विज्ञान

वैज्ञानिकों ने बताया सच,1980 की तुलना में ज्यादा तेजी से खत्म हो रहे हैं रेनफॉरेस्ट

Tulsi Rao
24 May 2022 4:42 PM GMT
वैज्ञानिकों ने बताया सच,1980 की तुलना में ज्यादा तेजी से खत्म हो रहे हैं रेनफॉरेस्ट
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नेचर जर्नल में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया (Australia) के वर्षावनों (Rainforests) के उष्णकटिबंधीय पेड़ (Tropical trees), 1980 के दशक की तुलना में दोगुनी तेजी से खत्म हो रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से, वातावरण में हुए बदलाव से पिछले 35 सालों में ट्रॉपिकल पेड़ों की मृत्यु दर दोगुनी हो गई है. इस तरह के जंगलों के बर्बाद होने से बायोमास और कार्बन स्टोरेज (Biomass and Carbon storage) कम हो जाता है. इससे वैश्विक शिखर तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से नीचे रखना मुश्किल हो जाता है

स्मिथसोनियन एनवायर्नमेंटल रिसर्च सेंटर (Smithsonian Environmental Research Center), ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) और फ्रेंच नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (French National Research Institute for Sustainable Development, IRD) के शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए ऑस्ट्रेलिया के रेनफॉरेस्ट के डेटा रिकॉर्ड का इस्तेमाल किया है. इन जंगलों में पेड़ों की औसत मृत्यु दर, पिछले चार दशकों में दोगुनी हो गई है. शोधकर्ताओं का मानना है कि पेड़ अपनी उम्र से आधी उम्र तक ही जीवित रह पा रहे हैं, जो पूरे क्षेत्र में प्रजातियों और जगहों के हिसाब से एक पैटर्न है.
स्मिथसोनियन, ऑक्सफोर्ड और आईआरडी में एक टॉपिकल फॉरेस्ट ईकोलॉजिस्ट और शोध के मुख्य लेखक, डॉ डेविड बाउमन (Dr. David Bauman) का कहना है कि पेड़ों की मृत्यु दर में इस तरह की बढ़ोतरी का पता लगाना हमारे लिए एक झटका था. मृत्यु दर के लगातार दोगुने होने का मतलब है कि पेड़ों में जमा कार्बन वातावरण में दोगुनी तेजी से लौटेगा.
स्मिथसोनियन के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक, डॉ शॉन मैकमैहोन (Dr. Sean McMahon) कहते हैं कि लंबे समय तक जीवित रहने वाले जीवों में, दीर्घकालिक बदलावों का पता लगाने के लिए कई दशकों के डेटा की ज़रूरत होती है और परिवर्तन के संकेतों का पता लगाया जा सकता है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस शोध से हमें न केवल हम मृत्यु दर में वृद्धि का पता लगा है, बल्कि यह भी पता चला है कि यह वृद्धि 1980 के दशक में ही शुरू हो गई थी. जो ये बता रही है कि बदलती जलवायु की वजह से पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणालियां दशकों से प्रतिक्रिया दे रही हैं.
शोध के सह लेखक, ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर यदविंदर मल्ही का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ने हालिया सालों में ग्रेट बैरियर रीफ के कोरल पर क्या असर डाला है ये सबको पता है. अगर आप रीफ से किनारों की तरफ देखेंगे तो पाएंगे कि ऑस्ट्रेलिया के जानेमाने रेनफॉरेस्ट भी तेजी से बदल रहे हैं. इसकी वजह है ग्लोबल वार्मिंग. वार्मिंग से वातावरण में सुखाने की शक्ति बढ़ी है. पेड़ों की मृत्यु दर में भी इसी वजह से वृद्धि हुई है. अगर ऐसा है, तो ट्रॉपिकल फॉरेस्ट जल्द ही कार्बन स्रोत बन सकते हैं. इससे ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे लाने की चुनौती न सिर्फ जरूरी हो जाएगी, बल्कि उतनी ही मुश्किल भी होगी.
हाल ही में अमेज़ोनिया में किए गए अध्ययनों से भी पता चला है कि ट्रॉपिकल फॉरेस्ट पेड़ की मृत्यु दर बढ़ रहे हैं, जिसकी वजह से कार्बन सिंक कमजोर हो रहा है. लेकिन इसके कारण स्पष्ट नहीं हैं. ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट कार्बन के प्रमुख भंडार हैं और अब तक कार्बन सिंक रहे हैं, मानव द्वारा बनाए गए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 12% हिस्से को अवशोषित करते हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि वातावरण की बढ़ती सुखाने की शक्ति की वजह से ऐसा हो रहा है. जैसे-जैसे वातावरण गर्म होता है, यह पौधों से नमी खींच लेता है. जिससे पेड़ों में पानी का दबाव बढ़ जाता है और आखिरकार पेड़ के सूखने का खतरा बढ़ जाता है


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