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वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, वातावरण में मानव शरीर को भी प्रदूषित कर रहा प्लास्टिक कचरा

Triveni
26 Feb 2021 3:02 AM GMT
वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, वातावरण में मानव शरीर को भी प्रदूषित कर रहा प्लास्टिक कचरा
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जब कभी प्लास्टिक कचरे के विनाशकारी प्रभावों की बात की जाती है तो अधिकांश लोग इसे महज एक पर्यावरणीय समस्या मानते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेसक | जब कभी प्लास्टिक कचरे के विनाशकारी प्रभावों की बात की जाती है तो अधिकांश लोग इसे महज एक पर्यावरणीय समस्या मानते हैं। मगर पर्यावरण के साथ-साथ प्लास्टिक कचरा इंसानों को भी 'प्रदूषित' कर रहा है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के साथ ही एक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या बन चुका है।

दरअसल समस्या यह है कि प्लास्टिक बेहद सूक्ष्म कंणों में परिवर्तित हो सकता है, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। यह आकार में पांच मिमी या इससे भी कम होते हैं। आकार की बात की जाए तो यह दाल के दाने से भी कम होंगे। प्लास्टिक के यह सूक्ष्म कंण हर जगह होते हैं।
प्लास्टिक बैग और बोतलों के टूटने के दौरान यह सूक्ष्म कंण भी बन जाते हैं। कई बार चलने के दौरान हमारे जूतों से और ड्राइविंग के दौरान कार के पहिओं के घिसने से भी इनका उत्पादन हो जाता है। यहां तक कि कपड़े धोने के दौरान भी नाइलॉन, एक्रिलिन और पॉलिस्टर से हजारों माइक्रोप्लास्टिक फाइबर पैदा हो जाते हैं। यह सूक्ष्म कंण पानी, भोजन और यहां तक कि सतह में भी होते हैं, जिसे हम रोजमर्रा में स्पर्श करते हैं।
रक्त व अंगों में मिलने का खतराः
किंग्स कॉलेज लंदन द्वारा 2018 की समीक्षा के अनुसार हमारा शरीर हमारे अंदर बनने वाले कुछ माइक्रोप्लास्टिक्स को खाली कर देता है। मगर एक नए शोध से पता चलता है कि यह माइक्रोप्लास्टिक कंण सांस के जरिए या आंत से रक्त में घुल सकते हैं या फिर हमारे शरीर के अंगों तक भी इनका पहुंचना संभव है। यह प्लास्टिक कंण शरीर में हानिकारक सूजन की वजह बन सकते हैं या फिर इनसे हानिकारक रसायनों का उत्पादन हो सकता है।
भ्रूण के विकास को नुकसानः
नवीनतम अध्ययनों में से एक में इतालवी वैज्ञानिकों ने पहली बार मानव गर्भनाल में माइक्रोप्लास्टिक को पाया, जो भ्रूण के स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित कर सकता है। एनवायरनमेंटल इंटरनेशनल नामक पत्रिका में पिछले महीने प्रकाशित किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं का सुझाव है कि महिलाएं इस तरह 'साइबर्ग बेबी' को जन्म दे रही हैं। ब्रिटिश विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अभी तक हमें पता नहीं है कि इस प्लास्टिक का सटीक प्रभाव क्या हो सकता है। मगर इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि यह गर्भनाल को प्रभावित करता है।
चारों ओर हैं सूक्ष्ण प्लास्टिक कंणः
अध्ययनकर्ता एलेक्स मैक्गोरेन का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक हर जगह है। हम अक्सर यह सुनते हैं कि मछलियों में प्लास्टिक होता है और यह धारणा बनी हुई है कि अधिकांश सूक्ष्म प्लास्टिक समुद्री भोजन के जरिए आता है। मगर हालिया अध्ययन से पता चलता है कि हम प्लास्टिक से चारों ओर से घिरे हुए हैं। उदाहरण के लिए घर में आप आर्टिफिशियल कार्पेट पर चहलकदमी करते हैं, पॉलिस्टर से बने पर्दे लगाते हैं और कुर्सियों पर बैठते हैं। इन सभी से थोड़ा-बहुत प्लास्टिक हवा में आता है और यह हमारी सांस के साथ हमारे अंदर जा सकता है।
और अध्ययन की जरूरतः
2018 के एक अध्ययन के मुताबिक अगर आलम यही रहा तो एक औसत ब्रिटिश एक साल में धूल से करीब 68,415 माइक्रोप्लास्टिक के कंण निगल जाएगा। 2019 के अध्ययन के अनुसार आहार के जरिए सालाना अन्य 52,000 सूक्ष्म प्लास्टिक के कंण निगलने की संभावना है। इस ओर चिंता जाहिर करते हुए वैज्ञानिकों ने इस बात पर रिसर्च करने पर जोर दिया है कि इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता और कोशिकाओं इन प्लास्टिक कंणों का मुकाबला कैसे करती हैं।


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