विज्ञान

तापमान से भी ठंडा तापमान : साइंटिस्ट्स ने पृथ्वी पर ही तापमान को माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस तक किया कम

Ritisha Jaiswal
18 Oct 2021 7:45 AM GMT
तापमान से भी ठंडा तापमान :  साइंटिस्ट्स ने पृथ्वी पर ही तापमान को माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस तक किया कम
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दुनिया की सबसे ठंडी जगह अंटार्कटिका का वोस्तोक स्टेशन माना जाता है. यहां खून जमा देने वाली ठंड पड़ती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दुनिया की सबसे ठंडी जगह अंटार्कटिका का वोस्तोक स्टेशन माना जाता है. यहां खून जमा देने वाली ठंड पड़ती है. यहां का तापमान माइनस 89 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. साइंटिस्ट्स ने यहां के तापमान से भी ठंडा तापमान बनाने का रिकॉर्ड बना लिया है. साइंटिस्ट्स ने पृथ्वी पर ही तापमान को माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस तक कम कर लिया है.

साइंटिस्ट्स ने ये कारनामा जमीन के 393 फीट नीचे एक टावर को लगाकर किया है. ये टावर इसलिए लगाया गया है ताकि जमीन के ऊपर बनी लैब में मौजूद साइंटिस्ट्स और वस्तुओं पर वहां के तापमान का असर न पड़े. ये स्टडी हाल ही में फिजिक्स रिव्यू लेटर्स में पब्लिश हुई है
वोस्तोक है तो हमारी पृथ्वी की सबसे ठंडी जगह है. लेकिन इंसानों की जानकारी वाली ब्रह्मांड की सबसे ठंडी जगह बूमरैंग नेबुला (Boomerang nebula) को माना जाता है. ये सेंटॉरस नक्षत्र में है, जो धरती से करीब 5000 प्रकाश वर्ष दूर है. यहां का औसत तापमान माइनस 272 डिग्री यानी 1 केल्विन रहता है. लेकिन अब साइंटिस्ट्स ने इससे भी कम तापमान पृथ्वी पर बना लिया है.
ये कारनामा जर्मनी के साइंटिस्ट्स ने किया है. वे बोस-आइंस्टीन कॉन्डेसेट (BEC)क्वांटम प्रॉपर्टी पर रिसर्च कर रहे थे. BEC को पदार्थ (Matter) का पांचवा स्टेट भी कहा जाता है. ये बहुत कम तापमान वाली जगह पर रहने वाला गैसीय पदार्थ है. BEC फेज में कोई भी वस्तु एक बड़े एटम की तरह व्यवहार करने लगती है. ये इतनी ज्यादा ठंडी होती है कि इसमें हड्डी भी जम जाए.तापमान से किसी भी छोटे से छोटे कण का कंपन को मापा जा सकता है. जितना ज्यादा कंपन होगा उतना ही अधिक तापमान होगा. तापमान कम होने पर कंपन की स्पीड भी कम हो जाती है. माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस जैसे तापमान को नापने के लिए साइंटिस्ट्स ने केल्विन स्केल बनाया है. केल्विन स्केल पर 0 केल्विन का मतलब है तापमान शून्य है.
साइंटिस्ट्स ने इस परीक्षण को करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी के ब्रेमेन ड्रॉप टावर का इस्तेमाल किया. ये टावर जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रेमेन के अंदर मौजूद माइक्रोग्रैविटी रिसर्च सेंटर है. साइंटिट्स ने रुबिडियम से भरे वाइक्यूम चेंबर को इस टावर में डाला, वैसे ही वो नीचे जाने लगा. इस दौरान मैगनेट फील्ड को बार-बार ऑन-ऑफ किया गया. इससे BEC ग्रेविटी से फ्री हो गया और रुबिडियम के एटॉमिक पार्टिकल्स की स्पीड कम होती चली गई.
साइंटिस्ट्स का दावा है कि इस तरह से माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस पर कोई भी वस्तु ज्यादा से ज्यादा 17 सेकंड तक ही सरवाइव कस सकती है. इसके बाद उसमें वजन नहीं बचेगा. इस तापमान से भविष्य में क्वांटम कंप्यूटर्स बनाए जा सकते है


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