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काम के लंबे घंटों के कारण लाखों लोगों की जान को खतरा पैदा हो गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | काम के लंबे घंटों के कारण लाखों लोगों की जान को खतरा पैदा हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में यह चौंकाने वाले तथ्य पेश किए। कोरोनाकाल में यह रिपोर्ट इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि घर से काम करने के कारण काम के घंटों में बड़ा इजाफा हुआ है जिससे लोग बेहद तनाव में हैं।
35% बढ़ जाता स्ट्रोक का खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा किए गए एक संयुक्त वैश्विक अध्ययन से पाया गया है कि सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने में स्ट्रोक का खतरा 35% और दिल संबंधी बीमारियों का खतरा 17% अधिक हो जाता है।
194 देशों पर अध्ययन
यह रिसर्च 194 देशों के आंकड़ों पर आधारित है। जिसमें पाया गया कि वर्क आवर से ज्यादा देर तक काम करना एक साल में सैकड़ों हजारों की जान ले रहा है और यह कोरोना महामारी के दौरान और भी तेज हो गया है। इस कारण साल 2000 से 2016 तक के बीच मरने वालों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
तालाबंदी से 10% तक बढ़े कामकाजी घंटे
विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी अधिकारी फ्रैंक पेगा ने कहा की हमारे पास कुछ सबूत हैं जो दिखाते हैं कि जब लॉकडाउन जैसे फैसले लिए जाते हैं, तो कामकाजी घंटों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है। यानी इसका सीधा असर कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, जो उनके लिए बेहद खतरनाक है।
साल 2000 के बाद से खतरा बढ़ा
वर्किंग आवर को लेकर किए गए इस पहले वैश्विक अध्ययन से पता लगा है कि पिछले 21 साल में यह खतरा काफी बढ़ गया है। रिपोर्ट के अनुसार 2016 में लंबे समय तक काम करने की वजह से 745,000 लोगों की स्ट्रोक और दिल से संबंधी बीमारियों से मौत हुई। मरने वालों की संख्या में 72 प्रतिशत पुरुष थे जो मध्यम आयु वर्ग या उससे अधिक उम्र के थे।
लंबे समय बाद दिखता है असर
अध्ययन में यह भी पता चला कि लंबे कामकाजी घंटों का प्रभाव काफी समय बाद नजर आता है। लंबी शिफ्ट में काम करने वालों के शरीर पर धीरे-धीरे विपरीत प्रभाव होते रहते हैं जो सालों बाद बड़े खतरे के रूप में सामने आते हैं।
इन देशों में हाल खराब
अगर हम इन आंकड़ों में देशों की बात करें तो इससे चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले लोगों में यह समस्या ज्यादा देखी गई है। यहां कामकाजी होने से मरने वालों की तादात काफी अधिक है।
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