विज्ञान

Solar storm: 16 लाख किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से आ रहा शक्तिशाली 'सौर तूफान', कल धरती से टकराने का खतरा

Deepa Sahu
10 July 2021 9:39 AM GMT
Solar storm: 16 लाख किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से आ रहा शक्तिशाली सौर तूफान, कल धरती से टकराने का खतरा
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सूरज की सतह से पैदा हुआ शक्तिशाली सौर तूफान 1609344 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है।

वॉशिंगटन: सूरज की सतह से पैदा हुआ शक्तिशाली सौर तूफान 1609344 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है। यह सौर तूफान रविवार या सोमवार को किसी भी समय पृथ्वी से टकरा सकता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस तूफान के कारण सैटेलाइट सिग्नलों में बाधा आ सकती है। विमानों की उड़ान, रेडियो सिग्नल, कम्यूनिकेशन और मौसम पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।

ध्रुवों पर दिखेगी रात में तेज रोशनी
स्पेसवेदर डॉट कॉम वेबसाइट के अनुसार, सूरज के वायुमंडल से पैदा हुए इस सौर तूफान के कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के प्रभुत्व वाले अंतरिक्ष का एक क्षेत्र में काफी प्रभाव देखने को मिल सकता है। उत्तरी या दक्षिणी अक्षांशों पर रहने वाले लोग रात में सुंदर आरोरा देखने की उम्मीद कर सकते हैं। ध्रुवों के नजदीक आसमान में रात के समय दिखने वाली चमकीली रोशनी को आरोरा कहते हैं।
16 लाख किमी की रफ्तार से बढ़ रहा तूफान
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अनुमान है कि ये हवाएं 1609344 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हो सकता है कि इसकी स्पीड और भी ज्यादा हो। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अंतरिक्ष से महातूफान फिर आता है तो धरती के लगभगर हर शहर से बिजली गुल हो सकती है।
पृथ्वी पर क्या होगा असर?
सौर तूफान के कारण धरती का बाहरी वायुमंडल गरमा सकता है जिसका सीधा असर सैटलाइट्स पर हो सकता है। इससे जीपीएस नैविगेशन, मोबाइल फोन सिग्नल और सैटलाइट टीवी में रुकावट पैदा हो सकती है। पावर लाइन्स में करंट तेज हो सकता है जिससे ट्रांसफॉर्मर भी उड़ सकते हैं। हालांकि, आमतौर पर ऐसा कम ही होता है क्योंकि धरती का चुंबकीय क्षेत्र इसके खिलाफ सुरक्षा कवच का काम करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अंतरिक्ष से महातूफान फिर आता है तो धरती के लगभगर हर शहर से बिजली गुल हो सकती है। इससे पहले वर्ष 1989 में आए सौर तूफान की वजह से कनाडा के क्‍यूबेक शहर में 12 घंटे के के लिए बिजली गुल हो गई थी और लाखों लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। इसी तरह से वर्ष 1859 में आए चर्चित सबसे शक्तिशाली जिओमैग्‍नेटिक तूफान ने यूरोप और अमेरिका में टेलिग्राफ नेटवर्क को तबाह कर दिया था। इस दौरान कुछ ऑपरेटर्स ने बताया कि उन्‍हें इलेक्ट्रिक का झटका लगा है जबकि कुछ अन्‍य ने बताया कि वे बिना बैट्री के अपने उपकरणों का इस्‍तेमाल कर ले रहे हैं। नार्दन लाइट्स इतनी तेज थी कि पूरे पश्चिमोत्‍तर अमेरिका में रात के समय लोग अखबार पढ़ने में सक्षम हो गए थे। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वर्तमान समय में दुनिया बहुत ज्‍यादा कंप्‍यूटर और ऑटोमेशन पर निर्भर हो गई है, ऐसे में पिछले तूफान के मुकाबले इस बार सौर तूफान से परिणाम ज्‍यादा भयावह हो सकता है। सौर तूफान आने पर हमारे अंतरिक्ष में चक्‍कर लगा रहे सैटलाइट प्रभावित हो सकते हैं और इससे हमारी संचार और जीपीएस प्रणाली ठप पड़ सकती है।
