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ISRO Reusable Rocket: इसरो के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में तेजी से काम करना शुरू कर दिया है, ताकि एक रॉकेट पर होने वाले भारी खर्च को कम किया जा सके। हाल ही में, इसरो ने एक नई तकनीक विकसित करके दुनिया भर से वाहवाही बटोरी है जिसे इन्फ्लेटेबल एरोडायनामिक डिसेलेरेटर कहा जाता है। इसी कड़ी में इसरो ने एक और महान शोध पर काम करना शुरू कर दिया है, जिससे दुनिया भर में रॉकेट साइंस और इससे जुड़े लोगों का काम आसान हो जाएगा। इसरो पुन: प्रयोज्य रॉकेट नामक तकनीक पर काम कर रहा है और इसका उपयोग उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए किया जाएगा।
अभी रॉकेट लॉन्च करने में कितना खर्च होता है?
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि एक रॉकेट को लॉन्च करने में कितना खर्चा आता है। आपको बता दें कि एक स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) को लॉन्च करने में लगभग 30 करोड़ रुपये का खर्च आता है, जबकि एक पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) को लॉन्च करने में 130 से 200 करोड़ रुपये का खर्च आता है। आइए। इसरो के इस नए प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इसे और कम किया जा सकता है। दूसरी ओर, इसरो को एक कक्षा में एक किलोग्राम पेलोड लगाने की लागत 10,000 डॉलर से 15,000 डॉलर के बीच आती है। भारतीय रुपये की बात करें तो यह लगभग 7 लाख 98 हजार रुपये से लेकर 11 लाख 97 हजार रुपये तक है।
नए प्रोजेक्ट से क्या होगा फायदा?
इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा है कि अगर रियूजेबल रॉकेट टेक्नोलॉजी का ट्रायल सफल होता है तो वह 5000 डॉलर से लेकर 1,000 डॉलर तक की बचत कर सकता है। इसरो की योजना है कि वह अब वैश्विक बाजार में खुलकर सामने आए और ऐसी रॉकेट डिजाइन तकनीक तैयार करे, जिसका इस्तेमाल एक से ज्यादा बार किया जा सके। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने सातवें बेंगलुरु स्पेस एक्सपो 2022 को संबोधित करते हुए इस पुन: प्रयोज्य रॉकेट परियोजना का उल्लेख किया। उन्होंने आगे कहा कि रॉकेट में केवल पुन: प्रयोज्य तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए जो जीएसएलवी एमके 3 के बाद तैयार है। आपको बता दें कि नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) अपने अधिकांश रॉकेटों में इस तकनीक का उपयोग करता है।
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