विज्ञान

मिशन चंद्रयान-2 से भारत को क्या-क्या मिला? जानें

Gulabi
10 Sep 2021 3:09 PM GMT
मिशन चंद्रयान-2 से भारत को क्या-क्या मिला? जानें
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चंद्रमा के लिए भारत का दूसरा मिशन ‘चंद्रयान -2’ को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने में विफलता के कारण बहुत निराशा हुई थी

चंद्रमा के लिए भारत का दूसरा मिशन 'चंद्रयान -2' को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने में विफलता के कारण बहुत निराशा हुई थी. लैंडर और रोवर अंतिम क्षणों में खराब हो गए और दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे. दरअसल, चंद्रयान-2 मिशन के लैंडर विक्रम के चंद्रमा पर उतरने के आखिरी पलों में लैंडर का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया था. बाद में पता चला था कि विक्रम ने चांद पर हार्ड लैंडिंग की थी. ऐसे में 22 जुलाई 2019 को लॉन्च हुए चंद्रयान-2 के विफल लैंडिग का मतलब ये बिलकुल भी नहीं था कि यह पूरा का पूरा मिशन बर्बाद हो गया था. बल्कि इस मिशन (Chandrayaan-2 ) से भारत को जानकारियां मिली हैं जो अभी तक दुनिया के किसी भी देश को प्राप्त नहीं हो सकी हैं.

इस मिशन का ऑर्बिटर वाला हिस्सा अभी भी यानी दो साल बाद भी सामान्य रूप से काम कर रहा है और इन दो वर्षों में बोर्ड के विभिन्न उपकरणों ने कई बेहतरीन खोज व जानकारी उपलब्ध कराई हैं, जिससे चंद्रमा और उसके पर्यावरण को और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है.
हाल में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब तक चंद्रयान-2 के वैज्ञानिक पेलोड द्वारा एकत्र की गई जानकारी जारी की. हालांकि, इनमें कुछ जानकारियों का विश्लेषण और मूल्यांकन किया जाना अभी बाकी है, लेकिन जो जानकारी मिली हैं वो चंद्रमा से जुड़ी जानकारी के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण हैं. चंद्रयान-2 के 8 वैज्ञानिक उपकरण (पेलोड) चंद्रमा से सफलतापूर्वक वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं और लगातार जानकारी भेज रहे हैं.
चंद्रयान- 2 का उद्देश्य
चंद्रयान- 2 के वैज्ञानिक उपकरणों से चांद की भौगोलिक संरचना, भूकम्पीय स्थिति, खनिजों की मौजूदगी और उनके वितरण की जानकारी एकत्रित करने का प्रयास जारी है. साथ ही, चंद्रमा के सतह की रासायनिक संरचना, ऊपर मिटटी की ताप भौतिकी विशेषताओं के अध्ययन से चन्द्रमा के अस्तित्व में आने तथा उसके क्रमिक विकास के बारे में नई जानकारियां एकत्रित की जा रही हैं.
चंद्रयान- 2 के 8 पेलोड से क्या जानकारी मिली है?
चंद्रयान- 2 के ऑर्बिटर में 8 वैज्ञानिक उपकरण हैं. इन उपकरणों का उद्देश्य विभिन्न तरीकों से कुछ व्यापक कार्यों को पूरा करना है जिसमें चंद्रमा की सतह और पर्यावरण की मौलिक संरचना का अधिक विस्तार से अध्ययन करना, विभिन्न खनिजों की उपस्थिति का आकलन करना और चंद्रमा के वातावरण का विस्तृत मानचित्रण करना शामिल है. इसरो के मुताबिक इन उपकरणों ने अच्छी मात्रा में डेटा उपलब्ध कराया है जो चंद्रमा पर प्रकाश डालने में उपयोगी है. इन जानकारियों का उपयोग आगे की खोज में किया जा सकता है.
चंद्रयान- 2 के 8 मुख्‍य-पेलोड और उनका काम
> टीरेन मैपिंग कैमरा 2- चंद्रमा की सतह की 3-डी मैपिंग के लिए
> सोलर एक्स-रे मॉनिटर (XSM)- सूर्य के बारे में अध्ययन कर जानकारी देना
> चंद्रयान 2 विस्तृत क्षेत्र सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS)- चंद्रमा की मौलिक रचना की जानकारी देना
> इमेजिंग आई आर स्पेक्ट्रोमीटर- मिनरेलॉजी मैपिंग और जल तथा बर्फ होने की पुष्टि करना
> ऑर्बिटर हाई रेजोल्यूशन कैमरा- हाई-रेज टोपोग्राफी मैपिंग करना
> सिंथेटिक एपर्चर रडार एल एंड एस बैंड- ध्रुवीय क्षेत्र मानचित्रण और उप-सतही जल और बर्फ की पुष्टि करना
> चंद्रमा की सतह थर्मो-फिजिकल तापभौतिकी प्रयोग- तापीय चालकता और तापमान का उतार-चढ़ाव मापना
> अल्फा कण एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और लेजर चालित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप- लैंडिंग साइट के आसपास मौजूद तत्‍वों और खनिजों की मात्रा का विश्‍लेषण करना
चंद्रमा पर पानी की सटीक जानकारी
चंद्रमा के सतह पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि 2008 में भेजे गए चंद्रमा के लिए भारत के पहले मिशन चंद्रयान -1 ने ही कर दी थी. इससे पहले, नासा के मिशन क्लेमेंटाइन और लूनर प्रॉस्पेक्टर ने भी वहां पानी के होने के संकेत दिए थे. लेकिन चंद्रयान -1 पर इस्तेमाल किया गया उपकरण यह पता लगाने के लिए पर्याप्त नहीं था कि जो संकेत मिले हैं वो हाइड्रॉक्सिल रेडिकल (OH) से आए हैं या पानी के अणु से.
