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12 oct को ब्लैक आउट से थम गई थी मुंबई की रफ्तार...जानें कितना खौफनाक होगा अगर पूरी दुनिया से हो जाए एक साथ बत्ती गुल

Gulabi
13 Oct 2020 10:08 AM GMT
12 oct को ब्लैक आउट से थम गई थी मुंबई की रफ्तार...जानें कितना खौफनाक होगा अगर पूरी दुनिया से  हो जाए एक साथ बत्ती गुल
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आर्थिक राजधानी मुंबई में सोमवार को हुए ब्लैक आउट से उसकी रफ्तार एकदम से थम गई.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में सोमवार को हुए ब्लैक आउट से उसकी रफ्तार एकदम से थम गई. महज ढाई घंटे में जो अफरा-तफरी मची कि पूरे देश में चर्चा होने लगी. ये तो रही एक देश के एक शहर की बात लेकिन क्या हो अगर पूरी दुनिया की बिजली एक साथ चली जाए. जानिए, तब कैसा तहलका मच सकता है.

अब तक ऐसा हुआ नहीं है कि पूरी दुनिया एक साथ अंधेरे में डूब जाए लेकिन जिन देशों के बड़े हिस्सों ने ब्लैक आउट देखा, हम उनकी बात करते हैं. दक्षिणी अमरीकी देश वेनेजुएला का पिछले साल का ब्लैक आउट काफी बड़ा माना जाता है. साल 2019 के मार्च में इस पूरे के पूरे देश में पावर सप्लाई ठप हो गई.

इसका असर अर्थव्यवस्था पर जो पड़ा, सो पड़ा, लेकिन सबसे बुरी हालत अस्पतालों की थी. वहां बहुत से मरीज ऑपरेशन थिएटर में थे. ढेरों मरीज वेंटिलेटर पर थे. शुरुआत में जेनरेटर जैसी चीजों से मैनेज करने की कोशिश हुई लेकिन बेकार रहा. ये अंधेरा एक-दो घंटे नहीं, बल्कि पूरे 5 दिनों तक रहा. इस दौरान आधिकारिक तौर पर 26 जानें गईं.

दूसरा असर संवाद पर पड़ा. मोबाइल, इंटरनेट सब बंद था, लिहाजा किसी को किसी की खैर-खबर तक नहीं मिल पा रही थी. पानी के पंप बंद होने की वजह से लोगों को पानी की किल्लत हो गई. नहाने की तो बात ही क्या, पीने का पानी नहीं मिल पा रहा था. तब दुकानों में पानी की लूट मच गई थी. वैसे बिजली जाना वेनेजुएला में गंभीर समस्या बन चुका है. इसके पीछे खराब सरकारी व्यवस्था से लेकर आतंकियों तक को दिया जाता रहा है.

विकसित देश भी ब्लैक आउट की समस्या से जूझ चुके हैं. इसकी वजह वहां बिजली लाइन का पुराना होना है. कई बार प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, तूफान जैसे कारणों से भी देश के कई शहर अंधेरे में डूब जाते हैं. अमेरिका के न्यूयॉर्क में साल 1977 में जो अंधेरा छाया था, वो आज तक अमेरिकी इतिहास का सबसे भयंकर ब्लैक आउट माना जाता है.

न्यूक्लियर पावर प्लांट में किसी समस्या की वजह से बिजली की ये आपूर्ति दो दिनों तक रुकी रही. तब लोगों ने दुकानों पर हमले कर दिए और उन्हें लूट लिया. परेशान दुकानदारों ने अपनी दुकानों में आग लगा दी ताकि उन्हें कम से कम इंश्योरेंस के पैसे मिल सकें. लगभग सैकड़ाभर मरीजों की जान चली गई, जो डायलिसिस या वेंटिलेटर पर थे.

साल 2019 में लैटिन अमेरिका के भी बड़े हिस्से ब्लैक आउट का शिकार होते रहे. इसी तरह से ब्रिटेन में भी बाहरी इलाकों में ब्लैक आउट होता रहा है. विकसित देशों में ये विकासशील देशों की अपेक्षा काफी कम है लेकिन इसके बाद भी कुछ घंटों के लिए बिजली जाना भी अफरा-तफरी मचाने के लिए काफी है.

हमारे ही देश में साल 2012 में उत्तरी ग्रिड फेल होने से काफी मुश्किल हुई थी. 30 जुलाई को इसकी वजह से लगभग 20 राज्य अंधेरे में डूब गए थे. ट्रेनें आधे रास्ते में रोकनी पड़ी थीं और कई पावर प्लांट बंद कर दिए गए थे. बाद में बिजली विभाग ने इसकी जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई थी, जिसने अपनी सफाई में कई कारण गिनाए थे. हालांकि ये दो दिन आज भी काले पन्नों की तरह माने जाते हैं.

प्राकृतिक कारणों को छोड़ दें तो पावर ग्रिड ठप पड़ने से बिजली व्यवस्था प्रभावित होती है. पावर ग्रिड एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए इनमें समस्या का वक्त रहते पता तक नहीं चल पाता. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक जुड़े हुए बिजली के ग्रिड यूरोपीय देशों में हैं, जो करीब 24 देशों में 40 करोड़ लोगों को बिजली सप्लाई करते हैं. वहीं, अमरीका में पांच अलग-अलग पावर ग्रिड पूरे देश में बिजली आपूर्ति करते हैं. अब, जबकि देशों के बीच समीकरण तल्ख हो रहे हैं, ऐसे में बिजली जाना देश की सुरक्षा के लिए भी खतरनाक हो सकता है. यही देखते हुए सभी देश अपने-अपने स्तर पर बिजली के रखरखाव और उसके विकल्पों का इंतजाम कर रहे हैं.

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