विज्ञान

मंगल पर विकिरण के असर के बारे में क्या बता रहा है रोवर के आंकड़ों का अध्ययन

Subhi
29 Jun 2022 5:29 AM GMT
मंगल पर विकिरण के असर के बारे में क्या बता रहा है रोवर के आंकड़ों का अध्ययन
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मंगल पर जीवन के संकेतों की तलाश जारी है. बेशक मंगल ग्रह पर हालात अभी पृथ्वी की तरह जीवन की अनुकूलता नहीं हैं, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है कि यहां जीवन किसी भी रूप में हो ही नहीं सकता है

मंगल पर जीवन के संकेतों (Life on Mars) की तलाश जारी है. बेशक मंगल ग्रह पर हालात अभी पृथ्वी की तरह जीवन की अनुकूलता नहीं हैं, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है कि यहां जीवन किसी भी रूप में हो ही नहीं सकता है या नहीं ही रहा होगा. वास्तव में वैज्ञानिक जितनी भी ज्यादा गहराई से पड़ताल कर रहे हैं मामला उतना ही जटिल भी होता जा रहा है. नए अध्ययन ने इसी जटिलता को गहरा करने का काम किया है. नासा के क्यूरोसिटी रोवर (Curiosity Rover) के आंकड़ों के अध्ययनों ने खुलासा किया है कि मंगल पर खगोलीय विकिरण (Cosmic Radiations) इतना ज्यादा घातक है कि उनका असर सतह पर ही नहीं जमीन के नीचे भी हो रहा है.

सतह के नीचे ज्यादा खुदाई की जरूरत

नासा के क्यूरोसिटी और पर्सिवियरेंस जैसे रोवर मंगल की सतह के नीचे पुरातन जीवन के संकेतों की तलाश कर रहे हैं. क्यूरोसिटि की आंकड़े जहां उपलब्ध हैं तो पर्सिवियरेंस अब भी आंकड़े हासिल कर रहा है. नए प्रमाण दर्शाते हैं कि मंगल पर जीवन के संकेतों की तलाश के लिए हमें और ज्यादा गहराई तक खुदाई करनी होगी.

कितनी गहराई तक

इन आंकड़ों के आधार पर यह नतीजा सामने आया है कि मंगल ग्रह पर जीवन के संकेतों को खोजने के लिए कम से कम दो मीटर या 6.6 फुट तक खुदाई करनी होगी जिससे उस वहां तक पहुंच बनाई जा सके जहां खगोलीय विकिरण का प्रभाव नहीं पहुंच सका हो. शोधकर्ताओं ने इस बात की विवेचना भी की है कि इसकी वजह क्या हो सकती है.

खगोलीय विकिरण घातक क्यों

दरअसल मंगल ग्रह की लंबे समय से कोई मैग्नेटिक फील्ड नहीं है, उसका वायुमंडल बहुत पतला है. इसी वजह से पृथ्वी की तुलना में वहां बहुत ही अधिक मात्रा में खगोलीय विकिरणों का सामाना करना पड़ रहा है. और खगोलीय विकिरण अमीनो एसिड जो जीवन का एक प्रमुख घटक है, को नष्ट कर देता है.

पहले से ज्यादा तेज

शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि यह पूरी प्रक्रिया खगोलीय कालक्रम के दृष्टिकोण से बहुत ही छोटे अंतराल में हुई है. नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के भौतिकविद एलेक्जेंडर पावलोवने बताया कि उनके नतीजे सुझाते हैं कि अमीनो एसिड को खगोलीय विकिरणों ने मंगल की चट्टानों और मिट्टी की सतह पर जितना पहले समझा गया था, उसे कहीं तेज गति से नष्ट कर दिया होगा.

2 करोड़ साल का समय

अभी जो मंगल ग्रह पर रोवर अभियान भेजे गए हैं जो करीब 2 इंच या 5 सेटीमीटर तक की खुदाई कर रहे हैं. इस गहराई पर मौजूद अमीनो एसिड को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए 2 करोड़ साल का समय लगेगा. इसके अलावा पानी और छिद्रों की उपस्थिति ने अमीनो एसिड के नष्ट होने की दर को और बढ़ा दिया होगा.

विकिरण और अमीनो एसिड

मंगल पर पृथ्वी की तुलना में खगोलीय विकिरण 750 गुना अधिक हो सकता है. इससे सूर्य, सुपरनोवा और अन्य खगोलीय विकिरण चट्टानों में अंदर तक घुस जाते हैं, उनका आयनीकरण करते हैं और यहां तक कि टकराने वाला जैविक अणुओं को भी नष्ट कर देते है. अमीनो एसिड जीवन के संकेत तो नहीं हैं लेकिन उनका आधार जरूर है. इसलिए शोधकर्ताओं ने इन पर खगोलीय विकिरण के प्रभाव का सिम्यूलेशन द्वारा अध्ययन किया.

शोधकर्ताओं ने पाया कि मंगल की मिट्टी में अमीनो एसिड विकिरण की वजह से तेजी से खत्म हुए होंगे. यानि दस करोड़ साल पहले अगर कोई अमीनो ऐसिड मंगल पर रहा होगा तो विकिरण से नष्ट हो गया होगा. वहीं वैज्ञानिकों को जो भी पुरानतन मंगल में जीवन के संकेत मिले हैं वे अरबों साल पुराने हैं. ऐसे में मंगल की सतह के कुछ ही सेंटीमीटर नीचे जैविक संकेत मिलना संभव नहीं हैं.


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