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भारत और फ्रांस के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक ऐसा आणविक सेंसर (Molecular Sensor) विकसित किया है
भारत और फ्रांस के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक ऐसा आणविक सेंसर (Molecular Sensor) विकसित किया है, जो कैंसर की दवाओं की पहचान कर सकता है. साथ ही यह पता लगा सकता है कि इस तरह के रसायन इंसानी कोशिकाओं के अंदर सूक्ष्म नलिकाएं कैसे बदलाव करते हैं. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सूक्ष्म नलिकाएं कोशिकीय द्रव्य के भीतर एक संरचनात्मक नेटवर्क साइटोस्केलेटन का हिस्सा हैं, और वे कई रसायनों की प्रतिक्रिया में बदल जाते हैं.
बता दें कि ट्यूबलिन मोडिफिकेशंस को समझना आज तक एक चुनौती बना हुआ है. कारण कि ऐसे उपकरण उपलब्ध ही नहीं हैं, जो उन्हें लिविंग सेल्स के रूप में चिह्नित करते हैं. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) समर्थित एक द्विपक्षीय संस्था, इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर द प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड रिसर्च (IFCPAR/CEFIPRA) द्वारा वित्त पोषित फ्रांस के ऑर्से स्थित क्यूरी इंस्टीट्यूट के सहयोग बेंगलुरु स्थित इनस्टेम के शोधकर्ताओं ने यह उपलब्धि हासिल की है. भारत और फ्रांस की सरकार ने इस कमी को दूर करने का फैसला लिया था.
रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुई है शोध रिपोर्ट
भारत के शोधकर्ता मिनहाज सिराजुद्दीन और फ्रांस के शोधकर्ता कार्स्टन जान्के ने जीवित कोशिकाओं में सूक्ष्मनलिका संशोधनों की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए पहला ट्यूबुलिन नैनोबॉडी या सेंसर विकसित किया. इसका उपयोग नई कैंसर उपचार की दवाओं की पहचान के लिए किया. यह रिसर्च हाल ही में जर्नल ऑफ सेल बायोलॉजी में प्रकाशित हुई है.
एंटीबॉडी की तरह की काम करते हैं नैनोबॉडी
बैंगलोर और ऑर्से के शोधकर्ताओं ने सिंथेटिक प्रोटीन को डिजाइन करने के लिए एक विधि तैयार की, जिसे नैनोबॉडी के रूप में जाना जाता है. ये नैनोबॉडी रोगाणुओं के खिलाफ रक्षा तंत्र के रूप में हमारे शरीर में बनी एंटीबॉडी के समान काम करती है. हालांकि, एंटीबॉडी की तुलना में नैनोबॉडी आकार में छोटे होते हैं. ये प्रोटीन इंजीनियरिंग के लिए आसानी से उपलब्ध होते हैं.
इसके बाद नैनोबॉडी को एक फ्लोरोसेंट अणु के साथ जोड़ दिया जाता है, जिसे पता लगाने वाले उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है और इसे ही सेंसर कहते हैं. उन्होंने एक अद्वितीय माइक्रोट्यूब मोडिफिकेशन के खिलाफ एक लिविंग सेल सेंसर को विकसित किया. इन्हें सूक्ष्मनलिकाएं का टायोसीनेटेड रूप कहा जाता है जो पहले से ही कोशिका विभाजन और इंट्रासेल्युलर संगठन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता रहा है.
नई दवाओं की पहचान करने में मदद
टायरोसिनेशन सेंसर पहला ट्यूबुलिन नैनो-बॉडी या सेंसर है, जिसका उपयोग जीवित कोशिकाओं में सूक्ष्मनलिका परिवर्तन की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है. CEFIPRA शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म सेंसर को लक्षित करने वाले छोटे-अणु यौगिकों के प्रभाव का अध्ययन करने में इस सेंसर के उपयोग को दिखाया है.
इन रसायनों को अक्सर कैंसर-रोधी दवाओं के रूप में उपयोग किया जाता है. इस प्रकार, टाइरोसिनेशन सेंसर की मदद से शोधकर्ताओं के लिए सूक्ष्मनलिका कार्यों का अध्ययन करने में सुविधा होगी और ऐसी नई दवाओं की पहचान करने में सहायता करेगा.
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