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विज्ञान
ये है विश्व का सबसे खतरनाक स्पेस हथियार, पलक झपकते में टारगेट को कर सकते हैं तबाह
Apurva Srivastav
14 March 2021 2:41 PM GMT
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फिलहाल विकसित देशों के बीच स्पेस लड़ाई का नया मुद्दा है. धरती पर अपनी ताकत के झंडे लहरा चुके देश अब अंतरिक्ष में सबसे ताकतवर बनने में लगे हुए हैं.
फिलहाल विकसित देशों के बीच स्पेस लड़ाई का नया मुद्दा है. धरती पर अपनी ताकत के झंडे लहरा चुके देश अब अंतरिक्ष में सबसे ताकतवर बनने में लगे हुए हैं. इसके तहत वे केवल स्पेस फोर्स ही नहीं बना रहे, बल्कि कई सारे स्पेस वेपन यानी हथियार बना डाले हैं. ये हथियार इतने खतरनाक हैं कि पलों में टारगेट को तबाह कर सकते हैं.
स्पेस वेपन में सबसे पहला हथियार है मिसाइल. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक मिसाइल का इतिहास 1 हजार साल पुराना है. हालांकि पहला रॉकेट कब इस्तेमाल हुआ, इसको लेकर कुछ ज्यादा तथ्यात्मक ऑथेंटिक डेटा नहीं है.लेकिन माना जाता है कि चीन में रॉकेट की शुरुआत हुई. इसके बाद यूरोप ने इसे अपनाया. 18वीं शताब्दी में मेटल सरेंडर रॉकेट का पहला इस्तेमाल भारत में हुआ. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनकी तकनीक में विकास हुआ और दोनों ओर से मिसाइलों का भरपूर इस्तेमाल हुआ. हजारों मिसाइल इस दौरान दागी गईं. ये स्पेस के सबसे खतरनाक हथियारों में से एक है
द मैगनेटो हाइड्रोडायनेमिक एक्सप्लोसिव म्यूनिशन (MAHEM) की घोषणा साल 2008 में हुई थी. हालांकि ये कहां तक पहुंचा, इसकी अभी तक कोई जानकारी नहीं है. डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी (DARPA) की वेबसाइट पर इसका पेज अभी तक मौजूद है. MAHEM दरअसल एक ऐसी डिवाइस है, जो पिघली हुईं धातुओं का विस्फोट करती है. जो बचने का कोई मौका नहीं देती है. इस हथियार की कल्पना लेखक अर्थर सी क्लार्क की फिक्शनल किताब अर्थलाइट में साल 1955 में किया गया था. DARPA इस विचार को हकीकत बनाने में जुटा है. अगर ये सच हुआ तो बेहद खतरनाक होगा
प्रोजेक्ट थेल या द टेक्टिकल हाई एनर्जी लेसर कार्यक्रम को साल 1996 से 2005 के बीच चलाया गया था. नॉर्थरोप ग्रुम्मन के मुताबिक THEL प्रोजेक्ट अमेरिका और इजरायल ने मिलकर शुरू किया था. इस एक दशक में इसने 46 मोर्टार राउंड, रॉकेट और आर्टिलरी को नष्ट कर दिया था. फिलहाल ये कार्यक्रम एक्टिव नहीं है. हालांकि नॉर्थरोप ग्रुम्मन के मुताबिक टेक्नोलॉजी को दोबारा अमेरिकी सेना के लिए तैयार कर रहा है
अगली श्रेणी हथियारबंद सैटेलाइटों की है. धरती के इर्द-गिर्द वैसे तो कई सैटेलाइट घूम रहे हैं, लेकिन ये सैटेलाइट सिर्फ जानकारियां जमा करने के लिए मौजूद हैं. वहीं साल 1950 के दौर से अमेरिका का एक मशहूर प्रोजेक्ट है, जो हमलावर सैटेलाइट पर काम कर रहा है. हालांकि अभी तक ऐसी सैटेलाइट नहीं बन पाई है. आउटर स्पेस ट्रीटी के मुताबिक ऐसा करना नियमों का उल्लंघन होगा. इस पर पूरी तरह बैन है.
एक अन्य हथियार रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) का अल्माज (Almaz) स्पेस स्टेशन है. इसे साल 1960 के दशक में बनाया गया, जब रूस का अमेरिका से शीत युद्ध शुरू था. रूस का इसे बनाने को लेकर मकसद था कि समुद्र में टारगेट को खोजना और उन्हें निशाना बनाना. हालांकि रूस की ये कोशिश इसी बीच चंद्रमा पर जाने की होड़ में पीछे हो गई और साल 1973 में दोबारा इस सैटेलाइट तकनीक पर काम हुआ.
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