विज्ञान

इस साल संयुक्त राष्ट्र ने ऑटिज्म के लिए समावेशी शिक्षा को बनाया है अपनी थीम

Rani Sahu
3 April 2022 9:59 AM GMT
इस साल संयुक्त राष्ट्र ने ऑटिज्म के लिए समावेशी शिक्षा को बनाया है अपनी थीम
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हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2022 (World Autism Awareness Day 2022) के मौके पर इस साल संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने ऑटिज्म के लिए समावेशी शिक्षा को अपनी थीम बनाया है

हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2022 (World Autism Awareness Day 2022) के मौके पर इस साल संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने ऑटिज्म के लिए समावेशी शिक्षा को अपनी थीम बनाया है. हाल के कुछ सालों में लोगों के लिए जिनमें ऑटिज्म के शिकार लोग भी शामिल हैं, शिक्षा की पहुंच को आसान बनाया गया है. कोविड -19 महामारी (Covid-19 Pandemic) के कारण दुनिया के 90 प्रतिशत छात्र स्कूल जाने से वंचित हो गए थे, इस कारण ऑटिज्म के शिकार छात्रों को भी बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा था. लेकिन अब गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए समावेशी शिक्षा ऑटिज्म के प्रति जागरूकता का काम करेगी.

क्या होता है ऑटिज्म
ऑटिज्म जिसे ऑटिज्म स्पैक्ट्रम भी कहते हैं, एक जीवन पर्यंत होने वाला तंत्रिका संबंधी विकार होता है जो लोगों को बचपन के शुरुआती दौर में ही हो जाता है. इस विकार की वजह से लोगों को संबंधी बहुत सी समस्याएं होने लगती हैं जिनमें संचार करने में परेशानी, बर्ताव में दोहराव,
क्या कारण होता है ऑटिज्म का
ऑटिज्म के कारणों के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती है क्योंकि इसका एक कारण नहीं होता है, अभी तक के शोध से पता चला है कि इसके विकसित होने की वजह अनुवांशिक, गैर अनुवांशिक, पर्यावरण का प्रभाव या इनका मिश्रण होती है. अजीब बात यह है कि जिन लोगों में संबंधित अनुवांशिक विकार हो तो जरूरी नहीं वह ऑटिज्म में विकसित हो जाए और पर्यावरणीय प्रभाव से सभी लोग ऑटिज्म का शिकार नहीं होते.
क्या इसका कोई इलाज भी है या नहीं
इस सवाल का सीधा उत्तर तो नहीं ही है, इसका मतलब यही है कि अभी तक ऐसा कोई इलाज नहीं हैं जो सभी ऑटिज्म पीड़ितों पर समान और निश्चित रूप से कारगर हो. चिकित्सक इस विकार के प्रभाव को कम करने का प्रयास जरूरत करते हैं और कई बार उसमें काफी हद तक सफल भी होते हैं लेकिन फिर भी यह पहले से नहीं बताया जा सकता है कि इसे कितना कम किया जा सकता है.
तो अंतरराष्ट्रीय दिवस क्यों?
इस विकार के शिकार लोगों खास कर बच्चों को बीमार नहीं कहा जा सकता है लेकिन उन्होंने खास तरह से सहायता की जरूरत पड़ती है. किसे कितनी ज्यादा मदद की जरूरत होगी यह इस विकार के लक्षणों की गंभीरता पर ही निर्भर करता है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि हम ऑटिज्म के मरीजों को समाज में सीधे तौर पर खारिज ना कर बैंठे बल्कि उनसे सामान्य लोगों की तरह ही बर्ताव करें. इसी लिए इस विकार के प्रति जागरूकता बहुत जरूरी है और संयुक्त राष्ट्र इस दिवस को मनाता है.
भेदभाव और असमानता
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल की थीम में असमानता को दूर कर समानता के लक्ष्य को शामिल कर भेदभाव मिटाने के प्रयासों पर बल दिया है जिसके शिकार जाने अनजाने में ऑटिज्म के पीड़ित बच्चे हो जाते हैं. यह भेदभाव सबसे पहले ऑटिज्म के शिकार बच्चे ही होते हैं क्योंकि उन्हें सहयोग और प्रेम की ज्यादा जरूरत होती है और इसी लिए वे वंचितों में सबसे शीर्ष पर होते हैं.
ऑटिज्म के साथ एक बड़ी समस्या ये है कि इसके लक्षण तो शुरू से ही दिखने लगते हैं लेकिन इसका निदान यानि विकार के होने का पता काफी समय बाद चलता है. आज दुनिया में हर 100 बच्चों में से एक ऑटिज्म से पीड़ित है. इस बात को भी समझने के जरूरत है कि ऑटिज्म पीड़ितों के भी दूसरे इंसानों की तरह मानवाधिकार होते हैं. लेकिन बहुत सी जगहों पर इन लोगों को जागरूकता और जानकारी के अभाव में ही भेदभाव और तिरस्कार का शिकार होना पड़ता है.
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