चंद्रयान-2 के इंफ्रा-रेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) और व्यापक स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक स्पष्ट रूप से हाइड्रॉक्सिल रेडिकल (OH) और पानी के अणुओं के बीच अंतर करने में सक्षम है. इससे दोनों के चंद्रमा पर होने के स्पष्ट संकेत मिले हैं. साथ ही चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी को लेकर मिली ये अब तक की सबसे सटीक जानकारी है.
इससे पहले चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी के संकेत मिले थे. लेकिन चंद्रयान-2 के उपकरणों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चांद के सभी अक्षांशों पर पानी मौजूद है. IIRS ने चंद्रमा के दूर उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में जलयोजन सुविधाओं की विशेषता बताई है और क्रेटर्स (गड्ढों) के भीतर पानी की मात्रा भी निर्धारित की है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इस वैज्ञानिक उपकरण ने चंद्रमा के ध्रुवों पर संभावित पानी के बर्फ की स्पष्ट पहचान की सूचना दी है. ये सूचना पहली बार मिली है.
चंद्रयान-2 के मिशन पर माइनर एलिमेंट्स की खोज
लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS) चंद्रमा के एक्स-रे स्पेक्ट्रम को मापता है ताकि मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, लौह जैसे प्रमुख तत्वों की उपस्थिति की जांच की जा सके. दरअसल, एक्सआरएफ तकनीक (Moon's X-ray Fluorescence, XRF) सूर्य की किरणों के उत्तेजित होने पर उत्सर्जित होने वाली विशिष्ट एक्स-रे को मापकर इन तत्वों का पता लगाती है.
इस उपकरण ने रिमोट सेंसिंग के माध्यम से पहली बार माइनर एलिमेंट्स क्रोमियम और मैगनीज का पता लगाया है. यह खोज चंद्रमा पर विकास को समझने और नेबुलर स्थितियों की जानकारी जुटाने में कारगर साबित हो सकता है. CLASS ने पहली बार एक्स-रे में चंद्रमा के सतह का लगभग 95% हिस्सा मैप किया है.
चंद्रमा की सतह पर सोडियम भी पहली बार पाया गया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसरो के वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि सोडियम के संबंध में CLASS के निष्कर्षों के आधार पर, 'सतह से एक्सोस्फेरिक सोडियम का सीधा संबंध स्थापित किया जा सकता है, एक ऐसा सहसंबंध है जो आज तक मायावी बना हुआ है.' यह खोज उन प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिए भी रास्ता खोलती है जिससे सोडियम सतह पर और साथ ही एक्सोस्फीयर (बहिर्मंडल) पर मौजूद होता है. ग्रहों के वायुमंडल के बाहरी क्षेत्र को बहिर्मंडल कहा जाता है.
चंद्रयान-2 मिशन से मिली सूर्य के बारे में जानकारी
चंद्रयान-2 मिशन पर स्थित पेलोड, सौर एक्स-रे मॉनिटर (XSM) ने सूर्य से आने वाले विकिरणों की मदद से चंद्रमा का अध्ययन करने के अलावा, सौर फ्लेयर्स के बारे में जानकारी एकत्र की है. ये सूर्य की सॉफ्ट एक्स-रे वर्णक्रमीय माप उपलब्ध कराता है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि XSM हर सेकंड में बहुत अच्छी ऊर्जा रेजोल्यूशन के साथ ऐसे माप उपलब्ध कराता है जो अभी तक किसी भी उपकरण के लिए सटीक और श्रेष्ठ है.
XSM ने पहली बार सक्रिय क्षेत्र के बाहर बड़ी संख्या में माइक्रोफ्लेयर देखे हैं. इसरो के अनुसार, 'सौर कोरोना को गर्म रखने वाले तंत्र की समझ पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है, जो कई दशकों से एक रहस्य बना हुआ है.
क्या होता है सूर्य का कोरोना?