अब शोधकर्ताओं ने ऐसे प्रत्‍यक्षदर्शियों का पता लगाया है जिन्‍होंने साल 1582 में आए महातूफान को देखा था। इस सोलर तूफान को पूरी दुनिया में देखा गया था और लोगों को ऐसा लगा कि धरती खत्‍म होने वाली है। उस समय के पुर्तगाल के लेखक पेरे रुइज सोआरेस ने लिखा है, 'उत्‍तरी आसमान में हर तरफ तीन रातों तक बस आग ही आग दिखाई दे रही थी। आकाश का हर हिस्‍सा ऐसा लग रहा था जैसे मानो आग की लपटों में तब्‍दील हो गया हो।' उन्‍होंने लिखा है, 'मध्‍यरात्रि को किले के ऊपर एक भयानक आग की किरणें उभरकर सामने आईं जो बहुत भयानक और डरावनी थी। उसके दूसरे दिन भी ठीक उसी समय पर आसामन में यह किरणें फिर से दिखाई दीं लेकिन वह उतना डरावनी नहीं थीं जितनी की पहले दिन थी। हर व्‍यक्ति गांव की तरफ चला गया ताकि इस महान संकेत को जीभर के निहार सके। शोध में पता चला है कि डरावनी किरणों को द‍िखने की घटना जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और कई अन्‍य देशों में भी देखी गई थी।
कार्नेल विश्‍वविद्यालय के शोध के मुताबिक वर्ष 1582 में आए सौर तूफान की वजह से ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) को ध्रुवों के साथ-साथ भूमध्‍य रेखा तक देखा गया था। सौर सिस्‍टम पर शोध करने वाले वैज्ञानिक अब पिछली घटनाओं की जांच कर रहे हैं ताकि सूरज पर आने वाले तूफान के पैटर्न का पता लगाया जा सके। साथ ही इस संभावना का पता लगाया जा सके कि क्‍या सौर तूफान का पता लगाया जा सकता है या नहीं। शोध में कहा गया है कि ऐतिहासिक साक्ष्‍य बताते हैं कि साल 1582 में आए महातूफान सदी में एक बार आते हैं। इस तरह का तूफान 21वीं सदी में भी धरती से टकरा सकता है। उन्‍होंने कहा कि आने वाले 79 वर्षों में कभी भी इस तरह से आग की लपटों की तरह से किरणें धरती से टकरा सकती हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि अभी ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे यह पता लगाया जा सके कि सौर किरणों की चपेट में आने पर तकनीक कैसे प्रतिक्रिया करेगी। विशेषज्ञों के मुताब‍िक 11 साल के चक्र में सूरज की गतिविधि कम और तेज होती है। सोलर चक्र 25 अभी पिछले साल ही शुरू हुआ है, इसका मतलब है कि वर्ष 2025 में सूरज अपने चरम पर होगा।
1989 में भी आ चुका है सौर तूफान
वर्ष 1989 में आए सौर तूफान की वजह से कनाडा के क्‍यूबेक शहर में 12 घंटे के के लिए बिजली गुल हो गई थी और लाखों लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। इसी तरह से वर्ष 1859 में आए चर्चित सबसे शक्तिशाली जिओमैग्‍नेटिक तूफान ने यूरोप और अमेरिका में टेलिग्राफ नेटवर्क को तबाह कर दिया था। इस दौरान कुछ ऑपरेटर्स ने बताया कि उन्‍हें इलेक्ट्रिक का झटका लगा है जबकि कुछ अन्‍य ने बताया कि वे बिना बैट्री के अपने उपकरणों का इस्‍तेमाल कर ले रहे हैं। नार्दन लाइट्स इतनी तेज थी कि पूरे पश्चिमोत्‍तर अमेरिका में रात के समय लोग अखबार पढ़ने में सक्षम हो गए थे।
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