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जब भी कोई ग्रहण पड़ता है तो ये दो तरह का होता है-चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण. ग्रहण दरअसल हमारे सौरगंगा में सूरज, चांद और धरती के बीच की खास स्थितियां होती है, जो साल में कई बार बनती है. कई बार ये संयोग बहुत विलक्षण और बहुत तीव्र असर वाले भी होते हैं.ग्रहण में धार्मिक क्रियाकलाप रोक दिए जाते हैं तो ज्योतिष विज्ञान इसकी व्याख्या अलग तरह के करता है. जानते हैं कि विज्ञान यानि साइंस इसके बारे में क्या कहता है, वो इन खगोलीय घटनाओं को किस तरह देखता है.
खगोलशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण एक तरह का ग्रहण है जब चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है. पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूरी तरह या आंशिक तौर पर चंद्रमा द्वारा ढंक लिया जाता है. मतलब धरती और सूर्य के बीच धुरी पर घूमते रहने के दौरान आमतौर पर धरती और सूर्य का सीधा रिश्ता होता है. दोनों एक दूसरे को देखते हैं लेकिन कई बार इसी भ्रमण के दौरान चंद्रमा दोनों के बीच आ जाता है. तब वह सूर्य के पृथ्वी पर आने वाले प्रकाश पर थोड़ा या ज्यादा असर जरूर डालता है.
ये असर कभी कभी बहुत मामूली होता है तो कई बार घंटों में. एक बार तो धरती के कुछ हिस्सों में सूर्य कई दिनों तक नजर ही नहीं आया था. कई बार चंद्रमा इस तरह सूरज को ढंकता है कि एक रिंग सी बनने लगती है. ये प्रकाश इतना तीव्र होता है कि इसे नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए. इस बार का सूर्य ग्रहण कुछ इसी तरह का है. साइंटिस्ट भी इसे नंगी आंखों से नहीं देखने की सलाह दे रहे हैं.
भौतिक विज्ञान की दृष्टि में जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ देर के लिए ढंक जाता है. इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है. पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चांद पृथ्वी की. कभी-कभी चांद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है. जब चांद ऐसी स्थिति में सूरज की रोशनी रोकता है तो उसका साया धरती पर फैल जाता है. ऐसा हमेशा अमावस्या को ही होता है.
इस साल दीवाली के तुरंत बाद यानि अगले दिन ही सूर्यग्रहण है, इसी वजह से गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा. सूर्यग्रहण शाम को 04 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर करीब डेढ़ घंटे के आसपास तक चलेगा.
वैसे जो सूर्यग्रहण इस बार पड़ रहा है, वो पूर्ण ग्रहण जरूर है लेकिन इसको धऱती के बहुत कम क्षेत्रों पर देखा जा सकेगा. जब भी पूर्ण ग्रहण होता है तो चांद को सूरज के सामने से गुजरने में करीब दो घंटे लग जाता है. ऐसी हालत में कुछ देर के लिए दिन में रात सी लगने लगती है. आसमान में अंधेरा हो जाता है.
सूर्यग्रहण की तीन स्थितियां
1. पूर्ण सूर्य ग्रहण – पूर्ण सूर्य ग्रहण तब जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है. चांद पूरी तरह पृ्थ्वी को अपनी छाया के क्षेत्र में ले लेता है.
2. आंशिक सूर्य ग्रहण – आंशिक सूर्यग्रहण में जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है, चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है.
3. वलयाकार सूर्य ग्रहण – वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है मतलब चांद सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है.
चंद्रग्रहण क्यों ज्यादा होते हैं सूर्यग्रहण से
ऐसा माना जाता है लेकिन साइंस कहती है कि चन्द्र ग्रहण से कहीं अधिक सूर्यग्रहण होते हैं. 3 चन्द्रग्रहण पर 4 सूर्यग्रहण का अनुपात होता है. चंद्रग्रहणों के अधिक देखे जाने का कारण यह होता है कि वे पृ्थ्वी के आधे से अधिक भाग में दिखलाई पडते हैं, जब कि सूर्यग्रहण पृ्थ्वी के बहुत बड़े भाग में प्राय सौ मील से कम चौड़े और दो से तीन हजार मील लम्बे भूभाग में दिखलाई पडते हैं.
सूर्यग्रहण को साइंस किसी उत्सव की तरह लेता है
दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए ये अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता. ये वो समय होता है जब खगोल यानि ब्रह्मांड में कई विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं होती हैं. वैज्ञानिकों को नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है. 1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक नें सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही खोज के सहारे हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया.