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तारों और उनके ग्रहों के तंत्र (Planetary System) का निर्माण कैसे होता है यह जानना बहुत ही जटिल कार्य है. लेकिन अच्छी बात यह है कि हमारे ब्रह्माण्ड (Universe) में कई तरह के और अपने जीवन के अलग-अलग चरण पर जी रहे तारे मौजूद हैं जो इस काम में हमारे वैज्ञानिकों की मदद कर सकते हैं. ऐसे ही एक सफेद बौने के तारे (White Dwarf) और उसके वायुमंडल के अवशेषों ने इस अवधारणा को तोड़ा है कि तारों के पूर्ण रूप से विकसित हो जाने के बाद ही ग्रहों का निर्माण होता है, बल्कि उन्होंने तो यही पाया है कि तारों के विकास की प्रक्रिया के साथ ग्रहों के भी निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
एक ही साथ होता है निर्माण
खगोलविदों की टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि ग्रहों का निर्माण हमारे युवा सौरमंडल में जितना समझा गया था उससे कहीं पहले शुरू हो गया था. क्योंकि ग्रहों के निर्माण के घटक उसी समय बनने लगते हैं जब उनके तारे का निर्माण होता है. ब्रह्माण्ड के कुछ पुरातन तारों का अध्ययन सुझाता है कि गुरू और शनि जैसे ग्रहों के निर्माण तत्व तब बनने शुरु हो जाते हैं जब उनका तारा विकसित हो रहा होता है.
अब तक यही समझा जाता था कि
अभी तक यही माना जाता रहा था कि ग्रहों का निर्माण तक तक शुरू नहीं होता जब तक तारा अपना पूरा आकार नहीं ले लेता है. नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में सुझाया गया है कि तारे और ग्रह एक साथ विकसित होते हैं. यह अध्ययन कैम्ब्रिज यूनिवर्रसिटी की अगुआई में किया गया है जिससे ग्रह तंत्रों के निर्माण की हमारी समझ को बदलने का काम किया है.
एक बड़ा सवाल
कैम्ब्रिज के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनॉमी के शोधकर्ता और इस अध्ययन की प्रथम लेखक डॉ एमी बोनसर ने बताया कि उन्हें और उनकी टीम को इस बात का अंदाजा तो था कि ग्रह कैसे बनते हैं लेकिन एक ब़ड़ सवाल यही था कि ये बनना कब शुरू होते हैं. क्या ग्रहों का निर्माण जल्दी शुरू हो जाता है जब तारा पनप रहा होता है या फिर उसके करोड़ों साल बाद शुरू होता है.
शानदार प्रयोगशालाएं
इस सवाल का जवाब पाने के बोनसोर और उनके साथियों ने सफेद बौनों का वायुमंडलनका अध्ययन किया. ये पुराने तारों के अवशेष होते हैं. शोधकर्ताओं ने ग्रह निर्माण के घटकों की पड़ताल की. इस अध्ययन में कई अन्य संस्थानों के भी शोधकर्ता शामिल थे. बोनसोर ने बताया कि कुछ सफेद बौने बहुत ही शानदार प्रयोगाशाला के तौर पर मददगार होती है क्योंकि उनका पतला वायुमंडल खगोलीय कब्रस्तान की तरह काम करता है.
"प्रदूषित" सफेद बौने
सामान्य रूप से ग्रह के आंतरिक हिस्सों का अध्ययन टेलीस्कोप के बस की बात नहीं होती है. लेकिन खास तरह के सफेद बौने जिन्हें हम "प्रदूषित" तंत्र कह सकते हैं में मैग्नीशियम, लोहे और कैल्शियम जैसे भारी तत्व होते हैं, जो उनके सामान्य सामान्य साफ वायुमंडल में पाए जाते हैं. ये तत्व जरूर क्षुद्रग्रह जैसे किसी छोटे पिंडों से आए होंगे जो कि ग्रह निर्माण के अवशेषों से बने होंगे.
कैसे मिल सकती है जानकारी
ये ग्रह सफेद बौने से टकरा कर जल गए होंगे जिससे उनके अवशेष तारे के वायुमंडल में रह गए होंगे. इस वजह से स्पैक्ट्रोपस्कोपी के अवलोकनों में प्रदूषित सफेद बौने उन टूटे क्षुद्रग्रहों के आंतरिक हिस्सों की जानकारी दे सकते हैं. इससे खगोलविदों को उन हालातों के बारे में सीधे तौर पर पता चल सकता है जब उनका निर्माण हुआ होगा.
शोधकर्ताओं के 200 तारों के विश्लेषण के मुताबिक वायुमडंल में दिखने तत्वों की व्याख्या तभी हो सकती है जब मूल क्षुद्रग्रह एक ही साथ पिघले हों. जिससे लोहे जैसे भारी तत्व क्रोड़ में गए हों और हलके तत्व ऊपर रह गए हों. तत्तवों का यूं पिघलना किसी कम समय वाले रेडियो धर्मी तत्वकी वजह से हो सकता है जो केवल कुछ करोड़ सालों में ही विखंडित हो जाते हैं. यानि ये ग्रह तंत्र के निर्माण बहुत जल्दी ही हो गया होगा. इस लिहाज से हम इस नतीजे पर भी पहुंच सकते हैं कि गुरु और शनि ग्रहों को उनके वर्तमान समय तक पहुंचने में काफी समय मिला होगा.