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6.6 करोड़ साल पहले क्षुद्रग्रह के टकराव के कारण पृथ्वी पर महाविनाश (Mass extinction on Earth) की स्थिति पैदा हो गई थी. इसमें 90 प्रतिशत प्रजातियों का विनाश हो गया था लेकिन चर्चा सबसे ज्यादा इसी बात की होती है कि महविनाश में डायनासोर (Extinction of Dinosaurs) नष्ट हो गए थे. लेकिन पूरा सच नहीं है. इस महाविनाश में कुछ उड़ सकने वाले डायनासोर भी बच गए थे जिनके वंशजो को हम पक्षियों के रूप में जानते हैं. लेकिन क्या होता अगर वह क्षुद्रग्रह टकराया ही ना होता और आज डायनासोर भी जिंदा होते और हम इंसान (Dinosaurs with Humans) भी पनप चुके होते. ऐसे में दुनिया कैसी होती.
महाविनाश के बाद ही विकसित हो पाए इंसान
यह सच है कि इस महाविनाशके बाद ही मानव विकास संभव हो सका. इसके बाद ही स्तनपायी जीवों का पनपना शुरू हुआ जिसमें छोटे प्रोटो प्राइमेट शामिल थे. जिनसे बाद में मानवों का उद्भव हो सका. अगर क्षुद्रग्रह ना टकराया होता और डायनासोर बच गए होते तो क्या आज रेप्टर्स चंद्रमा पर झंडा फहरा रहे होते या इंसान उस तरह से विकसित ही ना हो पाते जैसे वे आज हो सके हैं.
बहुत ही गहरे सवाल
यह सब एक विज्ञान फंतासी के जैसा लगता है कि लेकिन उद्भव वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का एक नया पहलू भी देता है. इसके साथ उद्भव के कुछ गहरे सवाल भी पैदा होते हैं. क्या इंसानों का विकास केवल संयोग से हो पाया है या फिर क्या बुद्धिमान उपकरणों के उपयोगकर्ताओं का उद्भव अटल था.
इंसानों ने पूरी तरह से बदली है दुनिया
मस्तिष्क उपकरण, भाषा और विसाल सामाजिक समूह इंसानों को इस ग्रह पर सबसे ज्यादा वर्चस्व वाली प्रजाति बनाती है. आज होमोसेपियन्स की संख्या 8 अरब हो चुकी है जो कि सातों महाद्वीपों में फैले हैं. भार के अनुसार दुनिया जंगली जानवरों से अधिक इंसान हैं. इंसानों ने पृथ्वी की आधी से ज्यादा जमीन को खुद के भोजन के लिए बदल दिया है.
कैसे होते आज के डायनासोर
यह एक बहस का विषय हो सकता है कि क्या इंसानों का उद्भव वास्तव में अटल ही था. 1980 में जीवाश्मविज्ञानी डेल रसैल ने एक विचार प्रयोग का प्रस्ताव दिया था जिसमें मांसाहारी डायनासोर एक बुद्धिमान उपकरण उपयोगकर्ता के रूप में विकसित हो जाते. यह डायनासोरॉइड बड़े मस्तिष्क वाला जीव होता और इंसानों की तरह जिसका अंगूठा उंगलियों से विपरीत जा पाता और वह सीधा भी चल पाता.
दिशा की सीमाएं
यह असंभव तो नहीं हैं लेकिन ऐसा होने की संभावना भी शायद नहीं होती. जानवरों का जीवविज्ञान उद्भव कि दिशा को रोकने का काम करती है. हमारे शुरुआती बिंदु ही हमारे अंतिम बिंदु साबित होते हैं. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे कि यदि आप कॉलेज छोड़ दें तो आप कभी भी वैज्ञानिक, वकील, डॉक्टर वगैरह नहीं बन सकते. लेकिन आप एक कलाकार, या व्यवसायी या एंत्रोपेन्यॉर बन सकते हैं.
डायनासोर का भी हुआ उद्भव
जीवन में कुछ दरवाजे खुलते है तो कई दूसरे बंद भी होते हैं. उद्भव के साथ भी ऐसा ही है. ज्यूरासिक युग में, अलग-अलग जलवायु, महाद्वीरों आदि में कई डायनासोर बहुत विशाल थे 30-50 टन और 30 मीटर लंबे , लेकिन दूसरे डायनासोर इस तरह से विकसित नहीं हुए. सॉरोपॉड सबसे ज्यादा विकसित और विविध हुए. इनमें उद्भव या विकास के अनुसार बदलाव भी देखने को मिले. इसी तरह से कई मांसाहारी डायनासोर भी विशाल होकर शीर्ष शिकारी जीव के रूप में विकसित हुए.
डायनासोर नहीं बन पाते बुद्धिमान जीव
डायनासोर विशाल शरीर के रूप में तो अच्छे से विकसित हुए लेकिन बड़े मस्तिष्क के रूप में इस तरह से नहीं हो सके. समय के साथ उनके दिमाग के आकर ने कमजोर चलन दिखाया जूरासिक युग में बहुत से डायनासोर का छोटा दिमाग था. उत्तर क्रिटेशियस काल में टायरेनोसॉरस और डकबिल जैसे डायनासोरों के दिमाग बड़ा जरूर हो गया था. लेकिन इंसान के दिमाग की तुलना में बहुत ही कम था. कुल मिलाकर 10 करोड़ सालके डायनासोर के इतिहास में ऐसे संकेत नहीं मिलते कि उन्होंने कोई बहुत ज्यादा विकास किया होगा. इस लिहाज से इसकी संभावना कम होती कि वे एक बुद्धिमान प्रजाति में विकसित हो पाते
यह भी ज्यादा ही संभव है कि वे स्तनपायी जीवों को भी हटा नहीं पाते या उन पर हावी नहीं हो पाते. वहीं स्तनपायी जीव कभी विशाल आकार लेने की स्थिति में नहीं आ पाते लेकिन उनके मस्तिष्क का विकास जरूर होता रहता कई जीवों में आज भी इंसानों से भी ज्यादा भारी दिमाग है. आज डायनासोर के कुछ वंशज जैसे कि कौवों या तोतों का मस्तिष्क जटिल दिमाग होता है, लेकिन अन्य बड़े दिमाग वाले जीव ज्यादा जटिल बर्ताव करने में सक्षम हैं. वहीं अफ्रीका में प्राइमेट इंसानों में विकसित हो पाए, लेकिन दुनिया के बाकी हिस्सों में ऐसा नहीं हो सका. यानि डायनासोर खत्म होते या नहीं इंसानों के उद्भव के लिए सही संयोजन, अवसर और भाग्य की भी जरूर थी.