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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। खगोलविज्ञान में सुब्रमण्यम चंद्रशेखर (Subrahmanyan Chandrasekhar) का नाम शीर्ष पांच खगोलभौतिकविदों में लिया जाता है. वे भारतीय अमेरिकी खगोलभौतिकविद थे जिन्होंने अपने जीवन का व्यवसायिक जावन अमेरिका में बिताया था. हैरानी की बात यह है कि उन्होंने मशहूर चंद्रशेखर लिमिट की खोज साल 1930 में की लेकिन उसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) 1983 में दिया जा सका था. खगोलविज्ञान में चंद्रशेखर लिमिट (Chandrasekhar Limit) का बहुत महत्व है. लेकिन चंद्रशेखर का खगोलभौतिक में इससे कहीं बड़ा योगदान है. 21 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि है. आइए जानते हैं कि चंद्रशेखर लिमिट की क्या कहानी है.
श्वेत बौनों पर सिद्धांत
1930 में सुब्रह्मण्यम चंद्रेशेखर ने सितारों की उत्पति और उसके खत्म होने को लेकर रिसर्च पेपर प्रकाशित किया. उन्होंने व्हाइट ड्वार्फ यानी श्वेत बौने नाम के नक्षत्रों का सिद्धांत दिया. तारों पर किए उनके गहन शोध और अनुसंधान कार्य और एक महत्वपूर्ण सिद्धांत चंद्रशेखर लिमिट के नाम से आज भी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि माना जाता है. 1983 में सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को उनके इन कार्यों के विलियम फॉलर के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार दिया गया था.
प्रभावित नहीं हुए थे उस दौर के वैज्ञानिक
चंद्रशेखर ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में जो चंद्रशेखर लिमिट का सिद्धांत दिया था. उससे शुरुआती दौर में खगोलशास्त्री और उनके सहयोगी उनके काम से प्रभावित नहीं थे. वे भारत सरकार के स्कॉलरशिप पर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने गए थे. यहीं पर उन्होंने चंद्रशेखर लिमिट का सिद्धांत दिया. लेकिन इस सिद्धांत से उनके शिक्षक और साथी छात्र प्रभावित नहीं थे. 11 जनवरी 1935 को उन्होंने अपनी खोज रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के सामने पेश की.
खारिज कर दिया गया था इस लिमिट को
इस लिमिट को उस समय खारिज कर दिया था क्योंकि इसे स्वीकार करने के मतलब ब्लैक होल के अस्तित्व को स्वीकार करना था और उस दौरान ब्लैक होल का अस्तित्व वैज्ञानिक स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. लेकिन बाद में ब्लैक होल की खोज और अन्य परीक्षणों के बाद इस लिमिट की पुष्टि हो सकी और चंद्रेशखर को ना केवल नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया बल्कि इस लिमिट को भी उनका ही नाम दिया गया.
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खुद मेंटॉर ने किया खारिज
ब्लैक होल की वजह से ही कई सालों तक चंद्रशेखर लिमिट को नजरअंदाज किया गया जिसका विरोध खुद चंद्रशेखर के मेंटॉर और खगोलभौतिकविद ऑर्थर एडिंगटन ने ही किया था. एडिंगटन ने यह जानते हुए कि सैद्धांतिक तौर पर ब्लैक होल का अस्तित्व संभव है, चंद्रशेखर की सुझाई लिमिट को खारिज कर दिया और जीवन पर्यंत (1944) इसे अस्वीकार करते रहे.
दशकों बाद नोबोल पुरस्कार
1966 में कम्प्यूटर के आगमन होने के बाद चंद्रशेखर की गणना की पुष्टि होने लगी. 1972 में ब्लैक होल की खोज के बाद तो उनकी गणना सर्वस्वीकार्य सी हो गई. ब्लैक होल की खोज में चंद्रशेखर का सिद्धांत बहुत उपयोगी साबित हुआ था. दिलचस्प बात यह है कि चंद्रशेखर को नोबोल पुरस्कार "तारों की संरचना और उद्भव के महत्व के भौतिक प्रक्रियाओं के सैद्धांतिक अध्ययनों" जो उनके 1930 का ही कार्य था, लेकिन इसमें चंद्रशेखर की लिमिट के नाम से कोई जिक्र नहीं था.
Space, India, Black Hole, US, Subrahmanyan Chandrasekhar, Subrahmanyan Chandrasekhar Death Anniversary, Noble Prize, Chandrasekhar Limit, Star life, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने बताया था कि मरते हुए तारे के श्वेत बौना (White Dwarf) बने रहने का अधिकतम भार क्या होगा.
तो क्या है चंद्रशेखर लिमिट
सरल शब्दों मे कहें तो चंद्रशेखर लिमिट वह गणितीय सूत्र है जो बताता है कि मरते हुए तारे का भार के अनुसार क्या अंजाम होगा , क्या वह सफेद बौने में तब्दील होगा या फिर न्यूट्रॉन तारे में या फिर किसी ब्लैक होल में बदल जाएगा. चंद्रशेखर लिमिट वह अधिकतम भार है जब तक सफेद बौने का स्थायित्व कायम रहता है. उससे ज्यादा भार होने पर गुरुत्व सिकुड़न जारी रहती है और तारा या तो न्यूट्रॉन तारा बन जाता है या फिर ब्लैक होल. सफेद बौने की भार की सीमा 1.44 सौर भार होती है.
चंद्रशेखर 1937 में अमेरिका शिफ्ट हो गए थे. सिर्फ 26 साल की उम्र में उन्होंने शिकागो यूनिवर्सिटी में पढ़ाना शुरू कर दिया. 1953 में अमेरिका ने उन्हें अपने यहां की नागरिकता दे दी. चंद्रशेखर अक्सर अमेरिका के लिए अपने प्यार के बारे मे बताते रहते थे. वो कहते थे कि अमेरिका में मुझे एक बात की बड़ी सुविधा है. यहां भरपूर आजादी है. मैं जो चाहे कर सकता हूं. कोई मुझे परेशान नहीं करता. 21 अगस्त 1995 को 84 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया.
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