विज्ञान

अध्ययन: धरती पर ही Black Hole को टक्कर देने वाली महाशक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड बनाना मुमकिन

Kunti Dhruw
13 Oct 2020 2:21 PM GMT
अध्ययन: धरती पर ही Black Hole को टक्कर देने वाली महाशक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड बनाना मुमकिन
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ब्लैक होल अपने पास आने वाली किसी भी चीज, यहां तक कि रोशनी को भी निगल सकता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | ओसाका: ब्लैक होल अपने पास आने वाली किसी भी चीज, यहां तक कि रोशनी को भी निगल सकता है। इसके रहस्यों को सुलझाने की जिज्ञासा वैज्ञानिकों के मन में हमेशा से रही है। हाल ही में फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार भी ब्लैक से जुड़ी खोज करने वाले तीन वैज्ञानिकों को दिया गया है। अब एक स्टडी में दावा किया गया है कि धरती पर ही ऐसी महाशक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड बनाई जा सकती है जो ब्लैक होल को टक्कर दे सके।

बनाई जा सकती है ऐसी मैग्नेटिक फील्ड

ऐसी मैग्नेटिक फील्ड कुछ नैनोसेकंड तक ही रह सकेगी लेकिन इतने वक्त में फिजिक्स के कई एक्सपेरिमेंट किए जा सकेंगे। लाइव साइंस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि न्यूट्रॉन स्टार और ब्लैक होल की तुलना के मैग्नेटिक फील्ड बनाई जा सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में एक लैब एक्सपेरिमेंट के दौरान लेजर से 1 किलोतेस्ला (1000 तेस्ला) से थोड़ी ज्यादा की फील्ड बनाई गई थी। अब दावा किया जा रहा है कि एक मेगातेस्ला (10 लाख तेस्ला) की मैग्नेटिक फील्ड बनाई जा सकती है।

कुछ ही नैनोसेकंड में किए जा सकेंगे एक्सपेरिमेंट

कंप्यूटर सिम्युलेशन और मॉडलिंग की मदद से रिसर्चर्स ने खोज की है कि अल्ट्रा-इंटेंस लेजर पल्स को कुछ माइक्रॉन डायमीटर के खाली ट्यूब में शूट करने से ट्यूब की वॉल के इलेक्ट्रॉन्स को ऊर्जा पहुंचाई जा सकती है और इससे ट्यूब फट सकता है। इस प्रक्रिया से पहले से बन चुकी मैग्नेटिक फील्ड 2-3 ऑर्डर ज्यादा बढ़ सकती है। यह फील्ड सिर्फ 10 नैनोसेकंड ही रह सकती है लेकिन इतनी देर में फिजिक्स के एक्सपेरिमेंट किए जा सकेंगे। फिजिक्स में ऐसे कई एक्सपेरिमेंट किए जाते हैं जहां पलक झपकते ही पार्टिकल गायब हो जाते हैं या कंडीशन बदल जाती है।

तैयार किए जा रहे शक्तिशाली लेजर

रिसर्चर्स का यह भी कहना है कि ऐसा एक्सपेरिमेंट अभी मौजूद तकनीक की मदद से किया जा सकता है। इसके लिए ऐसा लेजर सिस्टम चाहिए होगा जिसकी पल्स एनर्जी (Pulse energy) 0.1 से 1 किलोजूल और कुल पावर 10-100 पेटावॉट के बीच हो। 10 पेटॉवॉट के लेजर यूरोपियन एक्सट्रीम लाइट इन्फ्रास्ट्रक्चर के तहत भेजे जा रहे हैं जबकि चीनी वैज्ञानिक 100 पेटावॉट के लेजर बना रहे हैं जिन्हें स्टेशन ऑफ एक्सट्रीम लाइट कहा गया है।

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