हताहत की खबरें आ रही थीं. उस समय दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं बचा था, जहां इस महामारी से लोगों ने अपनी जान नहीं गंवाई थी.


आंकड़ों के अनुसार, इस बीमारी से तकरीबन 5 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. उस दौरान लोग एक-दूसरे से मिलने में भी हिचकिचाते थे. लोग महीनों तक अपने घरों में ही रहते थे.


धरती पर महामारी का प्रकोप
साल 1918 की इस महामारी के बाद से दुनिया ऐसी किसी महामारी का शिकार नहीं हुई थी, जिसमें लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई हो. लेकिन साल 2020 ने एक बार फिर उसी हालात को दोहराया है. यह साल भी बिल्कुल 1918 की तरह ही रहा. इस साल में भी कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के कारण दुनिया के अधिकांश देशों में संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) रहा.

लोग महीनों तक अपने घरों में ही कैद रहे. इस वायरस ने अब तक दुनिया में 7 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित किया है. इस महामारी से अब तक करीब 16 लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.


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धरती का अब तक का सबसे बुरा वक्त
इस साल ने पूरी दुनिया को मौत की दहशत में डाल दिया है. ऐसे में सभी यही सोच रहे हैं कि जल्दी से यह साल खत्म हो और उसके साथ बुरा वक्त भी खत्म हो जाए. वहीं वैज्ञानिकों का मत है कि अभी धरती पर इंसानों को सबसे बुरा वक्त देखना बाकी है.

आप जानकर दंग रह जाएंगे कि हमसे पहले भी यह धरती बहुत बुरा वक्त देख चुकी है. एक वक्त ऐसा भी था, जब इंसान करीब 18 महीने तक जमीन से साफ आसमान नहीं देख पाए थे.

रहस्यमयी धुंध ने धरती को ढक लिया
हार्वर्ड के मध्यकालीन इतिहासकार और पुरातत्वविद् माइकल मैककॉर्मिक ने बताया कि साल 536 ईस्वी में रहस्यमयी धुंध ने धरती के एक बड़े हिस्से को धुएं से ढक लिया था. तब इसकी वजह से करीब 18 महीनों तक लोग आसमान नहीं देख पाए थे. बताया जाता है कि वह वक्त अब तक का सबसे बुरा दौर था. उस समय हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.

उस दौरान सूर्य था पूर्णिमा के चांद की तरह
धुंध के कारण उस दौरान धरती का तापमान गिर गया था क्योंकि सूर्य की किरण धरती पर नहीं आ पा रही थी. बाइजेंटाइन इतिहासकार प्रोकोपियस ने लिखा है कि उस दौरान सूरज चमकता तो था, लेकिन उसकी गर्मी का अहसास नहीं होता था. सूर्य उस दौरान पूर्णिमा के चांद की तरह होता था, जिसमें रोशनी और शीतलता रहती थी.

'रोटी की विफलता' का साल
उस दौरान गर्मियों में भी अधिकतम तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक रहा था. पिछले 2300 वर्षों में यह सबसे ठंडा दशक था. कुछ इतिहासकारों का दावा है कि उस साल चीन में गर्मियों में भी बर्फ गिरी थी.

साल 536 से 539 को रोटी की विफलता का दौर कहते हैं. साल 536 में जो भी हुआ, उसका असर लंबे समय तक उत्तरी गोलार्ध पर रहा था.

कोई बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट
साल 536 में क्या हुआ था, इसको लेकर हुए एक रिसर्च में बताया गया है कि शायद उस दौरान उत्तरी अमेरिका (North America) या आइसलैंड (Iceland) में कोई बड़ा ज्वालामुखी (Volcano) विस्फोट हुआ होगा. फिर उसी की राख और धुआं पूरे उत्तीर गोलार्ध में फैला होगा. शायद इसी वजह से दुनिया ने यह भयनक नजारा देखा था.


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