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चंद्रमा (Moon) पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है
चंद्रमा (Moon) पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है. आज यह भूगर्भीय दृष्टि से पृथ्वी की तरह सक्रिय तो नहीं है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं था. इस पिंड की सतह पर दिखने वाला सैकड़ों धब्बे इस बात का संकेत हैं के कभी यहां बहुत सारे ज्वालामुखी उत्सर्जन (Volcanic Eruptions on Moon) हुए थे. लेकिन नए अध्ययन ने सुझाया है कि इन ज्वालामुखियों की वजह से चंद्रमा पर भारी मात्रा में पानी (Water on Moon) छोड़ा था जो आज यहां बर्फ की चादर के रूप में मौजूद है. वैज्ञानिक इस खोज से बहुत उत्साहित हैं क्योंकि इससे भावी मानव अभियानों की कई समस्याएं सुलझ सकती हैं.
ज्वालामुखी उत्सर्जन ने उगला पानी
सीयू बोउल्डर का यह शोध द प्लैनेटरी साइंस जर्नल में "पोलर आइस एक्युम्यूलेशन फ्रॉम वोल्कैनिकली इंड्यूस्ड ट्रांजिट एटमॉस्फियर्स ऑन द मून" शीर्षक से प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन के मुताबिक ज्वालामुखी उत्सर्जन के कारण पानी इतना ज्यादा निकला था कि आज कई जगह चंद्रमा पर बर्फ की चादर सैकड़ों मीटर मोटी है.
पानी की भारी मात्रा
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर सिम्यलेशन्स के जरिए चंद्रमा के उन हालातों का फिर से निर्माण किया जो पृथ्वी पर जीवन के विकसित होने से भी पहले थे. उन्होंने पाया कि पुरातन ज्वालामुखियों ने भारी मात्रा में भाप निकाली जो चंद्रमा की सतह पर गिरी और अंततः बर्फ के रूप में जमा हो गई.
उम्मीद से ज्यादा
शोधकर्ताओं ने कहा है कि अगर उस दौर में इंसान होते तो हम चंद्रमा की सतह पर दिन और रात के बीच की सीमा पर एक चांदी की चमचमाती रेखा को देख पाते. इस शोध ने इस धारणा को मजबूत बनाने का काम किया है कि चंद्रमा पर जितना पानी होने का अनुमान हमारे वैज्ञानिक लगा रहे थे, वह उससे कहीं ज्यादा मात्रा में हैं.
ज्वालामुखी पानी के स्रोत
इससे पहले भी साल 2020 में एक अध्ययन के आंकलन के अनुसार चंद्रमा की सतह का 15 हजार वर्ग किलोमीटर का हिस्सा बर्फ को सहेजने में सक्षम है. उस अध्ययन में इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा दक्षिण और उत्तरी ध्रुव के पास बताया गया था. वहीं प्राकृतिक रूप से ज्वालामुखी भी पानी का समृद्ध स्रोत हो सकते हैं. 2 से 4 अरब साल पहले हजारों ज्वालामुखी चंद्रमा की सतह पर फूटे जिससे लावा की बड़ी नदियां और झीलें बन गई थीं.
विशाल बादल
हालिया शोध दर्शाता है कि इन ज्वालामुखियों से शायद बहुत विशाल बादल निकले होंगे जो कार्बन मोनोऑक्साइड और पानी के वाष्प के बने होंगे. इन बादलों ने फिर एक पतला और अस्थायी वायुमंडल बना लिया होगा. जिसके बाद इनका पानी धीरे धीरे सतह पर आ गया होगा और फिर बर्फ बन गया होगा.
गैस और पानी
इस अवधारणा के परीक्षण के लिए शोधकर्ताओं ने अरबों साल पुरानी चंद्रमा की सतह का प्रतिमान बनाया शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि चंद्रमा ने औसतन 22 हजार साल में एक बड़ा ज्वालामुखी प्रस्फोट अनुभव किया होगा. इसके बाद उन्होंने इन विस्फोटों से निकली गैसों के चंद्रमा के चारों ओर घूमने की पड़ताल की जो समयके साथ बाहर निकल गई होंगी.
उन्होंने पाया कि ज्वालामुखी से निकला 41 प्रतिशत पानी चंद्रमा पर बर्फ के रूप में जम गया था इसकी मात्रा करीब 8 क्वाड्रिलियन रही होगा. भविष्य में मानव अभियानों में चंद्रयात्री इस पानी केसंसाधन का उपयोग कर सकते हैं. लेकिन इन भंडारों को खोजना आसान काम नहीं है. अधिकांश पानी ध्रुवों पर चला गया होगा याफिर चंद्रमा की धूल के नीचे जम गया होगा.
Rani Sahu
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