विज्ञान

स्टडी में हुआ खुलासा: धरती पर फिर से 'हिमयुग' ला सकते हैं बड़े ज्वालामुखी, जानें बड़ी बातें

jantaserishta.com
25 March 2022 9:04 AM GMT
स्टडी में हुआ खुलासा: धरती पर फिर से हिमयुग ला सकते हैं बड़े ज्वालामुखी, जानें बड़ी बातें
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नई दिल्ली: किसी जमाने में अंटार्कटिका (Antarctica) और ग्रीनलैंड (Greenland) में सैकड़ों ज्वालामुखी फटते रहते थे. इनमें से 69 भयानक ज्वालामुखियों का हाल ही में पता चला है. हिमयुग के समय में इनमें इतने भयानक विस्फोट हुए जो आधुनिक इतिहास में कभी नहीं देखे गए. इस रिसर्च के पीछे लगे वैज्ञानिकों ने बताया कि वो इसके जरिए यह बताना चाहते हैं कि कैसे ये ज्वालामुखी विस्फोट हमें जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को लेकर धरती की संवेदनशीलता (Planet's Senstivity) के बारे में बताते हैं.

इस नई खोज में पता चला है कि हिमयुग में अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के आसपास 69 ज्वालामुखियों में भयानक विस्फोट हुआ था. जो आधुनिक इतिहास में हुए किसी भी ज्वालामुखी विस्फोटों से कहीं ज्यादा खतरनाक और विशालकाय थे. यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के भौतिक विज्ञानियों ने की है. आमतौर पर ज्वालामुखी विस्फोट की परिकल्पना किसी प्रलय से की जाती रही है. जिसमें कान फाड़ देने वाला धमाका, घने और गहरे रंग की राख, वायुमंडल और उसके ऊपर तक पहुंचते धुएं की परत और जमीन पर नीचे बहती लावे की नदी का नजारा दिखता है.
असल में ज्वालामुखी विस्फोट यह बताता है कि आपकी धरती जलवायु परिवर्तन को लेकर कितनी संवेदनशील है. अगर यह प्राकृतिक घटनाएं बीच-बीच में न हो, तो संतुलन बनाना मुश्किल हो जाएगा. यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन की नील बोर इंस्टीट्यूट के एसोसिएट प्रोफेसर एंडर्स वेन्सन कहते हैं कि हमने अभी तक इतिहास का सबसे बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट नहीं देखा है. हम उसे कभी भी देख सकते हैं. साल 2010 में हुए इजाफजेलाजोकुल ज्वालामुखी पूरे यूरोप में हवाई यातायात को लकवाग्रस्त कर दिया था. लेकिन अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में जिन विस्फोटों के सबूत मिले हैं, वो इससे भी कई गुना ज्यादा भयावह और विशालकाय थे.
एंडर्स वेन्सन ने बताया कि पिछले 2500 सालों में ऐसे विस्फोट नहीं हुए हैं. यह जानकारी तब पता चली जब वैज्ञानिकों की टीम ने अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ की मोटी परतों की ड्रिलिंग की. बर्फ की गहराइयों से सैंपल निकाल कर उनकी जांच की. तब पता चला कि 60 हजार साल पहले ज्वालामुखियों के विस्फोट की तीव्रता और मात्रा कितनी थी. ये पिछले 2500 सालों में हुए किसी भी ज्वालामुखीय विस्फोट से ज्यादा भयावह थे.
अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में वैज्ञानिकों ने 85 ज्वालामुखीय विस्फोटों के सबूत खोजे हैं. ये विस्फोट वैश्विक स्तर के थे. यानी इन्होंने पूरी धरती को अपनी जकड़ में ले लिया था. इनमें से 69 ज्वालामुखी विस्फोट तो ऐसे थे जो 1815 में इंडोनेशिया में हुए माउंट तंबोरा (Mount Tambora) से कई गुना ज्यादा ताकतवर और खतरनाक थे. तंबोरा के विस्फोट की वजह से इतना सल्फ्यूरिक एसिड निकला था कि उससे स्ट्रैटोस्फेयर पूरा कवर हो गया था. सूरज की रोशनी धरती पर नहीं आ रही थी. कई सालों तक वैश्विक सर्दी का सामना करना पड़ा था.
माउंट तंबोरा (Mount Tambora) के विस्फोट की वजह से कई सुनामी आई थीं. कई इलाकों में सूखा पड़ा गया था. कई इलाकों में लोग भुखमरी के शिकार हो गए थे. इसके अलावा करीब 80 हजार लोगों की मौत हुई थी. किसी भी ज्वालामुखी विस्फोट को फिर से रीक्रिएट करने के लिए बर्फ के कोर से ड्रिलिंग करके सैंपल निकालना एक आसान तरीका है. इससे कई फायदे भी हैं. इससे विस्फोट की तीव्रता, भयावहता का सही अंदाजा लगता है. जितना ज्यादा सल्फ्यूरिक एसिड बर्फ की कोर में मिलता है, विस्फोट उतना ही बड़ा माना जाता है.
प्रो. एंडर्स ने कहा कि अब हमारे पास 60 हजार सालों का ज्वालामुखी विस्फोट का डेटा है. हम अतिप्राचीन हिमयुग से लेकर आधुनिक समय तक के विस्फोटों का आइडिया लगा सकते हैं. उनकी गणना कर सकते हैं. बड़े विस्फोट दुर्लभ ही होते हैं, इसलिए उनके बारे में स्टडी करने के लिए एक बड़े टाइमलाइन की जरूरत होती है. जो अब हमारे पास है. अब सवाल ये है कि अगला बड़ा विस्फोट कब होगा?
प्रो. एंडर्स ने कहा कि हमने जिस समय काल का अध्ययन किया है, उसमें तीन ज्वालामुखी विस्फोट अत्यधिक भयावह, ताकतवर और बड़े थे. इन्हें VEI-8 कहते हैं. हम ऐसे विस्फोट की उम्मीद कुछ सैकड़ों या हजार साल में कर सकते हैं. क्योंकि माउंट तंबोरा (Mount Tambora) जैसे बड़े विस्फोट हर हजार साल में एक या दो बार ही होते हैं. या फिर कई बार थोड़ा जल्दी भी हो सकते हैं. अगर फिर से तंबोरा जैसा विस्फोट होगा तो क्या होगा?
माउंट तंबोरा (Mount Tambora) जैसा विस्फोट अगर फिर से होता है, तो भयानक स्तर पर जलवायु परिवर्तन होगा. पांच से दस साल तक ग्लोबल कूलिंग होगी. यानी सूरज की रोशनी कम पहुंचेगी या फिर नहीं पहुंचेगी. तापमान में भारी गिरावट आएगी. हिमयुग जैसी हालत हो सकती है. सूखा पड़ सकता है. भूकंप आ सकते हैं. लोगों को खाना-पानी मिलना बंद हो सकता है. चारों तरफ अफरा-तफरी होगी. यह स्टडी हाल ही में क्लाइमेट ऑफ द पास्ट जर्नल में प्रकाशित हुई है.

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