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पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति (Origin of life on Earth) की कहानी की खोज में वैज्ञानिक सौरमंडल के साथ चंद्रमा के विकास (Evolution of Moon) की कहानी भी समझने का कर रहे हैं. चंद्रमा और पृथ्वी की तंत्र बहुत ही खास और विलक्षण तंत्र है. कई शोधों में तो यहां तक माना गया है कि चंद्रमा के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव ही नहीं हो पाता. वैज्ञानिक चंद्रमा की उत्पत्ति के प्रमाणों की भी खोजबीन में लगे हैं जिससे स्पष्ट हो सके चंद्रमा की उत्पत्ति (Origin of Moon) कैसे हुई थी. नए अध्ययन में इस बात के पुष्ट प्रमाण मिले हैं कि चंद्रमा पृथ्वी से ही अलग हुआ एक टुकड़े से बना है.
मंगल के आकार के पिंड से टकराई थी पृथ्वी
प्रचलित धारणा के मुताबिक चंद्रमा की उत्पत्ति करीब 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी से मंगल के आकार के पिंड से टकराने से हुए थी जिसे वैज्ञानिकों ने थिया नाम दिया है. उसी टकारव से पैदा हुए अवशेषों से मिल कर आज के चंद्रमा का निर्माण हुआ था. अब नए अध्ययन में वैज्ञानिकों को इसी प्रक्रिया की पुष्टि करने वाले कुछ नए प्रमाण हासिल हुए हैं.
उल्कापिंडों में मिले संकेत
वैज्ञानिकों को चंद्रमा से पृथ्वी पर आकर गिरने वाले उल्कापिंडों में नोबल गैसें हीलियम और नियॉन गैस के आइसोटोप मिले हैं. ये उल्कापिंड अंटार्कटिका में पाए गए थे. इस आइसोटोप कभी उजागर नहीं हुए थे और फिर भी सौरपवन में पाए जाने वाले आइसोटोप से मेल खाते हैं. इसके साथ ही ऑर्गन गैस की मात्रा के संकेत भी सुझाते हैं कि ये गैस पृथ्वी से मिली हैं जब बहुत पहले दोनो ही पिंड एक ही हुआ करते थे.
सौर गैसों का मिलना
सेंटलुईस की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी और एक समय में स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख में काम करने वाली कॉज्मोकैमिस्ट पैट्रीजिया विल बताती हैं कि पहली बार चंद्रमा के बेसाल्टिक पदार्थ में सौर गैसों का मिलना जिनका चंद्रमा की उजागर सतह से कोई लेना देना नही है वाकई में उत्साहित करने वाला नतीजा है.
चंद्रमा से आए उल्कापिंड
दरअसल चंद्रमा की रासायनिक संरचना का सीधा अध्ययन करना एक बहुत ही जटिल कार्य है. हम इंसान 1972 से चंद्रमा पर गए ही नहीं हैं और वहां के नमूने भी बहुत ही कम हैं. लेकिन कई बार चंद्रमा से ही हमारे पास कुछ आ जाता है. उल्कापिंड के रूप में चंद्रमा के कुछ हिस्से पृथ्वी की सतह तक पहुंच जाते हैं. लूनाइट्स कहे जाने वाले ऐसे उल्कापिंड पृथ्वी पर सैकड़ों की तादाद में पाए गए हैं.
बेसाल्ट के छिपे हिस्सों का अध्ययन
विल और उनके साथियों ने अंटार्किटिका में पाए गए केवल छह ऐसे टुकड़ों का अध्ययन किया जो एक ही मूल उल्का के ही हिस्से रहे थे और वह भी एक ही विशेष तरह की चट्टान का भी हिस्सा थे. जबकि अन्य उल्कापिंड कई चट्टानों के टुकड़ों का मिश्रण होते हैं. चंद्रमा के बहुत से उल्कापिंड चंद्रमा के ज्वालामुखी मैदान के बेसाल्ट चट्टान के हिस्से होते हैं. ये चट्टानें चंद्रमा के आंतरिक हिस्से से ऊपर की ओर आए मैग्मा के तेजी से ठंडे होने से बनी थीं और ऊपरी परतों से संरक्षित भी थीं जिससे इन्होंने कभी किसी तरह के खगोलीय विकिरण या सौर पवनों का सामना नहीं किया.
स्पैक्ट्रोमीटर से किया अध्ययन
जब बेसाल्ट ठंडा हुआ तो ज्वालामुखी ग्लास के कणों का क्रस्टलीकरण हुआ और वे चंद्रमा की सतह के अंदर ही रह गए. फिर विशाल टकराव के कारण इसके टुकड़े उड़ कर पृथ्वी पर आए. इन्हीं टुकड़ों का अध्ययन विल की टीम ने ईटीएच ज्यूरिख नोबल गैस लैबोरेटरी के नोबल गैस मास स्पैक्ट्रोमीटर से किया. टीम ने पाया की बेसाट में मिलीमीटर से भी छोटे ग्लास के कणों में हीलियम और नियॉन आसोटोप के संकेत टाइम कैप्सूल की तरह कैद हैं. जबकि ऐसे ही संकेत सौर पवन में भी पाए जाते हैं, लेकिन यह उम्मीद से बहुत ही ज्यादा मात्रा में पाए गए.