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तो क्या प्रलय आना तय है? जानिए वैज्ञानिकों की ये बड़ी बातें
सोर्स न्यूज़ - आज तक
पिछले 400 करोड़ सालों में धरती पर कई बार प्रलय आए हैं. कई बार आते-आते रह गए. प्रकृति ने कई बार सामूहिक विनाश किया है. अगले विनाश की शुरुआत संभवतः हो भी चुकी है. वो दुनिया भर की नदियों और झीलों से. क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन की वजह से खतरनाक बैक्टीरिया और जहरीले शैवाल (Toxic Algal Bloom) तेजी से बढ़ रहे हैं. ये ही शुरू करेंगे धरती पर नया प्रलय. जब ये अन्य जीवों का सामूहिक विनाश करेंगे.
During the world's worst mass extinction, bacteria and algae devastated rivers and lakes—a warning for today. https://t.co/8foM9RLYtH
— Scientific American (@sciam) July 14, 2022
सबसे भयावह प्रलय की स्थिति 25.2 करोड़ साल पहले हुई थी. तब परमियन काल (Permian Period) का अंत हो रहा था. उस समय नकारात्मक स्थितियां बनी थीं, उससे उस समय के जीव बर्दाश्त नहीं कर पाए थे. चारों तरफ जंगली आग, सूखा, समुद्र गर्म हो गए थे, खतरनाक बैक्टीरिया और जहरीले शैवालों की मात्रा बढ़ गई थी. नदियों, झीलों और अन्य जल स्रोत जानलेवा हो गए थे. ऑक्सीजन खत्म हो रहा था. जीव मारे जा रहे थे. बेहद कम जीव इस विकट परिस्थिति में बच पाए थे.
परमियन काल के अंत में आए प्रलय में धरती पर सतह पर रहने वाली 70 फीसदी प्रजातियां खत्म हो गई थीं. समुद्र से तो 80 फीसदी प्रजातियां नष्ट हो चुकी थीं. इसलिए वैज्ञानिक इसे द ग्रेट डाइंग (The Great Dying) कहते हैं. इसके सबूत ऑस्ट्रेलिया में खोजे गए हैं. ऐतिहासिक तौर पर इंसानों की हरकतों को देखा जाए तो वह इन चीजों पर ध्यान नहीं दे रहा है. लगातार जीवाश्म ईंधन निकाल रहा है. लेकिन जीवाश्म ईंधन धरती के जिन परतों से निकलते हैं, वहीं से प्रलय के सबूत भी मिल रहे हैं.
हाल ही में हुई कई स्टडीज में इस बात का खुलासा हुआ है कि वैश्विक गर्मी यानी ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर लगातार बढ़ रहा है. पुराने प्रलय के सबूतों को खोजने वाले वैज्ञानिकों की टीम में शामिल कनेक्टीकट यूनिवर्सिटी के सेडिमेंटोलॉजिस्ट क्रिस्टोफर फील्डिंग ने कहा कि वैश्विक तापमान परमियन काल के बराबर पहुंच रहा है. दुनिया की कई नदियों और झीलों में खतरनाक बैक्टीरिया और जहरीले शैवालों की मात्रा लगातार बढ़ रही है. ये वैसी ही स्थिति है जैसे 25.2 करोड़ साल पहले बनी थी. इनसे नदियां और झीलें सांस लेने लायक नहीं बचेंगी. कई प्रजातियों का सामूहिक विनाश होगा. एक प्रजाति के खत्म होने का असर दूसरे पर पड़ेगा. इस तरह धरती का इकोसिस्टम बिगड़ेगा. और ये प्रलय की शुरुआत होगी. जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है, जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ जाएंगी. साल 2019 के अंत और 2020 के शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया में लगी जंगल की आग इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. जिसमें करोड़ों जीव-जंतु खत्म हो गए. कैलिफोर्निया से लेकर यूरोप तक, रूस के आर्कटिक इलाके से लेकर भारत के उत्तराखंड के पहाड़ों तक. हर जगह बढ़ते तापमान की वजह से जंगलों में आग रही है. इससे जंगल में रहने वाले जीवों का नाश हो रहा है. ये नाश किसी भी समय सामूहिक विनाश का रूप ले सकते हैं. इन जंगली आगों के कई प्राचीन सबूत पत्थरों पर पड़े निशानों से मिले हैं. जिसमें कई बार सामूहिक विनाश के रिकॉर्ड प्रत्यक्ष तौर पर दर्ज हैं. ये सामूहिक विनाश सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के आसपास नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हुए थे. दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित ऑस्ट्रेलिया ही नहीं बल्कि उत्तरी ध्रुव के पास साइबेरिया में भी ऐसी तबाही हुई थी.
अगला प्रलय कब आएगा ये तो वैज्ञानिकों ने नहीं बताया लेकिन ये जरूर बता दिया कि उसके आने की शुरुआत हो चुकी है. कार्बन डाईऑक्साइड की वजह से बढ़ती गर्मी. सूक्ष्मजीवों का लगातार बढ़ना. बीमारियों का फैलना. जंगलों की आग, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्री जलस्तर बढ़ना... ये सब एकसाथ हो रहा है. लेकिन शुरुआत नदियों और झीलों से होगी. जब हमारे ये जलस्रोत ऑक्सीजनमुक्त हो जाएंगे. इससे इनकी वजह से जीवित रहने वाले जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का नाश होगा. फिर ये नाश की प्रक्रिया तेजी से उस इलाके के आसपास फैलते हुए पूरे राज्य, देश और फिर महाद्वीप को घेर लेगी.