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विज्ञान
कौन सी शक्ति छुपी है भालुओं के खून में? नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लगाया पता
Gulabi Jagat
26 July 2022 1:55 PM GMT
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काले भालू साल में सात महीने तक शीतनिष्क्रियता में रहते हैं
काले भालू (Black Bear) साल में सात महीने तक शीतनिष्क्रियता (Hibernation) में रहते हैं और हैरानी की बात है कि इसके बाद वे तुरंत ही चुस्त दुरस्त और सेहतमंद (Healthy) अवस्था में आ जाते हैं. लेकिन इंसान के साथ ऐसा कभी नहीं होता है कि वे लंबे समय तक सुस्त रहें तो तुरंत ही सक्रिय हो जाएं. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इसका कारण पता लगा लिया है.
इंसान (Humans) के लिए कसरत बहुत जरूरी है आखिर ऐसा क्या है कि जानवर (Animals) बिना कसरत किए ही सेहतमंद होते हैं. चलिए मान लिया जाए कि किसी वजह से जानवरों को कसरत करने की जरूरत नहीं पड़ती तो क्या सात महीने तक आलसियों की तरह रहने के बाद भी इंसान तो क्यो कई जानवर चुस्त दुरुस्त रह सकता है? जी हां, काले भालू (Black Bear) सात महीने तक खुद को शीतनिष्क्रियता यानि Hibernate रखते हैं, सुस्त रखते हैं और उसके बाद वे जल्दी ही चुस्त दुरुस्त हो जाते हैं. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसके पीछा का रहस्य सुलझा लिया है.
वैज्ञानिकों ने काले भालू के कून में ऐसा कुछ रोचक पाया है जिससे वे खुद को साल में सात महीने तक शीतनिष्क्रियता (Hibernation) में रख पाता हैं और उसके बाद भी चुस्त दुरुस्त ही बने रहते हैं. लेकिन अगर हम इंसान ऐसा सुसुप्त पड़े रहे तो हम इंसानों की मांसपेशियां तो निष्क्रियता की वजह से ही खराब होने लगेंगी. लेकिन जब भालू इतने लंबे समय बाद उठता है, वह खुद को चुस्त दुरुस्त और शक्तिशाली शरीर वाला महसूस करता है.
काले भालू (Black Bear) अपनी मांसपेशियां के भार और शक्ति को एक साल पहले ही कायम कर लेते हैं और थोड़े से या नहीं के बराबर हिलने डुलने और ना ही कुछ खाने या निकासी करने के बाद भी इसका फायदा होता है. सालों से वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर यह महाशक्ति काम कैसे करते हैं. नए अध्ययन ने सुझाया है कि भालू खून (Blood of Bear) में इसका रहस्य छिपा हुआ है. इतना नहीं शोधकर्ताओं को लगता है कि इससे इंसान की मांसपेशियां भी क्षीणता (atrophying) से बच सकती हैं.
एक बार तो यह सुनने में अजीब सा लगता है, लकिन जब जापान के शोधकर्ताओ ने सात शीतनिष्क्रियता (Hibernation) वाले भालुओं के खून (Blood of Bear) का सीरम लेकर उन्हें मानव कंकालीय मांसपेशियों की कोशिकाओं के टिशू कल्चर में सीधे डाला तो उन्होंने पाया कि 24 घंटों में ही कोशिकाओं की प्रोटीन मात्रा में इजाफा हो गया. उसी समय के नियायमक प्रोटीन (regulatory protein) का उत्पादन भी कम हो गया जो बेकार मांसपेशियां को हटाने में अहम भूमिका निभाता है.
ये कोशिकीय बदलाव केवल तभी देखने को मिले जब शीतनिष्क्रिय (Hibernating) खून को डाला गया. जब खूनको सक्रिय भालुओं (Black Bear) से गर्मयों के मौसम में लिया गया तब सीरम ने मानव की कांकालीय मांसपेशियों की कोशिकाओं के प्रोटीन विखंडन की प्राकृतिक प्रक्रिया को नहीं रोका. हिरोशिमा यूनिवर्सटी के फिजियोलॉजिस्ट मिट्सोनोरी मियाजाकी ने बताया कि उन्होंने पाया कि है कि शीतनिष्क्रिय भालु के सीरम में कुछ कारकों की उपस्थिति पाई है जो संस्कृतिकृत कंकालीय मांसपेशी कोशिकाय के प्रोटीन मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने का काम कर सकते हैं. इसके साथ ही वे मांसपेशियों के भार को कायम रखने में भी योगदान देते हैं.
लेकिन इस कारक की पहचान अभी तक नहीं हुई थी. काले भालू (Black Bear) के सीरम पर इस तरह के अध्ययन भी हो चुके हैं. लेकिन इनमें से कोई भी अध्ययन उस महाशक्ति के कारक को नहीं समझ पाया था. साल 2018 में शीतनिष्क्रिय (Hibernating) भालू के सीरम से मानवीय कंकाली मासपेशीय कोशिका के प्रोटीन के उत्पादन में कमी होने लगी. इसी तरह का प्रभाव चूहों (Rats) के कंकाली मासपेशीय कोशिकाओं में भी दिखाई दिया था.
फिलहाल अभी हम इतना ही जानते हैं, लेकिन मियाजाकी इस दिशा में विस्तृत से जानने के लिए प्रतिबद्ध हैं. शीतनिष्क्रियता (Hibernation) वाले काले भालुओं (Black Bear) में इसके पीछे की प्रणाली को समझ कर इंसानों में भी विकसित किया जा सकता है जिससे भविष्य में इंसान (Humans) को कभी रोगी होकर बिस्तर से ना बंधना पड़े. इस तरह की तकनीक ना केवल इंसानों को लंबे समय तक नीरोगी बना सकी और शायद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उपयोगी हो सकेगी.
Tagsभालुओं
Gulabi Jagat
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