विज्ञान

अगर 1 किमी लंबा ऐस्टरॉइड धरती से टकरा जाए तो क्या होगा? कल्पना से परे होगी तबाही...4 बार ऐसा हो चुका है!

Tulsi Rao
6 Jun 2022 3:52 AM GMT
अगर 1 किमी लंबा ऐस्टरॉइड धरती से टकरा जाए तो क्या होगा? कल्पना से परे होगी तबाही...4 बार ऐसा हो चुका है!
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मुताबिक हमारी धरती 37,000 साल में एक बार ऐसे ऐस्टरॉइड का सामना करती है जो दुनिया का खत्म कर सकता है। व्यापक रूप से यह माना जाता है कि अगर कोई ऐस्टरॉइड जिसका व्यास 1 किमी से अधिक हो, पृथ्वी से टकराता है तो वह धरती पर मौजूद जीवन को समाप्त कर सकता है। ऐसी टक्कर में न सिर्फ करोड़ों लोग की मौत होगी बल्कि उसके बाद भयानक भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी से भी करोड़ों की जान जा सकती है।

डेलीस्टार की खबर मुताबिक अगर इस तरह का ऐस्टरॉइड धरती से टकराता है तो राख के बादल सूर्य की रोशनी को धरती तक आने से रोक देंगे और कई साल के लिए दुनिया अंधेरे में डूब जाएगी। इससे बाकी बचे लोगों के लिए भी जीवन की उम्मीद खत्म हो जाएगी। इतिहास में कई बार धरती विशालकाय ऐस्टरॉइड्स की टक्कर को झेल चुकी है। हर बार हमारी पृथ्वी समय की कसौटी पर खरी उतरती रही और खुद अपना पुनर्निर्माण करना जारी रखा।
ऐस्टरॉइड ने ही ग्लोबल वॉर्मिंग को किया ट्रिगर
अब तक चार बार हमारी धरती इस तरह के खतरों का सामना कर चुकी है। करीब 2.229 अरब साल पहले ऑस्ट्रेलिया में एक ऐस्टरॉइड ने याराबुब्बा क्रेटर का निर्माण किया था। इस टक्कर से पहले पृथ्वी बड़े पैमाने पर एक बर्फीला ग्रह थी। लेकिन याराबुब्बा टक्कर ने ही ग्लोबल वॉर्मिंग को ट्रिगर किया था जिसने करीब आधा ट्रिलियन टन जलवाष्प को वायुमंडल में छोड़ दिया था। रूस के उत्तरी साइबेरिया में 3.50 करोड़ साल पुराना विशालकाय क्रेटर भी इसका उदाहरण है जो ऐस्टरॉइड के टकराने से बना था।
ऐस्टरॉइड ने किया था डायनासोर का अंत
इसी तरह मेक्सिको में Chicxulub क्रेटर 6.60 करोड़ साल से अधिक पुराना है। माना जाता है कि यह उसी ऐस्टरॉइड के टकराने से बना है जिसके पृथ्वी पर गिरने के बाद करीब 75 फीसदी जीवित प्राणियों का सफाया हो गया था जिसमें डायनासोर भी शामिल थे। सबसे ताजा घटना 19वीं सदी की है जब मेक्सिको के खगोलशास्त्री जोस बोनिला ने 1883 में 300 से अधिक रहस्यमय चीजों को सूर्य के सामने से गुजरते हुए देखा था। 2011 में पता चला कि वे संभवतः अरबों टन वजनी एक कॉमेट के टुकड़े थे जो धरती से सिर्फ कुछ सौ किमी की दूरी पर से गुजरा था।


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