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अध्ययन में खुलसा सभी लोगो के उम्र पर निर्भर करती है टीके से मिलने वाली सुरक्षा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | एक नए अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 रोधी टीके से मिलने वाली सुरक्षा की गारंटी वैक्सीन लगवाने वाले की उम्र पर निर्भर करता है। ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी (ओएचएसयू) ने एक शोध में पाया है कि टीके लगवाने वाले बुजुर्गों के शरीर में कोविड-19 वायरस के खिलाफ कम एंटीबॉडीज बनती हैं। एंटीबॉडीज एक तरह का ब्लड प्रोटीन है, जो प्रतिरक्षा तंत्र में विकसित होकर हमें संक्रमण से बचाता है।
यह अध्ययन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित हुआ था। ओएचएसयू के स्कूल ऑफ मेडिसिन में आण्विक माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के सहायक प्रोफेसर और शोध के वरिष्ठ लेखक फिकाडु ताफेसे कहते हैं, बुजुर्गों के शरीर में कोरोना के खिलाफ कम एंटीबॉडीज मिले हैं। यही वजह है कि हमारी बुजुर्ग आबादी संभावित रूप से कोरोना के नए वेरिएंट के लिए अतिसंवेदनशील हैं। यानी वे इससे जल्दी प्रभावित हो सकते हैं। भले ही उन्हें टीका लगा दिया गया हो।
टीकाकरण को बढ़ावा दिया जाना जरूरी
ताफेसे व उनके सहयोगियों ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही वृद्ध लोगों में कम एंटीबॉडी मिलीं, फिर भी टीका सभी उम्र के अधिकांश लोगों में संक्रमण व गंभीर बीमारी को रोकने के लिए पर्याप्त प्रभावी दिखाई दिया। ताफेसे ने कहा, हमारे टीके वास्तव में मजबूत हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके निष्कर्ष स्थानीय समुदायों में टीकाकरण को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करते हैं।
उन्होंने कहा, जितने अधिक लोगों को टीका लगाया जाता है, उतना ही कम वायरस फैलता है। टीकाकरण कोरोना वायरस के प्रसार को कम करता है। ओएचएसयू स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर (संक्रामक रोग) व शोध के सह-लेखक मार्सेल कर्लिन ने कहा कि अध्ययन का निष्कर्ष वृद्ध लोगों के साथ-साथ अन्य लोगों के टीकाकरण के महत्व को उजागर करते हैं।
ऐसे किया गया शोध
शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के खिलाफ फाइजर वैक्सीन की दूसरी खुराक के दो सप्ताह बाद 50 लोगों के रक्त में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को मापा। उन्होंने प्रतिभागियों को आयु समूहों में बांटा था। इसके बाद परीक्षण ट्यूबों में उनके रक्त सीरम को मूल 'वाइल्ड टाइप' सार्स-कोव-2 वायरस और ब्राजील में उत्पन्न होने वाले पीए.1 संस्करण (जिसे गामा के रूप में भी जाना जाता है) से संपर्क कराया। 20 वर्ष के आसपास के युवाओं के समूह में 70 से 82 वर्ष की आयु के लोगों की तुलना में एंटीबॉडी प्रतिक्रिया में लगभग सात गुना वृद्धि हुई थी। प्रयोगशाला के परिणामों ने सबसे कम उम्र से सबसे बुजुर्ग तक, एक स्पष्ट रैखिक प्रगति को दर्शाया कि एक प्रतिभागी जितना छोटा होगा, एंटीबॉडी प्रतिक्रिया उतनी ही मजबूत होगी।