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एवरेस्ट से भी ऊंचे हैं वहां के पर्वत
नासा के न्यू होराइजन अंतरिक्ष यान ने 2015 में दिखाया कि कथूलू श्रेणी के कई पर्वत हमारे हिमालय के एवरेस्ट से भी ऊंचे हैं. इसके साथ ही इन पर्वतों में एक खासियत और है यह बर्फ से ढके हैं, लेकिन यह बर्फ पानी की बल्कि मीथेन की है.
मीथेनी की बर्फ
नेचर जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में इस बौने ग्रह पर मीथेन के निर्माण और उसकी वजह से बनने वाली प्रक्रियाओं को जानने का प्रयास किया गया है. शोधकर्ताओं ने इस पर खास तौर से कथूलू में मीथेन की बर्फ पर खास तौर से ध्यान दिया.
खास सिम्यूलेशन का उपयोग
शोधकर्ताओं ने प्लूटो की जलवायु के हाई रिजोल्यूशन न्यूमेरिकल सिम्यूलेशन्स का उपयोग किया. उन्होंने इसके जरिए यह जानने का प्रयास किया कि वहां पर मीथेन की बर्फ बनने की प्रक्रिया पृथ्वी के पर्वतों की चोटियों पर बनने वाली बर्फ की प्रक्रिया से कितनी अलग है.
पृथ्वी की प्रक्रिया से अलग होती है
शोधकर्ताओं ने पाया कि मीथेन का प्लूटो के पर्वतों पर जमने की प्रक्रिया पृथ्वी पर ऊपर उठने वाली हवा की 'एडियाबैटिक कूलिंग' से अलग प्रक्रिया से होती है. प्लूटो के मैदान से मीथेन गैस प्रवाह के कारण कई किलोमीटर ऊपर उठने के बाद पर्वतों की चोटियों पर संघनन के कारण जम जाती हैं.
दोनों ग्रहों में अंतर
वहीं पृथ्वी पर पवनें नमी वाली हवा को ऊपर ले जाती हैं जहां ठंडे तापमान के कारण पानी ठंडा होता और बर्फबारी होने से पर्वतों की चोटियां ढंक जाती है. यह खोज दोनों ग्रहों के वायुमंडलीय हालातों में अंतर के बारे में बताती है.
यह है इस अंतर की वजह
सूर्य और प्लूटो के बीच बहुत ही ज्यादा दूरी होने के कारण वहां का वायुमंडल बहुत ही पतला है जो लगभग खत्म होने की कगार पर लगता है. इसलिए प्लूटो के वायुमंडल में ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ता जाता है.
यूं पर्वतों पर जमती है ये बर्फ
वहां दिन के समय ज्यादातर जमी हुई मीथेन सीधे गैस में बदल जाती है लेकिन कथूलू की ऊंचाइयों में मीथेन जमी हुई रहती है जिससे वह समय के साथ बढ़ती गई. शोधकर्ताओं ने प्लूटो के न्यूमेरिकल क्लाइमेट मॉडल का उपयोग मेथेन की बर्फ के बनने का कारण जानने की कोशिश की.
उनके सिम्यूलेसन ने भी ऊंचाइयों पर मीथेन की बर्फ का जमना पाया जिससे वहां के पर्वत बर्फ से ढके नजर आए. ऐसे पूर्वी कथूलू के पिगाफेटा और एल्कानो मोन्टेस की चोटियों और ऊंचाइयों पर खास तौर से पाया गया. अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि मीथेन का संघनन जमीन पर बनने वाले मीथेन के प्रवाह के कारण होता है जो मौसम के अनुसार तीव्र भी हो जाता है जिससे गैसीय मीथेन ऊंचे इलकों पर जाकर जम जाती है.