विज्ञान

क्या कहता है विज्ञान: आखिर क्यों अपनी ही धुरी पर घूमती है पृथ्वी?

Subhi
17 July 2022 3:45 AM GMT
क्या कहता है विज्ञान: आखिर क्यों अपनी ही धुरी पर घूमती है पृथ्वी?
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सौरमंडल और उसके साथ पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ इसके बारे में वैज्ञानिक काफी कुछ जानते हैं और उनकी व्याख्या भी कर पाए हैं. लेकिन फिर भी सौरमंडल के बारे में बहुत सी जानकारियों और प्रक्रियाओं में कुछ सवाल बहुत मामूली से हो कर रह जाते हैं

सौरमंडल (Solar System) और उसके साथ पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ इसके बारे में वैज्ञानिक काफी कुछ जानते हैं और उनकी व्याख्या भी कर पाए हैं. लेकिन फिर भी सौरमंडल के बारे में बहुत सी जानकारियों और प्रक्रियाओं में कुछ सवाल बहुत मामूली से हो कर रह जाते हैं. ऐसा ही एक सवाल है. आखिर पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने (Rotation of Earth) कैसे लगी. इस सवाल का जवाब विज्ञान के पास है, और लेकिन इसका बहुत कम जिक्र होता है. इसकी व्याख्या भी सौरमंडल के निर्माण की शुरुआत में छिपी है. आइए जानने की कोशिश करते है कि आखिर इस मामले में क्या कहता है विज्ञान (What does Science Say)?

सौरमंडल के निर्माण के समय से

आज से 4.57 अरब साल पहले जब हमारे सौरमंडल का निर्माण हो रहा था, तब वह केवल एक गैस के बादल से बना था जिसे नेबुला कहते हैं. ये धूल और गैस गुरुत्व के बल के कारण जमा होते गए जो पहले से वृत्ताकार में घूम रहे थे. लेकिन जैसे ही ये सब एक जगह पर जमा होने लगे तब वे सूर्य और और ग्रहों का निर्माण होने लगा.

पहले ही हो गई थी घूर्णन की शुरुआत

इसी निर्माण के दौरान ही ये पिंड अपना कोई आकार लेने से पहले ही घूर्णन करने लगे थे और यह घूर्णन की गति तेज होने लगी थी. जब आप किसी घूमते हुए पिंड को और भी सघन करते हैं तो उसकी घूमने की गति और भी तेज हो जाती है यह बिलकुल ऐसा ही है जब आइस स्केटर घूमती है तो अपनी गति को बढ़ाने के लिए अपने साथ समेट लेती है और उसकी गति अपने आप बढ़ जाती है.

जब जमा होने लगा पदार्थ

जब धूल और गैस के झुंड में सभी चट्टानें एक साथ आना शुरू हुईं उससे ग्रह या हमारी पृथ्वी भी और तेजी से घूमने लगी. इस तरह से पृथ्वी अपने निर्माण के दौरान ही घूमने लगी थी और तब से अब तक घूम ही रही है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर वह अब भी क्यों घूम रह है. सैद्धांतिक रूप से कोई भी घूमने वाला पिंड हमेशा के लिए ही घूमता रहेगा, जब तक हम या तो उसमें कोई ऊर्जा ना जोड़ दें या फिर उससे कोई ऊर्जा निकाल ना लें.

ऊर्जा का कम होना

जब कोई लट्टू घूमता है तो हम पहले शुरुआत में उसमें ऊर्जा जोड़ कर उसकी घूर्णन शुरूकरते हैं और पृथ्वी से हो रहे घर्षण से उसकी ऊर्जा कम होती जाती है और धीरे धीरे उसका घूर्णन बंद हो जाता है. घर्षण ही के कारण पिंड की घिस कर या फिर खिंच कर ऊर्जा चली जाती है. गाड़ियों में ब्रेक से गति धीमी होने का कारण घर्षण ही है.

कुछ रोक नहीं रहा है पृथ्वी को

इसी तरह की अवधारणा पर फिजिट स्पिनर खिलौने में भी उपयोग में लाई जाती है. उन्हें बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जब वे घूमें तो घर्षण कम से कम हो इसी लिए वे इतना लंबे समय तक घूम पाते हैं. अब पृथ्वी अंतरिक्ष में तैरता हुआ पिंड है. वह अब भी घूमता ही रहेगा जब तक कि कुछ से धीमा नहीं करता, लेकिन पृथ्वी इतनी बड़ी है कि उसकी घूर्णन को रोकने के लिए बहुत ही ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी.

वायुमंडल भी नहीं रोक पाता है यह घूर्णन

पृथ्वी की घूमने की गति इतनी तेज है कि उससे जमीन तो उसके साथ घूम ही रही है, इतना भारी वायुमडंल भी उसके साथ ही घूम रहा है और उसका घर्षण उसे धीमा नहीं कर सकता है. यही वजह है कि पृथ्वी इतने समय से लगातार घूर्णन करती जा रही है और रुकने का नाम नहीं ले रही है. लेकिन फिर भी चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल जो महासागरों में ज्वार भाटा पैदा करता है, बहुत ही धीमी गति से पृथ्वी के घूर्णन को धीमा कर रहा है.

इसी तरह से सूर्य का गुरुत्वाकर्षण भी धरती को धीमा कर रहा है. वहीं अगर कोई क्षुद्रग्रह जैसे विशाल पिंड पृथ्वी से टकरा जाए तो पृथ्वी का घूर्णन धीमा कर देगा. वैज्ञानिकों को लगता है कि यूरेनस ग्रह के साथ ऐसा ही हुआ था. पृथ्वी के अलावा सौरमंडल के बाकी ग्रह भी घूमते हैं और उनकी घूर्णन की गति अलग अलग होती है इसलिए उनके दिन की लंबाई भी अलग अलग होती है.


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