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वैज्ञानिकों को रिसर्च के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिली है। पैरालिसिस यानी लकवे का इलाज ढूंढ रहे वैज्ञानिकों ने चूहों पर सकारात्मक असर पाया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| बर्लिन: वैज्ञानिकों को रिसर्च के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिली है। पैरालिसिस यानी लकवे का इलाज ढूंढ रहे वैज्ञानिकों ने चूहों पर सकारात्मक असर पाया है। इससे दुनियाभर में लकवे से पीड़ित करीब 54 लाख लोगों के लिए उम्मीद जगी है। जर्मनी की रूर यूनिवर्सिटी बोकम के रिसर्चर्स ने खराब हो चुकी चूहे की रीढ़ की हड्डी में प्रोटीन की मदद से नसें फिर से तैयार की हैं। इन चूहों के पीछे के पैर चलना बंद हो चुके थे लेकिन इलाज के बाद दो-तीन हफ्ते में वे चलने लगे।
इंसानों पर ट्रायल के लिए इंतजार
टीम ने हाइपर-इंटरल्यूकिन-6 बनाने के लिए मोटर-सेंसरी कॉर्टेक्स के नर्व सेल इंड्यूस किए। ऐसा करने के लिए जेनेटिकली इंजीनियर वायरस को इंजेक्ट किया गया जिसमें खास नर्व सेल में प्रोटीन बनाने का ब्लूप्रिंट होता है। रिसर्चर्स अब यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि हाइपर-इंटरल्यूकिन-6 का चूहे पर सतारात्मक असर होता है या नहीं जब चोट कई हफ्ते पुरानी होती है। इसकी मदद से समझ आएगा कि इंसानों का पर ट्रायल के लिए यह तैयार है या नहीं।
देखें वीडियो-
WATCH: German scientists have made paralyzed mice walk again and hope the experiment could help treat spinal-cord injuries in humans https://t.co/EGbCIw5KrC 🐀 pic.twitter.com/zQmbkyxtzl
— Reuters India (@ReutersIndia) January 23, 2021
कैसे होता है लकवे का असर?
ये प्रोटीन रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचाने वाली चोट के खिलाफ काम करता है। चोट से ऐग्जॉन खराब होते हैं जो खाल और मांसपेशियों से दिमाग तक सिग्नल लाते- ले जाते हैं। जब ये काम करना बंद कर देते हैं तो संदेश भी बंद हो जाता है। अगर ये फाइबर चोट के बाद ठीक नहीं होते हैं तो मरीज को लकवा हो जाता है। रिसर्चर्स ने बताया है कि यह प्रोटीन न सिर्फ नर्व सेल को शुरू करता है बल्कि दिमाग तक भी जाता है।
कैसे हो सकता है इलाज?
इन वायरस को जीन थेरेपी के लिए भी तैयार किया गया। इसके जरिए ऐसे प्रोटीन बने जो नर्व सेल को गाइड कर सकें जिन्हें मोटरन्यूरॉन कहते हैं। ये सेल दूसरे नर्व सेल से जुड़े होते हैं जो चलने के लिए जरूरी होते हैं। ये प्रोटीन यहां तक पहुंचाया जाता है। डायटमैन फिशर ने बताया है कि कुछ नर्व सेल के जीन थेरेपी से इलाज से दिमाग के अलग-अलग हिस्सों में नर्व सेल और रीढ़ की हड्डी में मोटरन्यूरॉन में ऐग्जॉन रीजनरेट होते हैं। इससे पहले न चल पाने वाले जीव दो-तीन हफ्ते में चलने लगते हैं।
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