विज्ञान

बर्फ इतनी ज्यादा है कि 300 फुट बर्फ की चादर से ढंका, जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा

Triveni
27 Jan 2021 11:20 AM GMT
बर्फ इतनी ज्यादा है कि 300 फुट बर्फ की चादर से ढंका, जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा
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धरती के पर्यावरण के लिए बहुत बुरी खबर है। पृथ्‍वी ने वर्ष 1994 से लेकर वर्ष 2017 के बीच में 28 ट्रिल्‍यन टन बर्फ खो दिया।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| लंदन: धरती के पर्यावरण के लिए बहुत बुरी खबर है। पृथ्‍वी ने वर्ष 1994 से लेकर वर्ष 2017 के बीच में 28 ट्रिल्‍यन टन बर्फ खो दिया। यह बर्फ इतनी ज्‍यादा है कि पूरे ब्रिटेन को 300 फुट मोटी बर्फ की चादर से ढंका जा सकता है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी का चक्‍कर लगा रहे उपग्रहों के आंकड़े के आधार पर वैश्विक स्‍तर पर बर्फ के पिघलने का पता लगाया है।

शोधकर्ताओं के दल ने पाया कि 23 साल की अवधि में हर साल बर्फ के पिघलने की दर में 65 फीसदी का इजाफा हुआ। पृथ्‍वी पर 90 के दशक में 0.8 ट्रिल्‍यन टन पिघलती थी जो बढ़कर 1.3 ट्रिल्‍यन टन पहुंच गई। वैज्ञानिकों ने कहा कि बर्फ का यह पिघलना लगातार जारी है। इसे अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ के तेजी से पिघलने से गति मिली है। बर्फ के पिघलने से पूरे विश्‍व में समुद्र का जलस्‍तर बढ़ता जा रहा है।
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जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि जलस्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है और इससे वन्‍यजीवों का प्राकृतिक आवास संकट में आ गया है। पृथ्‍वी वैज्ञानिक थॉमस स्‍लाटेर ने कहा, 'हमने जहां अध्‍ययन किया, हर जगह पर बर्फ को पिघलता पाया लेकिन ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ की चादर सबसे ज्‍यादा पिघली है।' उन्‍होंने चेतावनी दी कि अगर समुद्र के जलस्‍तर में बहुत जरा सा भी बदलाव होता है तो इसका तटीय इलाकों में इस सदी में बहुत गंभीर असर पड़ेगा।
वैज्ञानिकों ने पहले नीली रोशनी के 10-20 मिलिसेकंड के 5 फ्लैश देखे। इसके बाद यह कोन जैसे आकार में फैल गया। जब पॉजिटिव चार्ज वाला बादलों का ऊपरी हिस्सा बादलों और हवा के बीच वाले निगेटिव चार्ज से मिलता है, तब ब्लू जेट बनते हैं। ये चार्ज बादल में अपनी जगह बदलते हैं और एक समान हो जाते हैं जिसे इलेक्ट्रिक ब्रेकडाउन कहते हैं। इस दौरान स्थैतिक बिजली (Static Electricity) पैदा होती है। ब्लू जेट के बारे में ज्यादा सटीक डीटेल नहीं हैं, इसलिए इस घटना का कैद किया जाना अहम है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्लू जेट से पहले चार फ्लैश में अल्ट्रावॉइलट रोशनी भी थी। इन्हें Elves बताया गया है जो ऊपरी वायुमंडल में देखा जाता है। ये रोशनी के ऐसे उत्सर्जन होते हैं जो तेजी से बढ़ते हुए रिंग्स की तरह दिखते हैं। ये आइनोस्फीयर (ionosphere) में पाए जाते हैं जो धरती से 35-620 मील ऊपर तक चार्ज्ड पार्टिकल्स की लेयर होती है। Elves तब पैदा होते हैं जब रेडियो किरणें आइनोस्फीयर में इलेक्ट्रॉन्स को पुश करते हैं जिससे उनकी गति तेज हो जाती है और वे दूसरे चार्ज्ड पार्टिकल्स से टकराते हैं। इससे ऊर्जा रोशनी बनकर उत्सर्जित होती है।
ये फ्लैश, Elves और ब्लू जेट यूरोपियन स्पेस एजेंसी के अटमॉस्फीयर स्पेस इंटरैक्शन मॉनिटर (ASIM) की मदद से देखे गए। इसमें कैमरे, फोटोमीटर, एक्स-रे डिटेक्टर और गामा-रे डिटेक्टर होते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऊपरी वायुमंडल में होने वाले ब्लू जेट का असर ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा पर भी हो सकता है। जहां, स्ट्रेटोस्फीयर की परत में, ये ब्लू जेट होते हैं, वहीं ओजोन भी होती है।
शोधकर्ता थॉमस ने कहा कि सैटलाइट के इस्‍तेमाल से हमने पहली बार पूरी धरती पर पिघली हुई बर्फ का पता लगाया है। उन्‍होंने कहा क‍ि बर्फ के पिघलने की मुख्‍य वजह पृथ्‍वी के वातावरण का गरम होना है। इससे वर्ष 1980 के बाद हर दशक में तापमान में 0.26 डिग्री सेंटीग्रेट की बढ़ोत्‍तरी हुई है। उन्‍होंने कहा क‍ि सबसे ज्‍यादा बर्फ करीब 68 फीसदी वातावरण में गर्मी की वजह से पिघली है। उन्‍होंने कहा कि करीब 32 फीसदी बर्फ समुद्र की वजह से हुई है। इस टीम ने दुनियाभर के 2,15,000 पहाड़ी ग्‍लेशियरों, दोनों ध्रुवों के बर्फ की जांच की।


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