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फोटोः गेटी
नई दिल्ली: जापान (Japan) की ठीक नीचे एक पहाड़ जैसा पत्थर मिला है. यह पत्थर दक्षिणी जापान को भूकंप की लहरों से बचाता है. यानी भूकंप के दुष्प्रभाव को जापान तक पहुंचने से रोकता है. इस पहाड़ का नाम है कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton). जापान के की प्रायद्वीप (Kii Peninsula) के नीचे मौजूद है. इसकी ऊंचाई करीब 5 KM है.
कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) महाद्वीपीय यूरेशियन प्लेट (Eurasian Plate) की ऊपरी लेयर में है. यहीं से होते हुए फिलिपीन प्लेट धरती के मेंटल (Mantle) की तरफ लटकती है. जिसे सबडक्शन (Subduction) कहते हैं. नई स्टडी में पता चला है कि कुमानो प्लूटोन फिलिपीन प्लेट की हलचल को दबा देता है. ताकि उसकी वजह से आने वाले भूकंप का असर जापान के ऊपरी हिस्सों पर न पड़े.
जापान में 1940 में दो बड़े भूकंप आए थे. जिनका केंद्र कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) के ठीक नीचे थे. दोनों भूकंपों ने निकली लहर दो अलग-अलग दिशाओं में गई थी लेकिन इसके बावजूद यह पहाड़ न टूटा. न ही अपनी जगह से खिसका. यह वहीं का वहीं टिका रहा.
न्यूजीलैंड के GNS Science में मरीन जियोफिजिसिस्ट और इस स्टडी के सह-लेखक डैन बैसेट ने बताया कि हमें सच में इस बात अंदाजा नहीं है कि क्यों कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) को कोई भूकंप हिला नहीं पाता. या फिर इसके इलाके में आने बाद भूकंपों की मजबूती खत्म क्यों हो जाती है. इसे देख कर लगता है कि यह भूकंपों की वजह से जापान पर पड़ने वाली दरारों को रोकता है. इसे न्यूक्लिएशन प्वाइंट (Nucleation Point) कहते हैं.
चुंकि, कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) एक न्यूक्लिएशन प्वाइंट पर मौजूद है तो यह समुद्री पानी के मैंटल में जाने की प्रक्रिया को भी नियंत्रित करता है. फिलिपीन ओशिएनिक प्लेट कुमानो प्लूटोन के नीचे काफी तीखी गहराई का निर्माण करती है. लेकिन वह इस पहाड़ के भार से दबी हुई है. इसलिए सबडक्शन जोन में ज्यादा दरारें बनती हैं. और हैं भी. लेकिन ये ऊपर नहीं आने देती. हालांकि, मैंटल में ज्यादा समुद्री पानी जाने की वजह से ज्वालामुखी विस्फोट बढ़ जाते हैं.
फिलिपीन प्लेट (Philippine Plate) यूरेशियन प्लेट के नीचे हर साल 1.78 इंच की दर से खिसक रही है. इसे ही सबडक्शन कहते हैं. इसकी वजह से ही भूकंप आते हैं. ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं. वैज्ञानिक सिसमिक मॉनिटर्स यानी भूकंपीय लहरों को समझ कर पानी के नीचे और सबडक्शन जोन के नीचे मौजूद आकृतियों के आकार और उनके व्यवहार को समझने का प्रयास करते हैं.
जापान के तटों को दुनियाभर के वैज्ञानिक स्टडी करते हैं. यहां पर सबसे ज्यादा निगरानी रखी जाती है. जापानीज एजेंसी फॉर मरीन-अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (JAMSTEC) ने ननकाई ट्रो (Nankari Trough) इलाके को समुद्री मॉनिटर्स से भर दिया है. यहां पर काफी ज्यादा मात्रा में बोरहोल सीस्मोमीटर्स लगे हैं. ताकि भूकंप की हल्की सी लहर भी तुरंत पता चल सके.
डैन बैसेट ने बताया कि हमने कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) की तस्वीर नहीं ली है. न ही उस जगह की खोज की है. हमने सिर्फ इसकी वजह से होने वाले फायदे और बदलावों की स्टडी की है. कुमानो प्लूटोन के बारे में दुनिया के वैज्ञानिकों को साल 2006 से पता है. लेकिन अभी तक इसके आकार की सही तस्वीर किसी के पास नहीं है. सिर्फ हमारे पास इस विशालकाय पत्थर की सटीक तस्वीर और थ्रीडी नक्शा है.
डैन ने बताया कि आमतौर पर सबडक्शन जोन की स्टडी के दौरान वैज्ञानिक प्लेट्स के आकार का अध्ययन करते हैं. लेकिन वो इस बात की स्टडी नहीं करते कि वह प्लेट या सबडक्शन जोन किसके नीचे या ऊपर टिका है. साल 1944 में रिक्टर पैमाने पर 8.1 तीव्रता का भूकंप कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) के किनारे आया. जिसकी वजह से उत्तर पूर्व जापान का हिस्सा कांपा. दो साल बाद 8.6 तीव्रता का भूकंप आया, यह पहले वाले भूकंप के करीब ही था. लेकिन यह दक्षिण-पश्चिम की तरफ चला गया.
डैन ने कहा कि दोनों भूकंपों ने कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) से दो अलग-अलग दिशाओं में यात्रा की. जबकि भूकंप का असर चारों दिशाओं में बराबर होता है. ये आसान नहीं है कि कोई भूकंप किसी एक ही दिशा में आगे बढ़े. लेकिन कुमानो प्लूटोन (Kumano Pluton) जापान के लिए एक रक्षक की तरह काम करता है. यह भूकंप को रोकता है. उसकी वजह से जापान की जमीन कम हिलती है. यह स्टडी हाल ही में Nature Geoscience जर्नल में प्रकाशित हुई है.
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