विज्ञान

क्या कहता है विज्ञान, अंतरिक्ष कैसे पहुंचाए जाते हैं उपग्रह

Tulsi Rao
30 April 2022 6:38 PM GMT
क्या कहता है विज्ञान, अंतरिक्ष कैसे पहुंचाए जाते हैं उपग्रह
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अंतरिक्ष (Space) में जाना इंसान के लिए सदियों से एक सपना रहा है. जहां इंसान को वायुमंडल में ही ऊंचाई तक पहुंचने में सैकड़ों साल लग गए और वह विमान बना पाया. अंतरिक्ष में जा पाना इंसान के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. अंतरिक्ष में जाना आसान नहीं है. आज कई अंतरिक्ष यान और कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में इतनी ज्यादा मात्रा में पहुंचाए जा रहे हैं कि ऐसा लगता है कि (Satellite) अब यह बहुत आसान काम हो गया है. लेकिन यह आज भी बहुत मुश्किल काम है. अंतरिक्ष में रॉकेट (Rocket) के जरिए यानों को पहुंचाना बहुत ही चुनौती भरा और खर्चीला काम है जिस पर हमारे वैज्ञानिक आज भी काम कर रहे हैं.

कब से शुरू होता है अंतरिक्ष
अंतरिक्ष में चीजें कैसे जाती हैं यह जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि अंतरिक्ष की शुरुआत कहां से होती है. इस की शुरुआत कारमान रेखा से होती है जो पृथ्वी की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाती है, जबकि आमतौर पर वायुयान केवल 10 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक ही जा सकते हैं.
वायुमंडल तो बहुत ऊपर तक
तकनीकी तौर पर हमारे वायुमंडल के प्रभाव के लिहाज से देखें को अतंरिक्ष पृथ्वी से 10 हजार किलोमीटर ऊंचाई से शुरू होता है जहां पृथ्वी का असर पूरी तरह से खत्म माना जा सकता है. लेकिन हमारे कृत्रिम उपग्रह इस सीमा से काफी नीचे तक पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं. फिर भी कारमान रेखा को इस प्रश्न के नजरिए से अंतरिक्ष की शुरुआत माना जा सकता है.
वायुयान के साथ समस्या
सवाल यह उठता है कि क्या वायुयानों को अंतरिक्ष तक ले जाया जा सकता है या नहीं. इसका उत्तर ऐसा क्यों नहीं होता इसमें छिपा है. सबसे पहले तो जैसे जैसे हम ऊपर उठते हैं हवा और ऑक्सीजन दोनों ही कम होने लगते हैं. जहां वायुयानों अपनी उड़ान के लिए हवा और ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं. हमें भी सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. वायुयान के इंजन सामने से हवा को खींचते हैं और उससे ईंधन जलता है जदो ऑक्सीजन से मिला हुआ होता है. इससे हवा गर्म होती है जो बहुत तेजी से पीछे की ओर निकलती है और विमान आगे बढ़ता है.
वायुयान क्यों नहीं
लेकिन ज्यादा ऊंचाई में वायुयानों को पर्याप्त हवा या ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. इसलिए विमान को ज्यादा ऊंचाइयों पर नहीं उड़ाया जा सकता है. इसके अलावा ऊंचाइयों में भी इंसान का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है इसलिए विमान को अगर इतनी ऊंचाई तक ले जाना तो ऑक्सीजन की भी व्यवस्था करनी होगी. इसलिए अंतरिक्ष में जाने के लिए हमें विमान की जगह दूसरी व्यवस्था की जरूरत पड़ी.
एक समाधान के रूप में रॉकेट
यहीं पर हमें रॉकेट की जरूरत पड़ी जिसने हमारी इन समस्याओं का हल निकला. जहां वायुयान के इंजन को हवा से ही ऑक्सीजन मिलती है, ऐसा रॉकेट के इंजन के साथ नहीं होता है. उसके लिए ऑक्सीजन या हवा की आपूर्ति के लिए अलग से व्यवस्था होती है जो रॉकेट अपने साथ खुद ले जाते हैं. इसकी वजह से रॉकेट में दूसरे सामान और यात्रियों के लिए जगह कम हो जाती है. लेकिन वे ऊंचे अंतरिक्ष में भी काम कर सकते हैं जहां हवा बिलकुल भी नहीं होती है. और जहां अधिकांश सैटेलाइट काम करते हैं.


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