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भारत (India) आज अतंरिक्ष अनुसंधान की लंबी उड़ान भर चुका है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भारत (India) आज अतंरिक्ष अनुसंधान की लंबी उड़ान भर चुका है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं जो दुनिया के कुछ ही मुल्क कर सके हैं. आज संचार के क्षेत्र में भारत को दुनिया के अग्रणी देशों में पहुंचाने का काम हमारे संचार उपग्रहों ने ही किया है. इसकी शुरुआत एप्पल उपग्रह (APPLE) से हुई थी जो आज से 40 साल पहले प्रक्षेपित किया गया था. यह भारत का पहले भूस्थिर संचार उपग्रह था. इसे 18 जून 1981 को फ्रेंच गुयाना से प्रक्षेपित किया गया था.
एप्पल नाम कैसे
एप्पल एरिएन पैसेंजर पे लोड एक्सपेरिमेंट का संक्षिप्त रूप है. इस उपग्रह को यूरोपीय स्पेस एजेंसी के एरिएन प्रक्षेपण यान से फ्रेंच गुयाना के सेंटर स्पेटियल गुयानाइस से प्रक्षेपित किया गया था. इस उपग्रह का वजन 670 किलो ऊंचाई और चौड़ाई 1.2 मीटर थी. इसका वजन 670 किलो था और इसकी ऑनबोर्ड पॉवर210 वाट थी.
पहला संचार उपग्रह
एप्पल एक प्रयोगात्मक संचार उपग्रह था जिसे इसरो ने 6.4 गीगाहर्ट्ज के दो सी बैंड ट्रासंपोंडर के साथ प्रक्षेपित किया था. यह भारत का पहले संवेग प्रवृत्ति की त्रि-अक्षीय स्थिरीकरण तकनीक वाला प्रयोगात्मक भूस्थिर संचार सैटेलाइट था. इसे इसरो ने अपने बेंगलुरू स्थित सैटेलाइट सेंटर में डिजाइन और विकसित किया था.
ऐसे पहुंचा प्रक्षेपण के लिए
इसरो ने एप्पल की संरचना, टीटीसी शक्ति, ऊष्मा नियंत्रण और संवेदी तंत्र की जांच की जिसके बाद इसे पहले फ्रांस भेजा गया है इसका टोउलोउज और कोउरोउ में अंतिम जांच की गई. इसके बाद उसे ऐरिएन लॉन्चर के साथ जोड़ दिया गया. और फ्रेंच गुयाना पहुंचा दिया गया. इस अभियान का नियंत्रण आंध्रप्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया गया था.
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भारत के संचार युग की शुरुआत
इस सैटेलाइट का उपयोग टेलिविजन और रेडियो ब्रॉडकास्टिंग के प्रयोगों के लिए किया गया था. यह भारत के लिए बहुत सम्मान और गर्व का अवसर था. एप्पल को 13 अगस्त, 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था. उन्होंने सांकेतिक रूप में एप्पल का मॉडल संचार मंत्री को सौंपते हुए कहा था कि एप्पल ने 'भारत के उपग्रह संचार युग की शुरूआत' की है.
दो साल तक दी सेवाएं
1981 को ही 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को प्रधानमंत्री के संबोधन का एप्पल द्वारा सीधा प्रसारण किया गया था. इसकी पहली सालगिरह पर भारतीय डाक विभाग ने एक डाक टिकट जारी किया था. व्यापक परीक्षण करने हेतु एप्पल का लगभग दो वर्षों तक उपयोग किया गया और 19 सितंबर, 1985 में निष्क्रिय घोषित कर दिया गया.
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एप्पल ने तकनीकी विकास और संचार उपग्रह के अनुभव में बहुत लाभ पहुंचाया और इस प्रकार इन्सैट प्रणाली के साथ प्रचालनात्मक संचार उपग्रहों के स्वेदशी विकास की नींव रखी जो आज इन्सैट एवं जीसैट शृंखला के रूप में जारी है. इन उपग्रहों ने देश की प्रौद्योगिक एवं आर्थिक उन्नति में क्रांति जैसा काम किया है. दूर शिक्षा, दूर-चिकित्सा, ग्रामीण संसाधन केंद्र (वी.आर.सी.) आपदा प्रबंधन प्रणाली (डी.एम.एस.) जैसी नई सुविधाओं को आम जनता तक पहुंचाना संभव बनाया है.
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