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SpaceX का रॉकेट बस कुछ दिनों में चांद की सतह से टकराएगा, किया गया ये दावा
jantaserishta.com
27 Jan 2022 3:01 AM GMT
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वांडेनबर्ग: SpaceX का एक रॉकेट कुछ हफ्तों में चांद की सतह से टकराने वाला है. टकराते समय उसकी गति करीब 9288 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी. यह अनुमान खगोल विज्ञानियों ने लगाया है. यह रॉकेट सात साल पहले छोड़ा गया था. यह रॉकेट अंतरिक्ष में क्लाइमेट पर नजर रखने वाले सैटेलाइट को लेकर गया था. लेकिन उसके बाद यह अंतरिक्ष में अजीबोगरीब कक्षाओं में चक्कर लगाते हुए अब चांद की तरफ मुड़ गया है.
ये बात है फरवरी 2015 की जब एलन मस्क (Elon Musk) की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) ने फॉल्कन 9 रॉकेट (Falcon 9 rocket) से पर्यावरण पर नजर रखने वाले सैटेलाइट को अंतरिक्ष में 15 लाख किलोमीटर दूर पहुंचाया था. उसके बाद से रॉकेट का ईंधन खत्म हो गया. तब यह से 4400 किलोग्राम वजनी रॉकेट बूस्टर अंतरिक्ष में घूम रहा था. अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि 4 मार्च 2022 को यह रॉकेट चांद की सतह से 9288 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से टकराएगा. यह दावा किया है नीयर अर्थ ऑबजेक्ट्स को ट्रैक करने वाले बिल ग्रे ने.
21 जनवरी को बिल ग्रे ने अपने ब्लॉग में लिखा कि 5 जनवरी को एक स्पेस जंक चांद के बगल से गुजरा. जो 4 मार्च 2022 को चांद की सतह से टकरा सकता है. इस बात की पुष्टि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट जोनाथन मैक्डॉवल ने अपने ट्वीट में भी की. उन्होंने ट्वीट में लिखा कि यह कोई बड़ी घटना नहीं है, लेकिन इसे देखना एक हैरतअंगेज एहसास दिलाएगा.
बिल ग्रे ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि यह पहली बार होगा जब गैर-इरादतन तरीके से कोई रॉकेट चांद की सतह पर जाकर टकराएगा. या यूं कहें कि इंसानों द्वारा अंतरिक्ष में फैलाया गया कचरा चांद की सतह से टकराने वाला है. SpaceX का यह पहला डीप स्पेस मिशन था. इसका रॉकेट बूस्टर अब काम नहीं करता. स्पेसएक्स ने पहली बार डीप स्पेस क्लाइमेट ऑब्जरवेटरी (फोटो में) भेजी थी.
डीप स्पेस क्लाइमेट ऑब्जरवेटरी एक खास तरह की सैटेलाइट है जो सौर तूफानों और धरती के वातावरण पर नजर रखती है. इसे सूरज और धरती के बीच ग्रैविटी मुक्त लैरेंज प्वाइंट पर तैनात किया गया है. अपना काम पूरा करने के बाद रॉकेट के दूसरे स्टेज का ईंधन खत्म हो गया. वह धरती के चारों तरफ चक्कर लगाने लगा. लेकिन पता नहीं कैसे वह चांद की कक्षा में अप्रत्याशित तौर से चला गया.
बिल ग्रे की गणना के मुताबिक एक लंबा, सिलेंडर रॉकेट चांद की भूमध्यरेखा के आसपास कहीं गिरेगा. वह भी चांद के फार साइड की ओर. इसका मतलब ये है कि इसके टकराव का नजारा देखने को नहीं मिलेगा. हालांकि अभी तक इस रॉकेट की ट्रैजेक्टरी यानी दिशा और मार्ग दोनों ही तय नहीं है. इसके पीछे सौर रेडिएशन, दबाव भी काम करते हैं. इनमें से कोई फैक्टर ज्यादा या कम हुआ तो ये कहीं भी गिर सकता है. या फिर सुदूर अंतरिक्ष में गायब हो सकता है.
बिल ग्रे कहते हैं कि अंतरिक्ष के कचरे ट्रिकी होते है. उनकी दिशा और मार्ग के बार में कोई गणना सटीक नहीं हो सकती. हालांकि बिल ने कहा कि उन्होंने सही गणितीय फॉर्मूला लगाकर यह पता लगाया है कि रॉकेट चांद पर कहां गिरेगा. उन्हें इस बात का मोटा-मोटा अंदाजा है कि सूरज की रोशनी, रेडिएशन और दबाव उसे कितनी दूर ले जा सकते हैं. चांद पर कहां गिरा सकते हैं. लेकिन ये फैक्टर्स भी तो गणना से बाहर है. कभी कम तो कभी ज्यादा.
इस रॉकेट के चांद से टकराने का सही अंदाजा वहां चक्कर लगा रहे भारतीय चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) या अमेरिकी लूनर रिकॉन्सेंस ऑर्बिटर (Lunar Reconnaissance Orbiter) लगा सकते हैं. क्योंकि ये दोनों ही स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह की बारीक फोटो लेने में सक्षम है. वह रॉकेट और उसके टकराव से बनने वाले इम्पैक्ट क्रेटर को देख सकते हैं.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि चांद की सतह पर इंसानों द्वारा बनाया गया कोई रॉकेट टकरा रहा हो. इससे पहले भी इंसानों द्वारा बनाए गए सैटेलाइट चांद की सतह से टकरा चुके हैं. साल 2009 में अमेरिका का लूनर क्रेटर ऑब्जरवेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 9000 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से टकराया था. इसके टक्कर से ऐसा गुबार निकला था, जिससे वैज्ञानिकों को बर्फीले पानी का पता चला था.
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