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रिसर्च में चौंकाने वाला दावा
ऑस्ट्रेलिया के सुदूर और बेहद कम आबादी वाले क्षेत्र में लाखों साल पहले विलुप्त हुई मगरमच्छ (Crocodile) की एक दुर्लभ प्रजाति की खोज हुई है. न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, 'म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी ऑफ नॉर्दन टेरिटरी (Museum and Art Gallery of the Northern Territory) ने हाल ही में ऐलान किया था कि उनकी टीम ने बारू जेनस (Baru genus) से तालुक रखने वाली मगरमच्छ की नई प्रजाति की पता लगाया है. हांलाकि उनकी टीम ने अभी इसे कोई नाम नहीं दिया है.'
अर्थ साइंस क्यूरेटर का दावा
म्यूजियम के सीनियर अर्थ साइंस क्यूरेटर एडम येट्स ने कहा कि किसी मगरमच्छ की खोपड़ी का सबसे अच्छा हिस्सा साल 2009 में मध्य ऑस्ट्रेलिया स्थित एलिस स्प्रिंग्स में पाया गया था. वैज्ञानिक शोध के मुताबिक ये स्कल 80 लाख साल पुरानी है, येट्स ने कहा कि बारू आकार में खारे पानी में पाए जाने वाले मगरमच्छ के बराबर था, लेकिन वो उनसे कहीं भारी रहा होगा.
ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (ABC) से बात करते हुए क्यूरेटर ने कहा, 'यह विशेष नमूना अपनी तरह का आखिरी स्कल है. जो बारू प्रजाति के मगरमच्छ का सबसे अच्छी कंडीशन का और पूरा हिस्सा है. जिसका वजन कई सौ किलो के करीब रहा होगा. इसके मोटे, गहरे जबड़े और बड़े दांत इशारा करते हैं कि ये एक विशालकाय मगरमच्छ था.'
अधिकारी ने बताया कि इसे बड़े जानवरों (Megafauna) से मुकाबला करने में मुश्किल नहीं होती होगी. आज कल यानी आधुनिक मगरमच्छ ज्यादातर छोटी मछलियों और छोटे समुद्री जीवों के शिकार पर गुजारा करते हैं. पर ये प्रजाति विशालकाय चीजों और बड़ी खुराक लेने वाले जीव के तौर पर पहचाना जाता था.
करोड़ों साल पुराना इतिहास
शोध के मुताबिक बारू प्रजाति के मगरमच्छों ने दुनिया के इस हिस्से यानी ऑस्ट्रेलिया में 25 मिलियन साल तक रहे. करोड़ों साल पहले मौजूद मगरमच्छ की ये प्रजाति कछुए से लेकर डायनासोर तक का शिकार करने में सक्षम थी. शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस प्रजाति के मगरमच्छ वयस्क होने पर 20 फीट तक लंबे होते थे. ये धरती पर मौजूद वह सब खाते थे, जो वो खाना चाहते थे.
इससे पहले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के असोसिएट प्रफेसर ऑफ ऑर्गैनिज्मिक ऐंड एवलूशन बायॉलजी डॉ. स्टेफनी पियर्स की टीम के शोध मुताबिक प्राचीन मगरमच्छ कई तरीके के थे. वो समय के साथ जमीन पर चलना, पानी में तैरना, मछली पकड़ना और पौधे खाना सीख गए. स्टडी के दौरान रिसर्चर्स ने 23 करोड़ साल पहले तक से इकट्ठा किए गए 200 खोपड़ों और जबड़ों को स्टडी किया.
इनमें वो मगरमच्छ शामिल थे जो विलुप्त हो चुके थे. टीम ने पता लगाया कि कैसे अलग-अलग प्रजातियों के क्रोकोडाइल्स में खोपड़े और जबड़े अलग-अलग थे और बदलते समय के साथ उन्होंने कैसे खुद को उस अनुरूप ढ़ाला था.
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