विज्ञान

वैज्ञानिकों ने बताया वैक्सीन की तीसरी डोज कितनी जरूरी

Gulabi
30 Jun 2021 9:50 AM GMT
वैज्ञानिकों ने बताया वैक्सीन की तीसरी डोज कितनी जरूरी
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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में दावा किया जा रहा है कि

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में दावा किया जा रहा है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की तीसरी डोज कोरोना के वेरिएंट्स के खिलाफ सुरक्षा देगी. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी डोज के 6 महीने बाद बूस्टर डोज देने से शरीर में एंटीबॉडी का स्तर बढ़ जाता है. भारत में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड के नाम से दी जा रही है.

हालांकि ऑक्सफोर्ड के प्रमुख वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के खिलाफ वैक्सीन की दोनों डोज अच्छा काम करेंगी और तीसरे डोज की जरूरत शायद ना पड़े. स्टडी के अनुसार एस्ट्राजेनेका या फाइजर की दो डोज डेल्टा वेरिएंट से अस्पताल में भर्ती होने की संभावना 96 फीसदी तक कम करती है.
एक अन्य नई स्टडी में पाया गया है कि एस्ट्राजेनेका की एक डोज से शरीर में कम से कम एक साल तक एंटीबॉडी की ज्यादा मात्रा बनी रहती है. वहीं दो डोज के बाद ये सुरक्षा और बढ़ जाती है. इस नई स्टडी के नतीजे एक लैब टेस्ट से आए हैं जिसमें 90 वॉलंटियर्स ने भाग लिया था. इन सभी की उम्र 40 साल के आसपास थी. इन सभी ने ऑक्सफोर्ड वैक्सीन की तीसरी डोज ली थी. इसके बाद एंटीबॉडी का स्तर जांचने के लिए इनका ब्लड सैंपल लिया गया.
शोधकर्ताओं ने पाया गया कि दूसरी डोज की तुलना में तीसरी डोज के बाद न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी में काफी वृद्धि हुई. ऑक्सफोर्ड में जेनर इंस्टीट्यूट में एसोसिएट प्रोफेसर और स्टडी के प्रमुख वरिष्ठ लेखक टेरेसा लैम्बे ने कहा, 'यह बहुत उत्साहजनक खबर है, अगर हमें लगता है कि तीसरे डोज की जरूरत पड़ने वाली है.' हालांकि प्रोफसर सर एंड्रयू पोलार्ड का कहना है कि अभी ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि वास्तविक दुनिया में एंटीबॉडी का स्तर किस तरह सुरक्षा देगा.
इसके अतिरिक्त, शोधकर्ताओं ने वॉलंटियर्स के ब्लड सैंपल में टी-कोशिकाओं का उच्च स्तर भी देखा. टी-कोशिकाएं संक्रमण से बचाव में अहम भूमिका निभाती हैं. प्रोफेसर पोलार्ड ने कहा कि अगर दक्षिण अफ्रीका का बीटा वैरिएंट UK में शुरू होता है तो बूस्टर शॉट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
प्रोफेसर पोलार्ड ने डेली मेल को बताया, 'नए ट्रायल्स इसलिए जरूरी हैं क्योंकि हम जानते हैं कि बीटा वेरिएंट एक ऐसा वेरिएंट है जो वैक्सीन इम्यूनिटी से बचने में माहिर है. इसलिए समस्या बनने से पहले एक नई वैक्सीन बनाने का विचार अच्छा है जो इससे निपटने में सक्षम हो.'
हालांकि प्रोफेसर पोलार्ड ने कहा कि अब लोगों को तीसरी डोज देने की बहुत कम जरूरत है क्योंकि वैक्सीन की डबल डोज पहले से ही डेल्टा और अल्फा वेरिएंट के खिलाफ अच्छा काम कर रही है. उन्होंने कहा, 'ऐसे समय UK में ज्यादा सुरक्षा के लिए वैक्सीन की तीसरी डोज देना फिलहाल स्वीकार्य नहीं है जहां कई जगहों पर अभी वैक्सीन की पहली डोज भी नहीं लगी है. हमें दूसरे देशों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी.'
प्रोफेसर पोलार्ड ने कहा कि कोरोना की दोनों वैक्सीन पहले से ही वायरस के वेरिएंट्स के खिलाफ अच्छी सुरक्षा देती हैं. भले ही ये वायरस के वास्तविक म्यूटेशन से बचने के हिसाब से बनाई गई हों. वहीं प्रोफेसर लैम्बे का कहना है कि अभी ये नहीं कहा जा सकता कि इम्यूनिटी कम होने पर बूस्टर शॉट की जरूरत होगी या नहीं.
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