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दुनिया भर के महासागर जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हो रहे हैं. इसका सीधा असर अन्य जीवों के साथ बेबी शार्क पर भी पड़ रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क |एपोलेट शार्क पर हुए शोध से पता चला है कि तेजी से बढ़ने वाली शिशु शार्क गर्म महासागरों में छोटी रह जाती है जो उनके अस्तित्व के लिए खतरा होती हैं.
दुनिया भर के महासागर जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हो रहे हैं. इसका सीधा असर अन्य जीवों के साथ बेबी शार्क पर भी पड़ रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है इस वजह से उन्हें बचे रहने के लिए ज्यादा ऊर्जा की जरूरत हो रही है जिससे उनका आकार छोटा हो सकता है. उनका कहना है कि गर्म हालातों ने शार्कों की वृद्धि प्रक्रिया पर विपरीत असर डाला है. अब शार्क को अपने अंडे से बच्चे जल्दी निकाल देती हैं.
वैज्ञानिकों ने न्यूइंग्लैंड एक्वेरियम, ऑस्ट्रेलिया और न्यू गुनिया में रहने वाली एपोलेट शार्क पर काम करते हुए अध्ययन किया. न्यू इंग्लैंड एक्वेरियम में एंडरसन कैबोट सेटंर फॉर ओसीन लाइफ के प्रमुख वैज्ञानिक और वाइस प्रेसिडेंट जॉन मैंडलमैन का कहना है कि इस शोध के नतीजे दूसरी शार्क पर भी लागू होते हैं जिनमें वे शार्क भी शामिल हैं जो अंडे देने की जगह बच्चों को जन्म देती हैं. शोधकर्ताओं का यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ था.
मैंडलमैन का कहना है कि बहुत ही मजबूत प्रजाति मानी जाने वाली एपोलेट शार्क उतनी मजबूत नहीं है जितना की माना जाता है. और यह बात दूसरी शार्क पर भी लागू होती है. बदलते हुए हालातों में हमें बहुत चौकस रहना होगा. वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के लिए एक्वेरियम में शार्क के लिए ब्रीडिंग कार्यक्रम का उपयोग किया उन्होंने 27 शार्क में से कुछ को औसत गर्मी के हालातों में पाला जिसमें औसत तापमान 27 डिग्री सेल्सियस था. और बाकी को 31 डिग्री सेल्सियस में पाला जो बाद में इस सदी का औसत तापमान हो जाएगा.
वैज्ञानिकों ने पाया की सबसे गर्म तापमान में पली शार्क (Shark) का भार उन शार्क के भार से काफी कम था जो आज के औसत तापमान में रखी गई थीं. उनके मैटाबॉलिक कारगरता (Metabolic Efficiency) में काफी कमी देखी गई. वैज्ञानिकों ने पाया कि एपोलेट शार्क वैज्ञानिकों के बीच अपनी कठोरता के लिए जानी जाती है, इसलिए बढ़ती गर्मी पर उनका असर एक चिंताजनक सवाल बनता जा रहा है. उनका कहना है कि अगर एपोलेट शार्का उष्मा का दबाव सहन नहीं कर सकती तो कम सहनशील प्रजातियों का क्या हाल हो रहा होगा.
एपोलेट शार्क छोटी शार्क होती हैं जो समुद्र के तले के पास रहते हैं. एक मीटर लंबी शार्क आमतौर पर इंसान के लिए नुकसानदायक नहीं होती हैं. वे अपने बड़े धब्बों के लिए जानी जाती हैं.उनके फिन सेना के कंधों पर लगे बैजेस की तरह दिखते हैं. यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटन्ड स्पीसेस इस प्रजाति को स्थायी और कम चिंतनीय की श्रेणी में रखा गया है. शार्क के हालात दुनियाभर में अच्छे नहीं हैं. इस साल के एकअध्ययन के अनुसार पिछले पाचास सालों में महासागरों की शार्क की संख्या में तेजी से कमी आई है.
ज्यादा मछली पकड़ना एक प्रमुख चिंता है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण भी शार्क के लिए खतरा हैं. इस अध्ययन में एपोलेट शार्क तो बच गईं, लेकिन जो ज्यादा गर्म तापमान में बढ़ी थीं, उनके आकार में विकृति आ गई. इस अध्ययन के प्रमुख लेखक कारोलिन व्हीलर का कहना है कि अगर वे छोटी रह जाती हैं तो उन्हें कम पोषण में पैदा किया गया है और उन्हें जल्दी ही भोजन की तलाश करनी पड़ती है. उनके पास आसपास के वातावरण में तालमेल बनाने में समय लगता है.
इस अध्ययन में शामिल जुआन रुबैलकाबा का कहना है कि पड़ताल से जलवायु परिवर्तन का समुद्री प्रजातियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी मिलती है. शार्क तेजी से बढ़ती हैं, लेकिन बहुत ही छोटे आकार तक बढ़ना उनके अस्तित्व के लिए समस्या बन जाता है. रुबैलकाबा के अनुसार यह केवल शार्क में ही नहीं बल्कि बहुत सी मछलियों के साथ हो रहा है. यह अध्ययन बताता है कि शार्क जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित नहीं हैं. इन प्रजातियों को बचाने के लिए हमें इस बारे में और ज्यादा अध्ययन करने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन का इन प्रजातियों पर क्या असर होता है.
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