कोरोना सूर्य का बाहरी वातावरण होता है. यह सूर्य की दिखने वाली सतह के ऊपर कई हजार किलोमीटर तक फैली हुई है जो धीरे-धीरे हमारे सौर मंडल से बाहर की ओर बहने वाली सौर पवन में परिवर्तित हो जाती है. हेलियोफिजिक्स सूर्य और सौर मंडल के बीच भौतिक संबंधों का विज्ञान है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के मुताबिक भारत के चंद्रयान-2 मिशन पर लगे XSM उपकरण ने सौर कोरोना और हेलियोफिजिक्स पर विशिष्ट वैज्ञानिक नतीजे उपलब्ध कराए हैं. इसरो को ऊर्जा और सूर्य के अन्य विभिन्न आयामों की अच्छी समझ है लेकिन कई संभवत: अहम घटनाएं अब भी एक रहस्य है. इनमें से कुछ रहस्य सूर्य के गर्म बाहरी वातावरण से संबंधित हैं जिसे कोरोना के तौर पर जाना जाता है. यह ज्ञात है कि कोरोना में एक मिलियन केल्विन से अत्यधिक तापमान में आयनित गैस होती है जो सूर्य की दिखने वाली सतह के तापमान से कहीं अधिक है.
इसरो के अनुसार, अत्यधिक गर्म कोरोना की मौजूदगी जैसी बातों का पता लगने से ऐसा संकेत मिलता है कि कोरोना के गर्म होने में मैग्नेटिक फील्ड की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. आसान भाषा में समझें तो सूर्य की दृश्य तस्वीरों में जो गहरे धब्बे दिखते हैं उन्हें ही कोरोना कहा जाता है जहां बताया जाता है कि मैग्नेटिक फील्ड मजबूत होते हैं.
चंद्रयान-2 के 8 पेलोड से मिली जानकारी कितनी मददगार?
ऑर्बिटर पेलोड से चंद्रमा की सतह, उप-सतह और एक्सोस्फीयर के बारे में मिली जानकारी भविष्य के चंद्रमा मिशनों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है. इसके चार पहलू, चंद्र सतह का खनिज की जानकारी, सतह और उप-सतह की मैपिंग, चंद्रमा के सतह पर विभिन्न रूपों में पानी की मौजूदगी और चंद्रमा पर मौजूद तत्वों के मानचित्र की जानकारी भविष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे.
चंद्रयान -2 का एक प्रमुख हासिल चन्द्रमा की संरचना समझने के लिए स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों के साथ-साथ चन्द्रमा के चट्टानी क्षेत्र 'रेगोलिथ' के नीचे क्रेटर (गड्ढे) और बोल्डर की खोज रहा है. इससे मिली जानकारी के मुताबिक रेगोलिथ के नीचे क्रेटर और बोल्डर 3-4 मीटर गहराई तक फैला हुआ है. इससे वैज्ञानिकों को मानव मिशन सहित भविष्य में लैंडिंग और ड्रिलिंग साइटों पर काम करने में मदद मिलने की उम्मीद है.
साल 2023/2024 में जापान के साथ मिलकर मिशन लॉन्च करेगा भारत
साल 2023/2024 में लॉन्च होने वाले जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) और इसरो के सहयोगी चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण (LUPEX) मिशन में भी इन खोजों से काफी मदद मिलेगी. जापानी स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर भेजे जाने वाले इस मिशन का उद्देश्य चांद पर जल संसाधनों की जानकारी प्राप्त करना है. इस मिशन के अलावा नासा के आर्टेमिस मिशन की योजना 2024 से चंद्रमा पर मानव लैंडिंग को सक्षम करने और 2028 तक स्थायी चंद्र अन्वेषण को लक्षित करने की है.
चंद्रयान-2 के क्रैश-लैंडिंग होने से क्या नुकसान?
चंद्रयान-2 के क्रैश-लैंडिंग से अंतरिक्ष में सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाले टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन करने के अवसर से चूकना रहा है. इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक दुर्घटना छोटी गलती के कारण हुई थी जिसे पहचानने के बाद ठीक किया गया है. लेकिन, इस तकनीक को फिर से प्रदर्शित करने के लिए, इसरो को एक नया मिशन, चंद्रयान-3 भेजना होगा. चंद्रयान-3 में केवल एक लैंडर और रोवर होने की उम्मीद है, इसमें कोई ऑर्बिटर नहीं होगा.
कब लॉन्च होगा चंद्रयान-3?
केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 2022 की तीसरी तिमाही में होने की संभावना है. केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर जितेन्द्र सिंह के मुताबिक, 'महामारी के दौर में अनलॉक का दौर शुरू होने के बाद अब सामान्य कार्य शुरू होने को देखते हुए चंद्रयान-3 का 2022 की तीसरी तिमाही में प्रक्षेपण होने की संभावना है. चंद्रयान-3 पर कार्य प्रगति पर है. यह कार्य संपन्न होने के अग्रिम चरण में है.'
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