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वैज्ञानिकों की एक टीम ने सिमलीपाल के तथाकथित काले बाघों के आनुवंशिक रहस्य को सुलझा लिया है. नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस), बैंगलोर से उमा रामकृष्णन और उनके छात्र विनय सागर के नेतृत्व में अध्ययन में पाया गया कि इन बाघों में एक आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण काली धारियां चौड़ी हो गईं या फिर फैल गईं. सफेद या सुनहरे रंग की बाघों का एक विशिष्ट गहरा धारी पैटर्न होता है. यह दुर्लभ धारी पैटर्न जंगली और कैद किए गए बाघों दोनों में भी पाया जाता है. इसे छद्म मेलेनिज़्म के रूप में जाना जाता है, जो वास्तविक मेलेनिज़्म से अलग है. सही मायने में मेलेनिस्टिक बाघों को रिकॉर्ड किया जाना बाकी है, छद्म-मेलेनिस्टिक बाघों को कैमरों में कैद किया गया है. वर्ष 2007 से ओडिशा के सिमलीपाल में ही अकेले 2,750 किलोमीटर का बाघ अभयारण्य है. वर्ष 2017 में पहला अध्ययन किया गया था जहां पाया गया कि छद्म-मेलेनिज्म ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टिडेज़ क्यू में एक उत्परिवर्तन से जुड़ा हुआ है, जो अन्य बिल्ली प्रजातियों में समान लक्षणों के लिए जिम्मेदार जीन है.